Tamil Sant मुस्लिम फ़कीर की संगत, हिंदू साधू की रंगत
अरविंद शर्मा / धर्मशाला
अभी धर्मशाला में यातायात न के बराबर था और कोई भी इस हिल स्टेशन के चारों ओर सैर कर सकता था। कैंट रोड़ पर कालापुल, खनियारा रोड़ पर दाडऩू, कोतवाली बाजार और सिविल लाईन्स के अलावा दाड़ी रोड़ और सकोह रोड़ पर सैर सपाटा किया जा सकता था। कुछ उत्साही युवा लिखे खड़ा डंडा रोड़ से होते हुए भागसूनाथ और धर्मकोट की सैर को निकलते थे। कुछ साहसी युवा त्रियुंड और उसके आगे ट्रेकिंग के दीवाने थे। चरान खड्ड के किनारे खनियारा रोड़ एक म्यूल ट्रैक होता था। खनियारा की पहाड़ी पर ग्राम्य देवता का एक छोटा सा मंदिरनुमा स्ट्रक्चर था। स्थानीय लोग इसे इंद्रूनाग के रूप में पूजा करते थे। कुछ लोग कहते थे कि मंदिर में स्थापित प्रतिमा इंद्रू नाग की है, जबकि कुछ लोगों का कहना था कि मंदिर में स्थित प्रतिमा देवी इंद्रानी की है। इस मंदिर के नजदीक ही ढलान की ओर दूसरी पहाड़ी पर एक ऐसा ही एक और मंदिर था, जिसे झाड़ी देवी (झाडिय़ों की देवी) मंदिर कहा जाता था। 1970 से 1980 तक इस क्षेत्र में ऐसा एक भी घर नहीं था, जिसमें पत्थर अथवा पक्की ईंटों का प्रयोग हुआ हो।
दक्षिण से आया था बाबा
80 के दशक में एक महात्मा यहां पहुंचे और इंद्रू नाग से आगे वाली पहाड़ी पर धूनी रमा ली। वह Tamil Sant साधू दक्षिण से आया था और तमिल में बोलता था, इसलिए लोगों ने उसे पिल्लै स्वामी का नाम दे दिया। यहां पहुंचने से पहले यह साधू कुछ दिन दाड़ी में रहा था और कुछ दिन सिविल लाइन स्थित पीपल के नीचे गुजारे थे। इसके बाद बाबा ने इंद्रूनाग मंदिर के पास एक पहाड़ी पर कुटिया बनाई थी।
संगत ने बदली रंगत
Tamil Sant पिल्लै स्वामी बाबा एक क्रिश्चन परिवार में पैदा हुआ था। गृहस्थी से विरक्त होने पर वह सालों एक मुस्लिम फकीर के साथ रहा। यहा बाबा ने धार्मिक जीवन में अनुशासन का गहरा सबक पढ़ा। हिंदू संतों के संपर्क में आने के बाद बाबा योग और समाधि की कला में पारंगत हुआ। बाबा को साधना और भक्ति के हर रास्ते का ज्ञान था।
समाधि के जरिये मौन
कहा जाता है कि निरंतर अभ्यास के चलते पिल्लै स्वामी 72 घंटे से ज्यादा की समाधि लगाने में माहिर हो चुके थे।Tamil Sant पिल्लै स्वामी कई-कई दिनों तक समाधि में लीन रहते थे। कहते हैं कि उन्होंने अन्नपूर्णा की सिद्धि हासिल की थी। यहीं कारण था कि उनकी कुटिया में चाहे जितनी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आ जाएं, कभी खाने की कमी नहीं पड़ी।
भोजन के साथ मेजबानी
Tamil Sant पिल्लै स्वामी ने शुरू यहां एक छोटी सी झौंपड़ी बनाई, लेकिन समय के साथ यहां आने वाले लोगों की संख्या को देखते हुए यहां बड़े भवन के निर्माण की जरूरत महसूस हुई। बाबा में आस्था रखने वाले स्थानीय लोगों ने बाबा के लिए बड़ी कुटिया का निर्माण किया। बाबा का बच्चों के प्रति गहरा लगाव था और वह उन्हें हमेशा खुश रखने की कोशिश करते थे। पिल्लै स्वामी वर्षों यहां ध्यान में मग्न रहे। उनकी ख्याति दूर-दूर तक पहुंच गई थी। दक्षिण के इस बाबा की कुटिया में हर रोज भक्तों का तांता लगा रहता था। कुटिया में आने वाले किसी भी भक्त को बाबा बिना भोजन करवाए जाने नहीं देते थे।
फौजी से बना फकीर
कहा जाता है कि Tamil Sant बाबा तमिल में बात करता था। उसकी कोई औपचारिक पढ़ाई नहीं हुई थी। जब वह युवा था तो खेतों में काम किया था। लोग कहते हैं कि बाबा पहले फौजी था, दूसरा विश्व युद्ध लड़ा था। ईस्टर्न सेक्टर में तैनाती के दौरान युद्ध में घायल होने पर सेना से उसे बोर्ड पेंशन भेज दिया गया तो शादी कर गृहस्थ बसाई थी, फिर अचानक कुछ ऐसा घटा कि फकीर
हो गया।