वजीरी रूपी : यहां ‘गॉड’ है, ‘डेविल गॉड’ नहीं

वजीरी रूपी : यहां ‘गॉड’ है, ‘डेविल गॉड’ नहीं
  • ‘वजीरी रूपी’ पुस्तक में कुल्लू के देवताओं के लिए ‘डेविल गॉड’ शब्द

यतिन पंडित/ कुल्लू

‘वजीरी रूपी’ पुस्तक में कुल्लू के देवताओं के लिए ‘डेविल गॉड’ शब्द का प्रयोग हुआ है। डेविल गॉड’ शब्द का प्रयोग 1860-70 के दशक में ब्रिटेन के खनिज भंडारों के शोधार्थी जॉन कलवर्ट की पुस्तक ‘वजीरी रूपी’ में किया गया है।

कलवर्ट ने विभिन्न चित्रकला मुद्रण के अंतर्गत यहां के देवताओं को विभिन्न स्थान पर डेविल गॉड की संज्ञा दी है।

देवताओं की भूमि में शैतान शब्द

आर. मर्चिसन से व्यक्तिगत और गोर्डन कनिंघम की पुस्तक के वृतांतों से प्रेरणा पाकर उन्होंने इस क्षेत्र का दौरा किया। उनकी पुस्तक ‘वजीरी रूपी’ में अपनी यात्रा का आरंभ उन्होंने शिमला से बताया है।
इस चित्र को डेविल गोड कहा है लेखक ने।

कुल्लू घाटी को देवताओं की भूमि कहा जाता है। यहां का देव समाज यहां की सांस्कृतिक आधारशिला है, जिस पर पूर्वकाल से ही कई बुद्धिजीवियों ने शोध किया है।

यहां के देव समाज के संदर्भ मे भी ‘वजीरी रूपी’ पुस्तक में शैतान शब्द का प्रयोग हुआ है। आश्चर्य की बात है कि इस शब्द का प्रयोग यहां के देवताओं के लिए किया गया है।

खनिजों को खोजने वाले की किताब

वजीरी रूपी पुस्तक में जे. कलवर्ट ने सुल्तानपुर स्थित रघुनाथ जी को भी जगरनॉट की उपमा दी है। उन्होंने जगरनॉट को डावी (देवी) भी कहा है। मनाली की हिडिंबा देवी को भी जगरनॉट कहा गया है।
हिडिंबा देवी।

जे. कलवर्ट ब्रिटिश सरकार के लिए विभिन्न खनिज संसाधनों की खोज का कार्य करते थे। उन्हें साल 1869 में खनिज पदार्थों की खोज का जिम्मा सौंपा गया। नवंबर 1871 में उन्होंने हिमालय के इस क्षेत्र की यात्रा की थी।

आर. मर्चिसन से व्यक्तिगत और गोर्डन कनिंघम की पुस्तक के वृतांतों से प्रेरणा पाकर उन्होंने इस क्षेत्र का दौरा किया। उनकी पुस्तक ‘वजीरी रूपी’ में अपनी यात्रा का आरंभ उन्होंने शिमला से बताया है।

सुल्तानपुर पहुंचने पर डेविल गॉड का प्रयोग

जे. कलवर्ट कुल्लू के सुल्तानपुर पहुंचने पर उन्होंने पहली बार डेविल गॉड शब्द का प्रयोग घाटी के देवी- देवताओं के लिए किया।
खनिजों की खोज में आया था कलवर्ट।

जे. कलवर्ट कुल्लू के सुल्तानपुर पहुंचने पर उन्होंने पहली बार डेविल गॉड शब्द का प्रयोग घाटी के देवी- देवताओं के लिए किया। वजीरी रूपी पुस्तक के पृष्ठ 24 पर इसका उल्लेख करते हुए उन्होंने लिखा है कि शहर के दक्षिण में एक रमणीय बड़ा मैदान है (ढालपुर मैदान), जिसे इमारतों और खेतीबाड़ी से मुक्त रखा गया है।

यहां डेविल गॉड, मुंडेर, जगरनॉट या देवी (जिसे डावी कहा गया है) जो इस क्षेत्र पर अपना अधिकार मानते हैं, वे इसे अपने लिए असंगत नहीं बनने देना चाहते।

डेविल गॉड और जगरनॉट

वजीरी रूपी पुस्तक के के पृष्ठ 27- 28 पर अपने डेविल गॉड की अपनी पूर्वाग्रह से संलिप्त संकल्पना को विस्तार देते हुए उन्होंने यहां के सभी देवी-देवताओं को डेविल गॉड कहा है।

दो पृष्ठ पूरी तरह से डेविल गॉड की अवधारणा को समर्पित हैं, जबकि दो पृष्ठों में जगरनॉट के बारे में बताया गया है।

हिडिंबा देवी को कहा जगरनॉट

वजीरी रूपी पुस्तक में जे. कलवर्ट ने सुल्तानपुर स्थित रघुनाथ जी को भी जगरनॉट की उपमा दी है। उन्होंने जगरनॉट को डावी (देवी) भी कहा है।

मनाली की हिडिंबा देवी को भी जगरनॉट कहा गया है। जगरनॉट वास्तव में अंग्रेजी भाषा में प्रयुक्त होने वाला एक शब्द है, जिसका प्रयोग अजेय के रूप में संदर्भित शाब्दिक या रुपक शक्ति की व्याख्या के लिए होता है।

तो इसलिए कहा है जगरनॉट!

जगरनॉट शब्द का सृजन केवल दृश्य बोध के अनुसार एक बड़े जनसमूह को पुरी की रथयात्रा में भाग लेते देखने के कारण हुआ है। दशहरा उत्सव के दौरान कुल्लू के अधिष्ठाता रघुनाथ की रथयात्रा का आयोजन किया जाता है।

संभवत: इसे देखकर ही जे. कलवर्ट ने अपनी संकल्पना को और सुदृढ़ बनाया होगा। पाश्चात्य संस्कृति में जगरनॉट को शैतानी शक्ति का प्रतिरूप माना जाता है, जिस कारण जे. कलवर्ट ने यहां के देवी-देवताओं को यह उपमा दे दी।

प्रामाणिक नहीं पुस्तक के संदर्भ

जे. कलवर्ट की पुस्तक वजीरी रूपी के यात्रा संस्मरणों का संदर्भ आज बहुत से विद्वानों के लेखों में देखने को मिल जाता है। खनिज शोधार्थी के रूप में जे. कलवर्ट एक प्रख्यात विद्वान रहे हैं।

उनकी पुस्तक वज़ीरी रूपी केवल भौगोलिक प्रमाणों और खनिज भंडारों के प्रमाण के लिए ही सार्थक मानी जा सकती है, साहित्यिक और सांस्कृतिक विषयों पर इस पुस्तक के संदर्भ प्रामाणिक नहीं माने जा सकते।

हिंदू मान्यताओं में नहीं डेविल

डेविल का अर्थ है शैतान। डेविल की अवधारणा वास्तव में हिंदू मान्यताओं में कभी नहीं रही। इसकी आरंभिक अवधारणा यहूदी धर्म और इब्राहिमी संप्रदाय द्वारा अपनी मान्यताओं में जोड़ी गई थीं। यहूदी मान्यताओं में इसे डेविल भी कहा जाता है। अरब और यहूदी समुदायों में ऐसी मान्यताएं हैं कि शैतान पहले ईश्वर का फरिश्ता था, जिसने ईश्वर का विद्रोह किया और फलस्वरूप उसे स्वर्ग से निकाल दिया गया।

इसके बाद वह सभी बुराइयों का प्रतीक बन गया और सभी प्रकार के अकर्मों का कारण माना गया। उसे पतित देवदूत, ईश्वर का विरोधी, दुष्ट, प्राचीन सर्प, परदार सांप (ड्रैगन), गरजने वाला सिंह, इहलोक का नायक कहा गया है।

कुल्लू पर विदेशियों के कई शोध

आरंभिक ब्रिटिशकाल में बहुत से अंग्रेज यात्री हिमालय की इस मनमोहक घाटी की सांस्कृतिक विविधता, प्राचीन इतिहास, रहन- सहन, रीति-रिवाजों, पुरातात्विक उत्खनन और प्राकृतिक सौंदर्य पर विस्तार से शोध करके उनका कलमबद्ध संकलन कर चुके थे।

हिमालय की अपार रहस्यमय विविधता आदिकाल से देश-विदेश के खोजकर्ताओं और यात्रियों को आकर्षित करती रही है।

पुरातत्व व संस्कृति पर शोध

आरंभिक विदेशी शोधकर्ताओं में विलियम मूरक्राफ्ट (मई 1820 में कुल्लू की यात्रा), अलेक्जेंडर कंनिंघम (भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के प्रथम जर्नल 1860 से 1880 के दशक में) और कर्नल एपीएफ हारकोर्ट (1860 से 1890) के दशक में हिमालयन डिस्ट्रिक ऑफ कुल्लू, लाहौल एंड स्पिति और रैंबल इन कुल्लू के लेखक प्रमुख थे। उन्होंने कुल्लूत जनपद के लगभग हर क्षेत्र पर पुरातात्विक व सांस्कृतिक शोधकार्य किया था।

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