Cricket History : अंग्रेजों का राज, मणिकरण में क्रिकेट

Cricket History : अंग्रेजों का राज, मणिकरण में क्रिकेट

विनोद भावुक/ कुल्लू

Cricket History : आज क्रिकेट के खेल को लेकर भारत में जबर्दस्त दिवानगी है और हिमाचल प्रदेश भी इस खेल में नित नई सुर्खियां बटोरता है। एक वक्त ऐसा भी था, जब अंग्रेजों के साथ भारत पहुंचे क्रिकेट को लेकर को ज्यादा क्रेज नहीं था। क्रिकेट या तो अंग्रेजों तक सिमटा था, या फिर भारत के बड़े शहरों में अभी दस्तक दे रहा था।

ब्रिटिश शिकारी एफ सेंट जे गोर की 1895 में प्रकाशित पुस्तक में कुल्लू में क्रिकेट खेले जाने के संदर्भ में आश्चर्यजनक बात पता चलती हैं। इस पुस्तक के मुताबिक अंग्रेज़ शिकारियों ने मणिकरण में डेरा डाल रखा था।

Cricket History में दर्ज हैरानी की बात थी कि उस दौर में भी कुल्लू के मणिकरण जैसे पहाड़ी क्षेत्र में क्रिकेट खेला जा रहा था। मणिकरण में ऐसे ही एक क्रिकेट मैच का गवाह अंग्रेज़ शिकारियों की एक टोली बनी थी, जो इस घाटी में शिकार करने आए थे। उनमें से एक शिकारी ने अपनी पुस्तक में इस प्रसंग का उल्लेख किया है।

अंग्रेज़ शिकारी ने देखा क्रिकेट मैच

ब्रिटिश शिकारी एफ सेंट जे गोर को बड़ी हैरानी हुई, जब उसने इस उच्च पर्वतीय क्षेत्र में एक लकड़ी के बंगले के कोने से मुड़ते हुए क्रिकेट के खेल को देखा। उसने कल्पना भी नहीं की थी, इस पर्वतीय क्षेत्र में ऐसा भी मुमकिन हो सकता है। शिकारी क्रिकेट के इस मैच में पूरी तरह से डूब गया और मैच के खत्म होने तक खेल का आनंद लेता रहा।

ब्रिटिश शिकारी एफ सेंट जे गोर की 1895 में प्रकाशित पुस्तक में कुल्लू में क्रिकेट खेले जाने के संदर्भ में आश्चर्यजनक बात पता चलती हैं। इस पुस्तक के मुताबिक अंग्रेज़ शिकारियों ने मणिकरण में डेरा डाल रखा था।

ब्रिटिश शिकारी एफ सेंट जे गोर को बड़ी हैरानी हुई, जब उसने इस उच्च पर्वतीय क्षेत्र में एक लकड़ी के बंगले के कोने से मुड़ते हुए क्रिकेट के खेल को देखा। उसने कल्पना भी नहीं की थी, इस पर्वतीय क्षेत्र में ऐसा भी मुमकिन हो सकता है। शिकारी क्रिकेट के इस मैच में पूरी तरह से डूब गया और मैच के खत्म होने तक खेल का आनंद लेता रहा।

Cricket History: क्रिकेट के मैच था जोश

एफ सेंट जे गोर लिखते हैं, ‘मैं अपनी आंखों पर विश्वास नहीं कर पा रहा था। यहां लकड़ी के एक पुराने फट्टे से बना बल्‍ला बना हुआ था। ग्राउंड पर गैर-परंपरागत लंबाई के तीन स्टंप गड़े हुए थे और पुराने कपड़े के चीथड़ों से बनी गेंद थी।

यह मणिकरण का स्कूल था, जिसके स्टूडेंट्स आधी छुट्टी के समय क्रिकेट का लुत्फ उठा रहे थे। एक तरफ तो बिल्कुल खड़ी पहाड़ी थी और दूसरी तरफ गर्जना करता उग्र जलप्रवाह था।  क्रिकेट के लिहाज से मैदान बहुत छोटा था, पर  छोटे से मैदान पर भी बड़े जोश के साथ क्रिकेट जारी था।

क्रिकेट के बाद एथलेटिक्स

मणिकरण में Cricket History की इस खोज पर एफ सेंट जे गोर बड़ा खुश हुआ। गोर ने क्रिकेट का खेल खत्म होने पर एथलेटिक्स प्रतियोगिता की घोषणा कर दी, जिसमें जीत के रूप में दो आना ईनाम राशि रखी गई थी। इस दौड़ में तकरीबन 60 गज सीधी ऊंचाई वाली पहाड़ी पर उगी झाड़ी से एक पत्ता तोड़कर लाना था।

इस प्रतियोगिता में सभी क्रिकेटर शामिल हुये। गोर का मानना था यह क्रिकेट कुल्लू के सहायक आयुक्त द्वारा एक शिक्षक को सिखाया गया था। शिक्षक जब गांव में आया तो वह खेल अपने साथ लेकर आया।

क्रिकेट के लिए इनाम की वकालत

क्रिकेट के मणिकरण पहुँचने की  Cricket History में एफ सेंट जे गोर ने लिखा हैं, यह देखकर सुखद अनुभव होता है कि इस तरह के खेल में युवा भारत को बढ़ावा देने पर ध्यान दिया जा रहा था।

जिसने समय और कठिनाइयों की परवाह न करते हए इस खेल के बीज यहां बोए और जिसने दुनिया के कठिनतम स्थानों में से एक पर क्रिकेट को बढ़ावा देने की अदभुत कोशिश की, उसे तो भारी इनाम मिलना चाहिए।

विदेशी खेल अपने मैदान पर

फरवरी 1889 में इलाहाबाद से लाहौर लौटते समय पंजाबी लड़कों में फैले क्रिकेट के प्रति उन्मान्द को देखकर रुडयार्ड किपलिंग उलझन में पड़ गए थे। जल्दी ही क्रिकेट इंदौर, बड़ौदा और पटियाला जैसे शहरों में पहुंच गया, जिनका रजवाड़ों से निकट का संबंध था।

प्रख्यात इतिहासकार राम चंद्र गुहा की Cricket History पर उनकी पुस्तक ‘विदेशी खेल अपने मैदान पर- भारतीय क्रिकेट का सामाजिक इतिहास’ के मुताबिक 19वीं शताब्दी के अंत तक क्रिकेट बंगलौर, लाहौर और नागपुर में अच्छी तरक्की कर रहा था।

फरवरी 1889 में इलाहाबाद से लाहौर लौटते समय पंजाबी लड़कों में फैले क्रिकेट के प्रति उन्मान्द को देखकर रुडयार्ड किपलिंग उलझन में पड़ गए थे। जल्दी ही क्रिकेट इंदौर, बड़ौदा और पटियाला जैसे शहरों में पहुंच गया, जिनका रजवाड़ों से निकट का संबंध था।

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