Kangra Tea : लंदन से वाशिंगटन तक चाय का जायका
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कभी काबुल, पेशावर के रास्ते मध्य एशिया तक होता था निर्यात
विनोद भावुक/ धर्मशाला
Kangra Tea : भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से व्हाइट हाउस में मुलाकात के दौरान उनकी पत्नी मेलानिया को भारत की तरफ से भेंट किए खास उपहारों में शामिल Kangra Tea ने सारी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा था।
ऐसा पहली बार नहीं था कि सात समंदर पार Kangra Tea के जायके के चर्चे हुए हों। कभी काबुल और पेशावर के रास्ते कांगड़ा चाय का निर्यात मध्य एशिया तक होता था।
कम हो रहे चाय के बाग
लंदन तथा एम्सटर्डम में Kangra Tea ने अपनी गुणवत्ता के दम पर कभी सोने और चांदी के तमगे जीते थे। कालांतर में कांगड़ा चाय के बुरे दिन शुरू हुए और कांगड़ा चाय के बागान महज 1800 हैक्टेयर तक सिमट गए।
प्रदेश में इस समय लगभग 24 सौ हैक्टेयर रकबे में चाय बागान हैं। आज से चार दशक पूर्व करीब तीन हजार हैक्टेयर क्षेत्र में चाय बागान थे। वर्तमान में कांगड़ा चाय उद्योग अपने बुरे दिनों से गुजर रहा है।
अंग्रेजों ने उगाई थी Kangra Tea
ब्रिटिश हुकूमत के दौरान चाय उत्पादन की संभावनाओं को देखते हुए 1848 में चाय की खेती के लिए सर्वेक्षण किया गया। अगले ही साल बायोलॉजिस्ट डॉ. विलियम जेमसन ने प्रयोग के तौर पर कांगड़ा के धर्मशाला व पालमपुर के अलावा मंडी, कुल्लू और चंबा में चाय के बगीचे लगाए। कैमेलिया चाय के बीज चीन से लाए गए थे।
बगीचों पर भारी पड़ा भूकंप
1854 में होल्टा टी इस्टेट से पहली बार चाय की पत्तियां तोड़ी गई थीं। 1905 में हुए विनाशकारी भूकंप ने Kangra Tea के चाय बागानों और कारखानों के हिस्से में बुरे दिन लिख दिए।
भूकंप के बाद अंग्रेजों ने अपने Kangra Tea बागान स्थानीय लोगों को बेच दिए। तब से नये मालिक कांगड़ा चाय की अधिक पैदावार नहीं कर सके। कांगड़ा, धर्मशाला, पालमपुर और जोगिन्द्रनगर में उगाई जाने वाली चाय चीन की एक विशेष किस्म की चाय है, जिसे कैमेल्लिया सिनेसिस कहते हैं।
Kangra Tea : गोल्ड और सिल्वर मेडल
1882 के कांगड़ा डिस्ट्रिक्ट गजेटियर के अनुसार, Kangra Tea भारत के अन्य भागों में पैदा होने वाली चाय के मुकाबले में ‘सर्वश्रेष्ठ’ थी। 1886 तथा 1895 में लंदन तथा एम्सटर्डम में आयोजित अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन में Kangra Tea ने स्वर्ण और रजत पदक जीते थे।
कम नहीं हुआ Kangra Tea का रुतबा
भारत सरकार ने Kangra Tea को राष्ट्रीय पहचान देने के लिए 2005 में जोग्रोफिकल इंडिकेशन का दर्जा दिया गया था। जिसके बाद 2023 में भी यूरोपीय संघ ने एक विशिष्ट पहचान देते हुए कांगड़ा चाय को जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) के तहत रजिस्टर्ड किया गया।
इसके साथ ही कांगड़ा चाय (जीआई) के रूप में रजिस्टर्ड होने वाला देश का दूसरा उत्पाद बना।
अब भी निर्यात होती Kangra Tea
वर्ष 1882 में धर्मशाला में बनी टी फैक्टरी मान ईस्टेट के मैनेजर दविंद्र पठानिया कहते हैं कि Kangra Tea का स्वाद दुनिया भर में बिलकुल अलग है। उनकी फैक्टरी से भी कांगड़ा चाय जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, नीदरलैंड और कनाडा तक निर्यात हो चुकी है।
धर्मशाला की मांझी टी इस्टेट भी कई देशों को Kangra Tea का निर्यात करती रही है। बीते कुछ सालों से Kangra Tea का ऑनलाइन कारोबार खूब बढ़ा है। आप किसी भी सर्च इंजन पर जाइए, कांगड़ा चाय के कई ब्रांड के दर्शन हो जाएँगे। देश की कई नामी ऑनलाइन कंपनियां कांगड़ा चाय का कारोबार कर रही हैं।
Kangra Tea टूरिजम हो रहा पापुलर
Kangra Tea बगीचों को अब पर्यटन के लिए भी प्रयोग किया जा रहा है। कई टी एस्टेट्स ने चाय के साथ पर्यटन कारोबार में भी पाँव पसार लिए हैं।
कांगड़ा आने वाले पर्यटक भी चाय के बगानों के अंदर बने हट्स में रुकने को प्राथमिकता देने लगे हैं। कांगड़ा के पालमपुर और बैजनाथ क्षेत्र में टी टूरिज़म बढ़ रहा है।
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