ब्रिटेन का म्यूजियम, कांगड़ा के सैनिक की वीरगाथा

ब्रिटेन का म्यूजियम, कांगड़ा के सैनिक की वीरगाथा
  • प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटेन के सर्वोच्च बहादुरी पुरस्कार विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित लांस नायक लाला

विनोद भावुक/ कांगड़ा

हम आपको हिमाचल प्रदेश के उस सैनिक की अदम्य साहस और दिलेरी वह प्रेरककथा सुना रहे हैं, जिसने पहले विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश इंडिया आर्मी के सैनिक के तौर पर अपने वतन से दूर फ्रांस और मेसोपोटामिया (वर्तमान इराक) जाकर युद्ध लड़ा।

गोलियों की बौछारों के बीच उस सैनिक ने अपने घायल सैन्य अधिकारियों व सैनिकों को मेडीकल कैंप तक सुरक्षित पहुंचाने में अपनी जान की परवाह न करते हुए जोखिम उठाया।

इस लॉस नायक के बहादुरी के किस्सों की गूंज ब्रिटेन तक सुनाई दी और उसे ब्रिटेन से शीर्ष सैन्य सम्मान विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया।

इस लॉस नायक के बहादुरी के किस्सों की गूंज ब्रिटेन तक सुनाई दी और उसे ब्रिटेन से शीर्ष सैन्य सम्मान विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया।

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित लांस नायक लाला (आधिकारिक रिकॉर्ड में लाला) प्रदेश के इकलौते सैनिक हैं, जिसकी बहुदरी की कथा ब्रिटेन के डिजीटल म्यूजियम में प्रदर्शित की गई है।

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित लांस नायक लाला (आधिकारिक रिकॉर्ड में लाला) प्रदेश के इकलौते सैनिक हैं, जिसकी बहुदरी की कथा ब्रिटेन के डिजीटल म्यूजियम में प्रदर्शित की गई है।

पहले विश्वयुद्ध के 100 साल पूरे होने पर ब्रिटेन में बने म्यूजियम में युद्ध के दौरान सवोच्च साहस दिखाने के लिए विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित 11 देशों के 175 जवानों की वीरता की कहानियां प्रदर्शित की गई हैं, जिनमें अविभाजित भारत के वे छह सैनिक भी शामिल हैं।

ब्रिटिश सेना की डोगरा बटालियन के सैनिक

विश्वयुद्ध में भाग लेते डोगरा सैनिक।

लाला का जन्म तत्कालीन अविभाजित पंजाब के कांगड़ा जिला के परोल गांव में हुआ था। चूंकि उस दौर में इलाके में कोई स्कूल नहीं था, इसलिए वह औपचारिक शिक्षा नहीं ले पाए। 19 साल की उम्र में यह हट्टा- कटटा गबरू तत्कालीन ब्रिटिश भारतीय सेना की 41 वीं डोगरा बटालियन में सैनिक भर्ती हो गया। सेना में नौकरी के दौरान उनकी क्षमता और योग्यता के चलते हमेशा अधिकारियों ने उनकी पीठ थपथपाई।

इराक की लड़ाई में दिखाया दम

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फांस में 13 महीने की भीषण लड़ाई लड़ने के बाद 35 वी ब्रिगेड की बटालियन के तौर पर 41 डोगरा मेसोपोटामिया में अल ओराह के खंडहरों के पास तुर्की की टुकडियों पर हमले के लिए डटी हुई थी। 21 जनवरी, 1916 को सुबह 7 बजे 41 डोगरा ने तुर्की की सैनिक टुकडियों पर हमला किया, लेकिन जल्द ही तुर्की सेना के निशाने पर आ गई।

बटालियन के दो अधिकारियों सहित कई सैनिक शहीद हो गए और कई बुरी तरह से जख्मी हो गए। इस मौके पर लाला ने बहादुरी और दिलेरी का परिचय दिया, उसी ने उन्हें विक्टोरिया क्रास का हकदार बना दिया।

आर्मी रिकॉर्ड में दर्ज साहस का किस्सा

डोगरा रेजिमेंटल अभिलेखागार की युद्ध डायरी में दर्ज कार्रवाई में सैनिक लाला की वीरता का उलेख कुछ यूं है।

21 जनवरी 1916 की सुबह अल ओरहा की टुकडियों पर 41 वें डोगरा के हमले के दौरान सैनिक लांस नायक लाला की भूमिका सबसे अहम रही। करीब 200 गज आगे बढने के बाद  कंपनी को तुर्की के स्टीक हमले का शिकार होना पड़ा।

ब्रिटिश अफसरों को बचाया

सैनिक लाला ने पड़ोसी बटालियन के एक ब्रिटिश अधिकारी को दुश्मन की खाइयों के करीब घायल देखा अपनी सुरक्षा की परवाह न करते हुए अस्थाई आश्रय स्थल तक पहुंचाया।

न केवल उस अधिकारी, बल्कि अन्य घायल सहायकों को भी बटालियन मुख्यालय के नजदीक मेडिकल कैंप तक पहुंचाया। खुद की जान के लिए जोखिम के बीच सैनिक लाला का यह बहादुरी भरा कारनामा था।

जमादार लाला विक्टोरिया क्रॉस

13 मई 1916 को युद्ध के मैदान में सैनिक लाला की बहादुरी को देखते हुए विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित कर हवलदार के पद पर पदोन्नत किया गया।

नॉन कमीशन ऑफिसर के रूप में पांच साल सेवा देने के बाद हवलदार लाला को विक्टोरिया कमीशन प्रदान कर उन्हें जमादार बना दिया गया। वह ब्रिटिश आर्मी से जमादार लाला विक्टोरिया क्रॉस के पद से रिटायर्ड हुए अपनी बहादुरी से विदेश में पहाड़ का मान बढ़ाने वाला यह सैनिक 23 मार्च, 1927 को स्वर्ग सिधार गया।

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