छोटी काशी : प्राचीन इतिहास की गुफाओं में अंधेरा

छोटी काशी : प्राचीन इतिहास की गुफाओं में अंधेरा
  • मंडी से है बौध धर्म का गहरा नाता, देश-विदेश से आते बौद्व अनुयायी

समीर कश्यप/ मंडी

छोटी काशी के नाम से मशहूर छोटी-छोटी पहाड़ियों में बसी मंडी रियासत का इतिहास करीब 1100 एडी के बाद की सेन वंशावली के कारण ज्ञात है।

छोटी काशी के प्राचीन इतिहास के बारे में अभी भी ज्यादा जानकारी प्रकाश में नहीं आई है, हालांकि कुल्लुत, त्रिगर्त (कांगडा) और चंबा के इतिहास के बारे में इससे पहले की जानकारियां उपलब्ध हैं।

यह कैसे हो सकता है कि ब्यास नदी घाटी की कोई सभ्यता नहीं रही हो, जबकि सभ्यताएं नदियों के किनारे ही बसी होती हैं।

बौध ग्रंथों में जोहार या सोहार

छोटी काशी मंडी में सेन वंश के आने से पहले यहां पर स्थानीय प्रमुखों (राणाओं) का जिक्र  मिलता है, जिन पर अधिपत्य जमा कर उनकी जमीनों पर मंडी रियासत की बुनियाद रखी गई। छोटी काशी के इतिहास के प्राचीन समय को जानने के लिए बौध जानकारियां कारगर हो सकती हैं।

छोटी काशी मंडी में सेन वंश के आने से पहले यहां पर स्थानीय प्रमुखों (राणाओं) का जिक्र  मिलता है, जिन पर अधिपत्य जमा कर उनकी जमीनों पर मंडी रियासत की बुनियाद रखी गई। छोटी काशी के इतिहास के प्राचीन समय को जानने के लिए बौध जानकारियां कारगर हो सकती हैं।

बौध ग्रंथों में छोटी काशी मंडी का जिक्र जोहार या सोहार नाम से आता है। बौध जानकारियों के मुताबिक जोहार नाम का राज्य मंडी और रिवालसर क्षेत्र में था।

इतिहास संकेत देता है कि छोटी काशी के नाम से मशहूर मंडी में कभी गुरू पदमसंभव ने तपस्या की थी।

स्थानीय लड़की मंदरवा उनकी शिष्या बनी। लड़की के परिजनों को उनका सानिध्य रास न आने के कारण दोनों को कष्ट पहुंचाने की कोशिश की।

‘खुआराणी’ : छोटी काशी में बौधों की आस्था

मंदरवा के प्रसंग में एक याद और कहानी छोटी काशी के खुआराणी मंदिर से भी जुड़ी है। बताते हैं कि यहीं राजा ने मंदरवा और गुरू पदम संभव को कुंए में फैंक दिया गया था।

मंदरवा के प्रसंग में एक याद और कहानी छोटी काशी के खुआराणी मंदिर से भी जुड़ी है। बताते हैं कि यहीं राजा ने मंदरवा और गुरू पदम संभव को कुंए में फैंक दिया गया था।

फिर कुंए को आग के हवाले कर दिया था। बावजूद इसके वे सुरक्षित रहे। इसलिए इस जगह को ‘खुआराणी’ कहा जाता है।

छोटी काशी के इस मंदिर के प्रति बौद्व धर्म के अनुयायियों की गहरी आस्था है और इस स्थल पर बौद्ध श्रद्धालु दर्शन करने के लिए जरूर आते हैं।

विक्टोरिया पुल के पास पुरातन गुफा

छोटी काशी के विक्टोरिया पुल के नजदीक पुरानी मंडी में व्यास नदी किनारे की एक गुफा प्राचीन गुफा है। इस गुफा को लेकर भी बौद्व धर्म के अनुयायियों में खास आकर्षण रहा है।

छोटी काशी के विक्टोरिया पुल के नजदीक पुरानी मंडी में व्यास नदी किनारे की एक गुफा प्राचीन गुफा है। इस गुफा को लेकर भी बौद्व धर्म के अनुयायियों में खास आकर्षण रहा है।

देश-विदेश से छोटी काशी मंडी आने वाले बौद्व अनुयायी वर्तमान में भी इस गुफा के दर्शन करना भी नहीं भूलते हैं।

नागार्जुन चट्टान : बौध धर्म की संकेतक व सूचक

छोटी काशी मंडी के टारना मुहल्ला में नागार्जुन चट्टान भी स्थित है। नागार्जुन बौध धर्म के प्रसिद्ध गुरू रहे हैं। हालांकि वह दक्षिणी भारत से संबंध रखते थे, लेकिन इतिहास इस बारे में सपष्ट है कि बौध दर्शन के विद्वान तथा दार्शनिक उत्तरी भारत, पंजाब और पेशावर तक फैले थे।

छोटी काशी मंडी के टारना मुहल्ला में नागार्जुन चट्टान भी स्थित है। नागार्जुन बौध धर्म के प्रसिद्ध गुरू रहे हैं। हालांकि वह दक्षिणी भारत से संबंध रखते थे, लेकिन इतिहास इस बारे में सपष्ट है कि बौध दर्शन के विद्वान तथा दार्शनिक उत्तरी भारत, पंजाब और पेशावर तक फैले थे।

हो सकता है कि बौध दार्शनिक नागार्जुन, नागसेन, असंग आदि अनेकों बौद्ध विद्वानों से छोटी काशी का यह क्षेत्र परिचित रहा हो। मंडी में नागार्जुन चट्टान का होना यहां पर बौध धर्म की उपस्थिति का संकेतक और सूचक तो लगता ही है।

हवा में उड़ने वाला तिब्बती और करिशमाई गुटका

मनमोहन (आईसीएस) लिखित छोटी काशी मंडी के इतिहास में राजा सिद्धसेन के समय की एक घटना का जिक्र है। घटना के मुताबिक एक तिब्बती उड़ता हुआ आता था और राजा के महल के साथ वाली पहाड़ी पर रूकता था।

मनमोहन (आईसीएस) लिखित छोटी काशी मंडी के इतिहास में राजा सिद्धसेन के समय की एक घटना का जिक्र है। घटना के मुताबिक एक तिब्बती उड़ता हुआ आता था और राजा के महल के साथ वाली पहाड़ी पर रूकता था।

जब विश्राम करते उसकी आंख लग गई तो राजा ने उसके उस गुटके (किताब) को कब्जे में ले लिया, जिसकी मदद से वह उड़ता था।

आंख खुलने पर उनसे राजा से गुटका लौटाने का अनुरोध किया कि वह हरिद्वार से गंगाजल लेकर तिब्बत जाता है। दयालु राजा ने तिब्बती को गुटका लौटा दिया।

राजा को करिश्माई गुटके की भेंट

जब वह तिब्बती तिब्बत पहुंचा तो राजा तारानाथ ने उससे देरी का कारण पूछा। सुन कर राजा दंग रह गया कि करिशमाई गुटके को प्राप्त करने के बाद भी कोई राजा ने उसे वापिस लौटा सकता है।

छोटी काशी मंडी के राजा सिद्धसेन की दयालुता से प्रसन्न होकर राजा ताराचंद ने करिश्माई गुटका उन्हें भेंट कर दिया।

टारना नाम का तिब्बत कनेक्शन

छोटी काशी मंडी की टारना की पहाड़ी में माता श्यामाकाली का मंदिर है, जिसे श्याम सेन के समय में बनाया गया था। लोगों का कहना है कि मंदिर में तारा माता विराजमान है, इसलिए इसे टारना या तारना भी कहा जाता है।

छोटी काशी मंडी की टारना की पहाड़ी में माता श्यामाकाली का मंदिर है, जिसे श्याम सेन के समय में बनाया गया था। लोगों का कहना है कि मंदिर में तारा माता विराजमान है, इसलिए इसे टारना या तारना भी कहा जाता है।

बौध काली को ही तारा मानते हैं। हिंदू धर्म में भी तारा माता की पूजा काली के रूप में ही होती है। टारना मंदिर बौधों की आस्था का केंद्र है।

एक और संकेत यह भी मिलता है कि टारना पहाड़ी का नाम मंडी के राजा सिद्ध सेन से मधुर संबंध होने के कारण तिब्बत के राजा तारानाथ के नाम पर पड़ा हो, जो बाद में टारना बन गया हो।

तिब्बत में संकट जोहार भेजे धार्मिक ग्रंथ

ऐतिहासिक स्त्रोत बताते हैं कि तिब्बत में संकट आने पर गुरू पदम संभव को वहां बुलाया गया और उन्होंने उस संकट को दूर किया था।

यह भी पता चलता है कि तिब्बत में संकट के दौरान वहां के धर्मग्रंथों व साहित्य को सुरक्षित रखने के लिए आज की छोटी काशी और तब के जोहार भेजा गया था।

ऐतिहासिक स्त्रोत बताते हैं कि तिब्बत में संकट आने पर गुरू पदम संभव को वहां बुलाया गया और उन्होंने उस संकट को दूर किया था।

यह भी पता चलता है कि तिब्बत में संकट के दौरान वहां के धर्मग्रंथों व साहित्य को सुरक्षित रखने के लिए आज की छोटी काशी और तब के जोहार भेजा गया था। बौध धर्म के अनुयायियों को विश्वास है कि यह धार्मिक शिक्षाएं आज भी जोहार में कहीं रखी गई हैं।

राहुल के प्रयासों पर निष्कर्ष की जरूरत

शोध की कमी के चलते छोटी काशी मंडी के प्राचीन इतिहास की कड़ियां नहीं जोडी जा सकी हैं। अधिकतम बौद्ध संदर्भ तिब्बती भाषा में होने के कारण इनसे सूत्रों को जोड़ने में सफलता नहीं मिल पाई है।

हालांकि प्रसिद्ध इतिहासकार, लेखक एवं अध्येता राहुल सांस्कृत्यायन ने इस दिशा में भागीरथी प्रयास किए थे, लेकिन उनके प्रयासों को निष्कर्षों तक पहुंचाने का अहम कार्य इतिहासकार शायद अभी तक नहीं कर पाए हैं।

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