शिमला की सैर करवाते, हिस्ट्री से वाकिफ करवाते
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सुमित राज वशिष्ठ ने अपनी किताबों में सहेजी शिमला की स्मृतियां, शिमला पर बुनी कहानियां
पौमिला ठाकुर/ शिमला
शिमला शहर से उसकी मोहब्बत और दीवानगी का आलम यह है कि वह शख्स अपना अधिकतर समय शिमला को समझने-सहेजने व घूमने में लगाता है और बाकी बचे समय में शिमला के बारे में लिखता रहता है।
शिमला के मुशायरों की शान गजलकार, कहानीकार, उपन्यासकार, फोटोग्राफर, पर्वतारोही, टूरिस्ट गाइड, हिमाचली संस्कृति के संक्षरक और रोज शिमला की सड़कों पर चहलकदमी करने वाले जागरूक नागरिक सुमित राज वशिष्ठ खुद शिमला के पुरातन इतिहास पर गहरी पकड़ रखते हैं।
उन्होंने हिमाचल प्रदेश का चप्पा-चप्पा कदमों तले कई बार नापा है। शिमला-कालका रेलवे ट्रेक को केवल इसलिए पैदल पार किया, ताकि उसकी किताब में यथार्थ झलके और वह स्वयं अपने हाथों से ली हुईं तस्वीरें अपनी किताब में प्रयोग कर सकें। शिमला व लेखन के प्रति उनकी दीवानगी व जुनून का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है।
पहले होटल उद्योग, फिर टूरिस्ट गाउड
सुमित राज वशिष्ठ का जन्म रेलवे इंजीनियर एवं अपने समय के एक बेहतरीन शायर तिलक राज वशिष्ठ उर्फ तलत इरफानी व मां मीना वशिष्ठ के घर में 11 फरवरी 1967 को शिमला में हुआ।
सुमित चार भाइयों में सबसे बड़े हैं। दिल्ली यूनिवर्सिटी से मास्टर्स डिग्री इन टूरिस्म करने के बाद कुछ वर्षों तक उन्होंने देश के कई हिस्सों में कई बड़े नामी होटल ग्रुप्स के साथ काम किया।
बाद में उन्होंने शिमला को अपनी कर्मभूमि बनाकर बतौर टूरिस्ट गाइड न केवल पर्यटन के क्षेत्र में अनूठे प्रयोग किए, बल्कि शिमला के इतिहास को खंगालने का अहम काम भी किया है।
‘शिमला वॉक्स’ शिमला का हैरीटेज वॉक
सुमित के व्यक्तित्व का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि उन्होंने अपने शिमला प्रेम और पैदल चलने के शौक को ही अपनी आजिविका का साधन बना लिया।
उन्होंने साल 2006 में ‘शिमला वॉक्स’ नाम से अपनी एक कंपनी बनाई, जिसमें उन्होंने पढ़े-लिखे बेरोजगार युवाओं को खुद प्रशिक्षित कर टूरिज्म कारोबार की बारीकियां समझाईं व पर्यटकों को हैरिटेज वॉक करवाना शुरू किया।
अधिकतर विदेशी क्लाइंट्स को लेकर शिमला के चप्पे-चप्पे से वाकिफ करवाना व शिमला के इतिहास से भी रू-ब-रू करवाना इन गाइड्स का मुख्य कार्य है।
‘शिमला : ए ब्रिटिश हिमालयन टाउन’ से चमका नाम
वर्ष 2003 में एक ब्रिटिश क्लाइंट से मिलकर अचानक उनके मन में टूरिस्ट गाइड बनने का ख्याल आया।
उस ब्रिटिश क्लाइंट के पूछने पर कि क्या शिमला के इतिहास को समझने के लिए कोई अच्छी किताब मिल सकती है? सुमित राज ने शिमला शहर की बुक शॉप्स को खंगाल डाला, लेकिन ऐसी कोई किताब नहीं मिलने पर उन्हें बहुत अचंभा हुआ।
इसी से प्रेरित होकर सुमित ने वर्ष 2005 में शिमला के इतिहास के बारे खोजबीन करनी शुरू की। जब वर्ष 2010 में उनकी किताब प्रकाशित हुई तो उसके परिणाम चौकाने वाले थे।
‘शिमला : ए ब्रिटिश हिमालयन टाउन’ नाम की यह किताब शिमला की बेस्ट सेलर होने के साथ आज इंगलैंड के लगभग पांच हजार घरों में मौजूद है।
‘टी शॉप एट नारकंडा’ उपन्यास की धूम
सुमित ने शिमला वॉक्स, शिमला लेन्स एंड ट्रेल्स, ए जर्नी टू शिमला बाय टॉय ट्रेन आदि पुस्तकें शिमला के बारे लिखीं हैं। उन्होंने दो कहानियों की किताबें भी लिखीं हैं, जिनके टाइटल ‘शिमला डेज’ व ‘शिमला बाजार’ हैं। हाल ही में आई उनकी पुस्तक उनकी लॉन्गवुड डेज़ भी बेहद चर्चा में रही है।
‘टी शॉप एट नारकंडा’ उनका पहला उपन्यास जनवरी 2017 में आया। सुमित कई अंग्रेजी किताबों के लेखक होने के साथ-साथ अपने मरहूम पिता की तरह एक बेहतरीन शायर भी हैं, जिनकी खूबसूरत गज़लों व नज़मों का गवाह गेयटी थियेटर कई बार रहा है।
‘टी शॉप एट नारकंडा’ उपन्यास पर अकादमी के फिल्म डिवीजन की तरफ से फिल्म का निर्माण किया गया।
ट्रैकिंग और मांउटेनरिंग का शौक
सुमित को पहाड़ों से इतना लगाव है कि हिमाचल प्रदेश का कोई ही पास ऐसा बचा होगा, जहां उन्होंने ट्रेकिंग न की होगी। उन्होंने 6000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले रालम धुरा पास, कालिंदी खाल पास, लमखागा पास, रोपिन पास और भाभा पास अनेक बार पार किए हैं।
उनकी कंपनी शिमला वॉक्स पर्यटकों को हिमाचल में ट्रेकिंग और मांउटेनरिंग आदि का प्रबंध करती है, जिससे जहां उनकी आजीविका भी चलती है, वहीं कुदरत के करीब रहने का इनका शौक भी पूरा होता है।
पर्यटकों को करना चाहिए पहाड़ का सम्मान
शिमला के सुमित का मानना है कि हिमाचल प्रदेश में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। यहां सैलानियों का हर मौसम में बेहिसाब बेधडक़ चले आना और यहां की भौगोलिक व सामाजिक स्थितियों से अनभिज्ञ होने के कारण कुछ छोटी-मोटी परेशानी उत्पन्न होने पर यहां उत्पात मचाना, स्थानीय लोगों, भाषा व रहन-सहन को देखकर लोगों पर छींटाकशी करने से पहाड़ों का माहौल कई बार तनावपूर्ण हो जाता है।
ऐसे दृश्य शिमला व मनाली में अब आम बात हैं। पर्यटकों को यहां आने से पहले यहां की भौगोलिक स्थिति से अवगत होना चाहिए और यह समझना चाहिए कि पहाड़ की अपनी एक संस्कृति होती है, अपनी तहजीब होती है।
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