1937 Model French Car Shimla Connection अमेलिया द्वीप में हुई नीलामी में सौ करोड़ में बिकी 1937 मॉडेल की फ्रांसीसी कार का क्या है शिमला कनेक्शन?

1937 Model French Car Shimla Connection अमेलिया द्वीप में हुई नीलामी में सौ करोड़ में बिकी 1937 मॉडेल की फ्रांसीसी कार का क्या है शिमला कनेक्शन?
विनोद भावुक/ शिमला 
यह कार कभी भारत नहीं आई, लेकिन इसे भारत के पैसे से खरीदा गया था। 1937 मॉडेल (1937 Model French Car Shimla Connection) की इस कार की जब इसी साल मार्च में अमेलिया द्वीप में गुडिंग एंड कंपनी ने नीलामी की तो एक बोलीदाता ने 100 करोड़ से भी ज्यादा की बोली लगा कर खरीद लिया। कार के लिए अंतिम बोलीदाता ने 13,425,000 डॉलर लगाई यानी 100 करोड़ से भी ज्यादा कीमत चुकाई। इस कार ने नीलामी में बेची जाने वाली अब तक की सबसे मूल्यवान फ्रांसीसी कार होने के लिए विश्व रिकॉर्ड बनाया। इस कार का न केवल भारत से ही नहीं, बल्कि शिमला से भी कनेक्शन है। यह कपूरथला के महाराजा परमजीत सिंह ने लंदन में स्टेला के साथ शादी करने पर उसे गिफ्ट के तौर पर भेंट की थी। महाराजा परमजीत की मृत्यु के बाद स्टेला ने अपने जीवन के आखिरी दिन शिमला में गुजारे थे।
इंग्लैंड में जन्म, पेरिस में कैबरे डांसर
स्टेला का जन्म 13 अक्टूबर, 1904 को कार्टन, केंट, यूनाइटेड किंगडम में हुआ था। उन्हें लंदन के लिटिल थिएटर में एक कोरस में नौकरी मिल गई। कंपनी पेरिस गई, जहां ‘फोलीज बर्गेरे’ के प्रमोटर उसके रूप और बहिर्मुखता से प्रभावित हुए। वह ‘फोलीज बर्गेरे’ के नाइट क्लब कैबरे के कलाकारों में शामिल हो गईं।
शो में देख कर मोहित हुए महाराजा
कपूरथला के महाराजा परमजीत सिंह अपनी पत्नी बृंदा के साथ साल 1922 में शो में शामिल हुए और 18 वर्षीय इस नर्तकी के प्यार में पड़ गए। शो के बाद, वह मंच के पीछे गए और स्टेला को फूलों का एक भव्य गुलदस्ता भेंट किया। उसके बाद स्टेला के जहां भी शो हुए उन्होंने सभी शो में भाग लिया।
जुब्बल की राजकुमारी से बचपन में हुई थी शादी
महाराजा परमजीत का विवाह हिमाचल प्रदेश के जुब्बल राज्य की खूबसूरत राजकुमारी बृंदा देवी से हुआ था। उनका जन्म 11 जनवरी, 1892 को राणा करम चंद और उनकी दूसरी पत्नी से हुआ था। बृंदा की सगाई तब हुई थी जब वह सात साल की थी और परमजीत नौ साल के थे। परमजीत सिंह के पिता महाराजा जगतजीत सिंह उस समय कपूरथला पर शासन कर रहे थे और बृंदा उनकी देखभाल में आ गई।
जुब्बल की राजकुमारी, पेरिस में पढ़ाई
बृंदा को शिक्षित होने के लिए पेरिस भेज दिया गया। महाराजा जगतजीत सिंह चाहते थे कि उनकी होने वाली बहू को फ्रेंच बोलना आनी चाहिए और फ्रेंच शिष्टाचार से परिचित होना चाहिए। जब बृंदा परमजीत से शादी करने के लिए भारत लौटी, तो उसके ससुर यह देखकर हैरान रह गए कि उसने न केवल फ्रांसीसी लोगों के शिष्टाचार सीखे थे, बल्कि पश्चिमी दिमाग भी था। उसे बेटा नहीं हो सकता था, उनकी तीन बेटियां थीं।
कपूरथला का ‘स्टेला कॉटेज’
परमजीत पहले से ही स्टेला के प्यार पागल था और इसलिए साल 1919 में उसे भारत ले आया। परमजीत स्टेला के साथ अपने संबंधों को गुप्त रखता था लेकिन वह दबंग थी और खुले तौर पर उसके साथ अपने संबंध की घोषणा करती थी। महाराजा जगतजीत सिंह ने उन्हें कभी भी कपूरथला के महल में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी। परमजीत ने उसके लिए एक कॉटेज बनाया और उसका नाम ‘स्टेला कॉटेज’ रखा। कपूरथला में स्टेला उस कॉटेज में रहती थी।
कांगड़ा की युवती से महाराज की शादी
जब बृंदा को पुत्र नहीं हुआ तो महाराजा ने परमजीत से फिर से विवाह करने का विचार किया। उसकी निगाह एक बार फिर पहाड़ों पर पड़ी। उन्हें कांगड़ा की एक उपयुक्त राजपूत लड़की मिली। लीलावती देवी स्टेला के बिल्कुल विपरीत थी। परमजीत ने अनिच्छा से साल 1932 में कांगड़ा की लीलावती देवी से शादी की।
काम के बदले स्टेला ने वसूले दस लाख
परमजीत अड़ गया कि अपनी दुल्हन के पास नहीं जाएगा। महाराजा जगतजीत सिंह जानते थे कि केवल स्टेला ही परमजीत को राजी कर सकती है। उसने इसके लिए स्टेला से संपर्क किया। स्टेला ने यह काम करने के लिए दस लाख रुपये मांगे। महाराजा मान गए और पैसे स्टेला को दे दिए। उसने परमजीत को लीलावती के बिस्तर पर जाने के लिए मजबूर किया। लीलावती देवी से परमजीत को सुखजीत सिंह के रूप में पुत्र प्राप्ति हुई।
महल से बाहर हो गई स्टेला
परमजीत ने स्टेला के साथ भारत छोड़ दिया और साल 1937 में इंग्लैंड के एक गुरुद्वारे में उसके साथ शादी कर ली और उनका नाम बदलकर नरिंदर कौर कर दिया गया। परमजीत 1948 में महाराजा बने, लेकिन 1955 में बीमार पड़ गए। मौके का फायदा उठाकर स्टेला ने कपूरथला से बहुत सारे पैसे, सोना, हीरे आदि हड़प लिए थे। स्टेला को परमजीत की मृत्युशय्या से दूर रखा गया। अंतिम संस्कार में शामिल होने के बाद बृंदा ने उसे महल से बाहर निकाल दिया।
इंग्लैंड गई, भारत लौटी, शिमला पहुंची
स्टेला इंग्लैंड चली गई, लेकिन वहां बोर हो गई। वह भारत वापस आ गई और दिल्ली की डिफेंस कॉलोनी में एक मामूली से घर में रहने लगी। वह वहां खुद को अकेला महसूस करती थी और दिल्ली शायद उसे रास नहीं आती थी। इसलिए साल 1957में वह शिमला आ गईं और यहां होटल सेसिल के एनेक्सी में रहने लगीं।
अस्पताल में तोड़ दिया दम
हालाँकि स्टेला 60 वर्ष की थी, फिर भी उसने एक स्वच्छंद जीवन व्यतीत किया। शिमला के कई मूल निवासियों का कहना है कि उन्होंने स्टेला को किराने के सामान और शराब की बोतलों से भरी शॉपिंग ट्रॉली को द मॉल में धकेलते देखा था। जनवरी 1984 में, वह नशे की हालत में सेसिल एनेक्सी में अपने अपार्टमेंट में गिर गई और कई दिनों तक बेहोश रही। पुलिस दरवाजा तोड़कर उसे अस्पताल ले गई, लेकिन उसकी अस्थिर हालत को देखते हुए उसे दिल्ली के सेंट स्टीफेंस अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया। अस्पताल में ही 23 फरवरी, 1984 को उसकी मृत्यु हो गई।
स्टेला का खजाना कहां है?
कपूरथला की महारानी स्टेला दिल्ली के पृथ्वी राज रोड कब्रिस्तान में एक सादे कंक्रीट स्लैब के नीचे शांति से लेट गईं। यह किसी महारानी का मकबरा नहीं था। किसी गुमनाम व्यक्ति ने साल 1999 में उनके लिए एक संगमरमर का पत्थर खड़ा किया, जिसमें लिखा है: स्टैला ऑफ़ मडगे 1904-1984…’एक कल्पित कहानी.’ एक अंग्रेजी टेलीविजन ने 1997 में ‘फॉर लव ऑर मनी’ शीर्षक के तहत स्टेला की जीवन कहानी को प्रदर्शित किया, जिसमें दर्शकों से पूछा गया, ‘क्या कोई जानता है कि स्टेला का खजाना कहां है?’

himachalbusiness1101

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