प्रेरककथा – परिवार बिखरने से बचाया, कारोबार को चमकाया
विनोद भावुक/लाहड़ू (चंबा)
इस प्रेरककथा के नायक हैं सुरेश शर्मा। उनके परिवार पर कई बार दुखों का पहाड़ टूटा। चार भाईयों में से तीन बड़े भाईयों की एक के बाद एक जवानी में ही मौत हो गई। तीसरे नंबर के भाई के घर 22 मार्च 1996 को बेटी पैदा हुई और एक सप्ताह बाद ही 31 मार्च को सड़क हादसे में बेटी के सिर से बाप का साया उठ गया।
तीन बड़े भाईयों के परिवारों की परवरिश का जिम्मा परिवार के सबसे छोटे और अविवाहित भाई के कंधों पर आ गया। इस प्रेरककथा के नायक ने मुसीबत के दौर में संयुक्त परिवार को टूटने और बिखरने से बचाया और कारोबार में परिवार का नाम चमकाया।
शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, बस सर्विस
परिवार के लिए समर्पण की अनूठी मिसाल पेश करने वाले सुरेश शर्मा चंबा जिला का ‘गेटवे’ कहे जाने वाले लाहड़ू कस्बे में स्थित शर्मा कॉम्लेक्स और भटियात घाटी के विभिन्न रूटों पर चलने वाली शर्मा बस सर्विस मालिक हैं।
यह प्रेरककथा उनके संघर्ष से सफलता की राह निकालने की है। 52 वर्षीय सुरेश शर्मा रेगुलर ब्लड डोनर हैं। वे ब्लड डोनेशन कैंपों में सक्रिय भूमिका निभाते हैं और सामाजिक कार्यों में हमेशा आगे रहते हैं।
लाहड़ू कस्बे की पहली हट्टी
मूल रूप में यह कश्मीरी पंडित परिवार पहले नूरपुर के ममूंह गांव में बसा फिर जाजड़ी में और चुवाड़ी के घटासनी गांव के आकर बस गया। परिवार के बड़े बेटे पंडित लक्ष्मण दास ने साल 1977 में लाहड़ू कस्बे चाय पकोड़े की छोटी सी हट्टी से छोटे से कारोबार की शुरुआत की।
यह लाहड़ू कस्बे की पहली हट्टी थी। उनके छोटे भाई पंडित उत्तम चंद भी हट्टी में बड़े भाई का बंटाने लगे।
दो भाइयों का संयुक्त उपक्रम
उस दौर में प्राइवेट व्हीकल न के बराबर थे और चंबा- शिमला रूट पर चलने वाली सरकारी बस की सवारियां ही यहां चाय नाश्ता करती थीं। पंडित लक्ष्मण दास के घर बेटियां पैदा हुई, जबकि छोटे भाई पंडित उत्तम चंद के घर चार बेटे पैदा हुए।
इसी हट्टी की कमाई से दो भाइयों के संयुक्त परिवार का भरण- पोषण चलता रहा। साल 1984 में छोटे भाई पंडित उत्तम राम भगवान को प्यारे हो गए और तीन साल बाद 1987 में पंडित लक्ष्मण दास ने भी शरीर त्याग दिया।
परिवार पर टूट मुसीबतों का पहाड़
पंडित उत्तम चंद के चार बेटों में से दो बेटों को पढ़ लिखकर सरकारी नौकरी मिल गई, जबकि दो बेटे परिवार के हट्टी के कारोबार को ढाबे तक बढ़ाने में जुट गए।
इस परिवार को किसी की ऐसी नजर लगी कि कुछ ही सालों में ही शादीशुदा तीनों बड़े भाई भी किसी न किसी कारण से चल बसे। तीसरे नंबर के भाई के घर 22 मार्च 1996 को पहली बेटी पैदा हुई और 31 मार्च को बच्ची के पिता की सड़क हादसे में मौत हो गई।
परिवार को बिखरने से बचाया
इस प्रेरककथा में परिवार को संभालने की जिम्मेवारी परिवार के सबसे छोटे एवं अविवाहित भाई पंडित सुरेश शर्मा पर आ गई। परिवार के सदमे से उभरते ही सुरेश शर्मा ने किसी अविवाहित लड़की से शादी करने के विचार को त्याग कर तीसरे भाई की पत्नी और बेटी को अपनाने का फैसला किया। सुरेश शर्मा अपने दूसरे बड़े भाईयों के परिवारों का भी संबल बन गए।
शॉपिंग कॉम्प्लेक्स से बनी शान
इस प्रेरककथा में नया मोड तब आया जब इस रूट पर यातायात तेजी से बढ़ता गया। लाहड़ू तेजी के विकसित होने लगा तो सुरेश शर्मा ने परिवार के स्थापित कारोबार को नई उड़ान देने के लिए लाहड़ू में शॉपिंग कॉम्प्लेक्स का निर्माण करवाया।
इस कॉम्प्लेक्स में हिमाचल ग्रामीण बैंक की शाखा, स्टेट कोपरेटिव बैंक का एटीएम, शर्मा रस्टोरेंट, शर्मा स्वीट्स सहित दैनिक उपभोग की चीजों की 20 दुकानें संचालित की जा रही हैं। शर्मा रस्टोरेंट का जिम्मा खुद सुरेश शर्मा संभालते हैं, जबकि शर्मा स्वीट्स को भाईयों के बेटे संचालित करते हैं।
बच्चों को उच्च शिक्षा
इस प्रेरककथा के नायक सुरेश शर्मा के संघर्ष से आज शर्मा बस ट्रांसपोर्ट की पांच बसें हैं। इस ट्रांसपोर्ट को सुरेश शर्मा के भतीजे और भानजे संभालते हैं। सुरेश शर्मा की बड़ी बेटी अंकिता शर्मा की शादी हो चुकी है, जबकि छोटी बेटी अनामिका शर्मा ने लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी से बीएससी एग्रीकल्चर करने के बाद एग्रीकल्चर बिजनेस मैनेजमेंट में मास्टर डिग्री की है। वह गुरुग्राम में जॉब कर रही हैं।
बेटा सारांश कंप्यूटर सांइस में बीटेक है और पिता के कारोबार में हाथ बंटा रहा है। इस प्रेरककथा का सार है कि परिवार में एकता हो तो हर मुसीबत से बाहर नाइकल सकते हैं।
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