British Hindustan Govt Employees  ब्रिटिशकालीन हिंदुस्तान का सरकारी नौकर- पहाड़ घूमने को दिल बेकरार, ‘शिमला कूच’ का इंतज़ार  

British Hindustan Govt Employees  ब्रिटिशकालीन हिंदुस्तान का सरकारी नौकर- पहाड़ घूमने को दिल बेकरार, ‘शिमला कूच’ का इंतज़ार  

 

विनोद भावुक

 

 ब्रिटिशकालीन हिंदुस्तान का सरकारी नौकर (British Hindustan Govt Employees) अप्रैल का महीना लगते ही शिमला की तरफ कूच कर देता था। क्या  गोरे आका, क्या काले- भूरे हमारे हिंदुस्तानी भाई, सब हिंदुस्तान के जलते हुए मैदानों से त्राण पाने के लिए पहाड़ी वादियों की तरफ भागते थे। यूपी का अमला जा रहा है नैनीताल, बंगाल का जा रहा है दार्जिलिंग; बिहार का जा रहा है रांची; मद्रास का जा रहा है ऊटी; सेंट्रल प्राविंसिज़ का पचमढ़ी; पंजाब का छोटा शिमला में और केंद्र सरकार खास शिमला में। ये लोग छह महीने वहां काम करते थे और तब तक नीचे नहीं उतरते थे, जब तक कि वर्षा मैदानों की धूल-मिट्टी को धो-पोंछकर यहाँ की धरती को शीतल और रहने लायक बना देती थी। द्रोणवीर कोहली अपनी पुस्तक ‘बुनियाद अली की बेदिल दिल्ली’ में लिखते हैं, ‘मार्च का महीना आया नहीं कि उन दिनों सरकारी अमला बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा करने लगता कि “शिमला कूच’ की क्‍या तारीख निकलती है। दफ्तरों के गलियारों में आते-जाते लोग आंखों और हाथों के इशारे से दरयाफ्त करते, ‘कहो, निकली! यह एक ऐसी तारीख थी जिसकी बाट चपरासी से लेकर ऊंचा अफसर तक जोहता था। इसका दारोमदार हेल्‍थ कमिश्नर पर था।‘

स्पेशल अलाउंस का नाम ‘चावड़ी अलाउंस’

‘बुनियाद अली की बेदिल दिल्ली’ के मुताबिक ज्यों ही तारीख निकलती, चारों तरफ उत्सव-सा वातावरण व्याप्त हो जाता। रेलगाड़ी पर सामान बुक करवाने वाले ठेकेदार चले आ रहे हैं। ये लोग माल-डिब्बे बुक करवाने के अतिरिक्त, चुनिंदा अफसरों के नाम-पते वाले लेबल भी छपवाकर दे जाते, जो सामान पर चस्पां किए जाते थे। घर- घर में सामान बंधने लगता। चूंकि सारा खर्चा सरकार वहन करती थी, इसलिए खाटें तक ये लोग अपने साथ ले जाते थे। प्रत्येक विवाहित सरकारी नौकर पांच रेल-टिकट का अधिकारी होता था। बच्चों का किराया अलग मिलता था। यदि कोई आदमी पत्नी को साथ ले जाने में असमर्थ होता, तो उसे स्पेशल अलाउंस (अलहदगी भत्ता) मिलता था। शरारती किस्म के लोगों ने इसका नाम ‘चावड़ी अलाउंस’ डाल दिया था। शायद ही आप जानते होंगे कि आज दिल्ली के चावड़ी बाजार की जिन कोठारीनुमा दुकानों में अब करोड़ों कमाने वाले व्यापारी बैठते हैं, उनमें उन दिनों चवन्नी मार्का वेश्याएं धंधा करती थीं।

पैकर्ज राजस्थान के मुसलमान ‘बंधानी’

द्रोणवीर कोहली लिखते हैं, ‘सामान बुक करवाने वाले ठेकेदारों के साथ-साथ ‘बंधानी’ भी चक्कर काटने लगाते थे। ‘बंधानी’ राजस्थान के मुसलमान थे, जो शिमला कूच करने वाले सरकारी नौकरों के घर जाकर उनका सामान बांधते थे। देखने में ये गुंडा किस्म के लोग लगते थे, लेकिन आज्ञाकारी और बड़े करीने से सामान बांधते थे और उस पर लेबल वगैरह चिपकाते थे। घरों में अजीब-सा समां बंध जाता था । तरह-तरह की आवाजें गूंजतीं। मालिक बंधानी को आगाह करता, ‘जरा ध्यान से, भइया ! संभाल के ! कोई चीज टूटने न पाए, बंधानी भी मालिक-मालकिन को बड़ी हलीमी से आश्वस्त करता, ‘फ्रिक न करें’ किसी चीज को जर्ब तक नहीं आएगी !! बंधानी लोग ठेलों पर सामान लादकर पुरानी दिल्ली के रेलवे स्टेशन पर खड़े माल-डिब्बों में भरते। ये माल-डिब्बे पहले कालका पहुंचते। वहां से छोटी लाइन से शिमला।‘

 

‘फागली’ में या ‘टूटी कंडी’ में बसेरा

द्रोणवीर कोहली के मुताबिक, ‘शिमला में केंद्रीय सरकार के नौकर (British Hindustan Govt Employees)  ब्रिटिशकालीन हिंदुस्तान का सरकारी नौकर- पहाड़ घूमने को दिल बेकरार, ‘शिमला कूच’ का इंतज़ार  या तो ‘फागली’ में या ‘टूटी कंडी’ में ठहराए जाते थे। आला अंग्रेज अफसर सीसिल होटल में या अननडेल के रास्ते वाले बड़े- बड़े बंगलों में कयाम करते थे। ‘छोटा शिमला’ या ‘समर हिल’ पर भी सरकारी मकान थे। कार्यालय ‘कार्टन-कासल’ में या ‘कैनेडी हाउस’ में खुलते थे। इनके अलावा, पंजाब सरकार के दफ्तर ‘छोटा शिमला में पहुँचते थे। दूर कलकत्ता के कुछ दफ्तर भी आते थे। इस तरह, अप्रैल से लेकर मध्य अगस्त तक शिमला को चार चाँद लग जाते। शिमला कयाम के लिए सरकारी नौकरों को काफी सारा भत्ता मिलता था। कुछ लोग तो एक-दो सीज़न यहां आकर शादियों तक का खर्चा निकाल लेते थे।

कुर्सी पर चादर

‘बुनियाद अली की बेदिल दिल्ली’ के अनुसार इस मामले में कोलकाता से आने वाले कर्मचारी असली मायनों में चांदी काटते थे। दूरियों के कारण इन्हें भत्ता भी अपेक्षतया अधिक मिलता था। इसलिए कुछ लोग इसी फिराक में रहते थे कि किस तरह भत्ता भी जेब में डालें और अपने गांव की खेती-बाड़ी में भी हाथ बंटाएं। इसके लिए इन्होंने एक अद्भुत तरीका निकाल रखा था। दो-चार दिन शिमला कयाम करके ये लोग चुपके से कोलकाता की तरफ निकल जाते थे, लेकिन जाने से पहले अपनी कुर्सी पर चादर बांधना न भूलते-कि साहब शिमला में हैं, लेकिन इस समय कहीं अंदर-बाहर होंगे। ये लोग बच इसलिए जाते थे कि इनके सहयोगी आपदाधर्म निभाते थे।

himachalbusiness1101

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