British Hindustan Govt Employees ब्रिटिशकालीन हिंदुस्तान के सरकारी नौकर- उधार लूट का आधार
विनोद भावुक/ शिमला
शिमला के बनिए (British Hindustan Govt Employees) ब्रिटिश हिंदुस्तान के सरकारी बाबुओं को किस तरह ठगते थे, इसके अनेक दिलचस्प किस्से हैं। बनिया कौम की खसूसियत है कि ये लोग उधारी देकर खुश होते हैं। उस जमाने में शिमला में किसी भी दुकान पर ‘उधार मुहब्बत की कैंची है’ जैसे स्लोगन कहीं दिखाई नहीं पड़ते थे। हालत यह थी कि अगर कोई बाबू कैश खरीददारी करने की बात करता, तो बनिया उसके घुटने पकड़ लेता और कहता, ‘सरकार, हमसे क्या खता हो गई! हम आपके बच्चे हैं। रोकड़ा देकर हमें क्यों शर्मिंदा करते हैं। द्रोणवीर कोहली की पुस्तक ‘बुनियाद अली की बेदिल दिल्ली’ के मुताबिक असलियत यह थी कि उधार देकर बनिया बाबू का गला बड़ी बारीकी से रेतता था। वह जिंस की कीमत ही ज्यादा न लगाता, बल्कि डंडी मारने से भी बाज नहीं आता था, क्योंकि यह उसका धंधा था। एक बार एक बाबू को पता चला कि बनिया उसे उल्लू बनाता रहा है। बाजार में बढ़िया बासमती चावल का रेट उन दिनों आठ रुपए प्रति मन था। बनिया उसे उधार खाते में दोयम दर्जे का चावल भी दस रुपए के हिसाब से लगा रहा था। जब उसने इस बात की शिकायत की, तो उसने बस खीसें निपोर दीं और यह कहकर उल्टे बाबू को ही शर्मिंदा किया-‘सरकार, इस तरह पाई- पाई का हिसाब करना बड़े लोगों को शोभा नहीं देता।‘
पहाड़ पर आया है, पहाड़ जैसा कलेजा रख
द्रोणवीर कोहली लिखते हैं, ‘लेकिन इसके लिए जिम्मेदार (British Hindustan Govt Employees) बाबू लोग खुद थे। दिल्ली में ये लोग खुद थैला उठाकर सौदा-सुल्फ खरीदने जाते थे, लेकिन शिमला आकर ऐसा करने में ये लोग अपनी हेठी समझते थे। बनियों ने घर पर सामान पहुंचवाने का मुकम्मिल बंदोबस्त कर रखा था। बाबू लोग शाम को दफ्तर से निकलते और जरूरी सामान बनिए को लिखवा देते। आदमी हाथ में चीज लेकर घर नहीं जाता था। इसे नीची निगाह से देखा जाता था। अकसर ये लोग एक-दूसरे को ताना मारते, ‘साले, पहाड़ पर आया है, पहाड़ जैसा कलेजा रख।‘ यही कारण था कि सब जानते हुए भी कि बनिया सिर मूँड़ रहा है, कोई बोलता नहीं था।
लद्दाखी के जिम्मे कोयला सप्लाई
‘बुनियाद अली की बेदिल दिल्ली’ के एक प्रसंग के अनुसार, ‘पहाड़ पर कोयले की खपत बहुत होती थी । इसलिए टाल वाले बाबुओं का गला काटकर हाथ रेंगते और मुंह काला करते थे। शिमला में कोयले के लगभग सभी टाल स्टेशन के पास थे। बाबू लोग टाल पर आकर बोल आते कि इतना कोयला घर भिजवा दें। टाल वाला ग्राहक के सामने कोयला तुलवाकर बोरी में भरवाता और उसके सामने ही कुली को रवाना भी कर देता, लेकिन कुली थोड़ी दूर जाने के बाद लौट आता और कुछ कोयला बोरी में से निकालकर टाल पर डाल देता। शिमला में कोयला ढोने वाले अमूमन लद्दाखी होते थे जो इस धंधे में बड़े माहिर थे।
कुली का किस्सा, कोयले की चोरी
एक बार एक बाबू ने एक लद्दाखी किस तरह पकड़ा, यह किस्सा भी सुनिए। उनका घर टाल से दूर था। वह जानते थे कि ये कुली क्या करते हैं, इसलिए टाल पर कोयला तुलवाकर और भरवाकर उन्होंने उठवाया और कुली के साथ-साथ चल पड़े। कुली इस इंतजार में कि कब बाबू आगे-पीछे हो और वह पलटकर अपना काम करे, लेकिन वह साहब साये की तरह कुली के साथ लगे हुए थे। जब उनका घर निकट आ गया, तो उन्होंने सोचा कि यह कुली इतनी दूर चढ़ाई चढ़कर स्टेशन की तरफ नहीं जाएगा। इसलिए उसे घर जाने के लिए बोल वह बाजार में रुक गए। थोड़ी देर बाद क्या देखते हैं कि कुली तेजी से ऊपर चला जा रहा है। उन्होंने रास्ते में ही उसे जा पकड़ा। ‘बुनियाद अली की बेदिल दिल्ली’ के अनुसार चोर इतना शातिर था कि उसने परों पर पानी नहीं पड़ने दिया।