शबाब की सोच का कमाल, तीर्थन पर्यटन से मालामाल
हिमाचल बिजनेस टीम/ कुल्लू
एक स्टडी के अनुसार कुल्लू की तीर्थन घाटी में 60 से ज्यादा होम स्टे इस घाटी में सामाजिक-आर्थिक बदलाव की प्रेरक कहानी लिख रहे हैं। तीर्थन नदी के तट पर बसी यह घाटी और इसमें स्थित अंतर्राष्ट्रीय धरोहर ‘ग्रेट हिमालयन नॅशनल पार्क’ अब दुनिया भर के सैलानियों की पहली पसंद बन गया है।
तीर्थन घाटी में पर्यावरण और प्रकृति के संरक्षण के लिए हुए जनांदोलनों का असर है कि यह घाटी अब पर्यटन की नई कहानी लिख रही है। इस आंदोलनों के लिए जमीन तैयार करने करने वाले नेता, चिन्तक और सामाजिक कार्यकर्ता दिले राम शबाब ने तीर्थन घाटी के आस्तित्व को बचाने के लिए जिंदगी होम की है।
बेशक आज दिले राम हमारे बीच नहीं हैं। वे एक दूरदर्शी नेता थे। उन्हें पता था कि तीर्थन घाटी का विकास हाइडल प्रोजेक्ट लगा कर नहीं बल्कि पर्यटन के जरिये होगा और स्थानीय लोग इससे ही अपनी आजीविका कमा पाएंगे।
हाइडल प्रोजेक्ट न लगे तो बच गई तीर्थन घाटी
यह एक विधायक की ही दूरदर्शी सोच का नतीजा था कि मुख्यमंत्री यशवंत सिंह परमार के कार्यकाल में वर्ष 1976 में ही तीर्थन खड्ड पर कोई भी हाइडल प्रोजेक्ट लगाने पर प्रतिबंध लग गया था। इसके बावजूद भी जब बाद की प्रदेश सरकारों ने यहां हाइडल प्रोजेक्ट्स लगाने के प्रयास किए तो दिले राम शबाब विरोध में चट्टान की तरह अड़ गए थे।
दिले राम शबाब ने प्रदेश सरकार के पास 7 सुनवाइयों में घाटी के लोगों के हकों की पैरवी की और इस दौरान ऊर्जा सचिव, राज्यपाल और मुख्यमंत्री तक अपनी दलीलें प्रमुखता से रखीं।
यही वजाह थी कि मंत्रिमंडल की बैठक बुलाकर मुख्यमंत्री को तीर्थन, जिभी, गाड़ागुशैणी और कलवारी खड्ड पर प्रस्तावित 9 प्रोजेक्टों को रद्द करना पडा।
अदालत में जीती हक की लड़ाई
सरकार ने जब प्रोजेक्ट रद्द किए तो प्रभावित कंपनियों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। तब दिले राम शबाब ने अपने पुत्र राजू भारती के माध्यम से वर्ष 2002 में इंटरवेंशन याचिका दायर की।
साल 2006 में फैसला तीर्थन घाटी के लोगों के पक्ष में आया। हाइडल पावर प्रोजेक्ट लगाने वाली एक कंपनी ने जब जबरन काम करना चाहा, शबाब के नेतृत्व में तीर्थन घाटी के लोगों ने जबरदस्त जन आंदोलन छेड़ कर कंपनी की हसरत पूरी नहीं होने दी।
सरकारी नौकरी के रास्ते सियासी सफर
तीर्थन घाटी के सईरोपा क्षेत्र में 2 फरवरी 1922 को जन्मे दिले राम ने पंजाब सरकार में पटवारी की नौकरी से अपने करियर की शुरुआत की और फिर लोक संपर्क अधिकारी और बाद में पर्यटन अधिकारी रहे। खाद्य आपूर्ति विभाग में उच्च अधिकारी के तौर पर भी सेवएं दीं।
दिले राम शबाब ने लाल चंद प्रार्थी के साथ मिल कर कुल्लू और सराज घाटियों में जनजागरण अभियान चलाया। वे सराज क्षेत्र के 1967 से 1977 तक लगातार दो बार विधायक चुने गए।
शायरी के शौकीन, लेखन का हुनर
दिले राम शबाब लाहौर से उच्च शिक्षा प्राप्त विद्वान थे और लेखन में गहरी रूचि रखते थे। साहित्य के गलियारों में यह भी कहा जाता है कि शकील बदायूनी और दिले राम शबाब ने एक ही गुरू से शायरी और लेखन का इल्म सीखा था। उनकी इंगलिश पर भी जबरदस्त कमान थी।
दिले राम शबाब की ‘Kullu Himalayan Abode of the Divine’ पुस्तक प्रकाशित हुई। जीवन के आखिरी दिनों में भी वे अपनी दूसरी किताब के लेखन में जुटे थे। 26 जुलाई 2018 को 96 साल की उम्र में वे इस दुनिया से कूच कर गए।
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