ममलेश्वर महादेव : 5000 साल पुराना 200 ग्राम गेहूं का दाना

ममलेश्वर महादेव : 5000 साल पुराना 200 ग्राम गेहूं का दाना
करसोल के ममेल गाँव में स्थित मामलेश्वर महादेव मंदिर ।

विनोद भावुक/ मंडी

क्या आपने कभी 200 ग्राम वजन का गेंहूं का दाना देखा है? महाभारत काल का यानी कि 5000 साल पुराना। यदि नहीं तो, आप इसे स्वयं अपनी आंखों से देख सकते है। इसके लिए आपको जाना पड़ेगा ममलेश्वर महादेव मंदिर जो प्रदेश की करसोग घाटी के ममेल गांव में स्थित है।

शिव- शक्ति को समर्पित मंदिर

ममलेश्वर महादेव मंदिर के मुख्य भवन की चारों ओर दीवारों पर काष्ठ मूर्तियां बनी हैं। मंदिर की मुख्य इमारत लकड़ी की है।
ममलेश्वर महादेव का मोहरा।

हिमाचल प्रदेश को देवभूमि भी कहा जाता है। इसके प्रत्येक कोने में कोई न कोई प्राचीन मंदिर स्थित है। उन्हीं में से एक है ममलेश्वर महादेव मंदिर।

यह मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। इस मंदिर का संबंध पांडवों से भी है, क्योंकि पांडवों ने अपने अज्ञातवास का कुछ समय इसी गांव में बिताया था।

विजय की याद में अखंड धूना

ममलेश्वर महादेव मंदिर में एक धूना है, जिसके बारे में मान्यता है कि ये महाभारत काल से निरंतर जल रहा है।
ममलेश्वर महादेव मंदिर का आखंड धूना।

ममलेश्वर महादेव मंदिर में एक धूना है, जिसके बारे में मान्यता है कि ये महाभारत काल से निरंतर जल रहा है। कहानी है कि जब पांडव अज्ञातवास में घूम रहे थे तो वे कुछ समय के लिए इस गांव में रुके। गांव में एक राक्षस का प्रकोप था।

भीम ने उस राक्षस को मारकर गांव को उससे मुक्ति दिलाई थी। कहते हैं कि भीम की इस विजय की याद में ही यह अखंड धुना जल रहा है।

शिव-पार्वती की युगल मूर्ति

ममलेश्वर महादेव मंदिर के मुख्य भवन की चारों ओर दीवारों पर काष्ठ मूर्तियां बनी हैं। मंदिर की मुख्य इमारत लकड़ी की है।
ममलेश्वर महादेव मंदिर काष्ठकला को लेकर मशहूर है।

ममलेश्वर महादेव मंदिर के मुख्य भवन की चारों ओर दीवारों पर काष्ठ मूर्तियां बनी हैं। मंदिर की मुख्य इमारत लकड़ी की है। लकड़ी की दीवारों पर बेहतरीन नक्काशी है, जिसमें देवी-देवताओं के साथ अन्य मूर्तियां उकेरी गई हैं।

मंदिर के गर्भगृह में भगवान शंकर व माता पार्वती की मूर्ति युगल के रूप में स्थापित है। मंदिर के प्रवेश द्वार के ऊपर भी शिव-पार्वती की युगल मूर्ति है।

शिव-पार्वती को समर्पित मंदिर

ममलेश्वर महादेव की मूर्तियां मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। इस मंदिर में सबसे प्रमुख गेहूं का दाना है जिसे पांडवों का बताया जाता है।

यह गेहूं का दाना पुजारी के पास रहता है। यदि आपको यह देखना हो तो इसके लिए पुजारी से निवेदन करना पड़ेगा।

पाड़वों से गहरा नाता

ममलेश्वर महादेव मंदिर में एक प्राचीन ढोल है, जिसके बारे में कहा जाता है कि ये भीम का ढोल है। इसके अलावा मंदिर में स्थापित पांच शिवलिंगों के बारे में कहा जाता है कि इसकी स्थापना स्वयं पांडवों ने की थी। पुरात्तव विभाग भी इन सभी चीजों की अति प्राचीन होने की पुष्टि कर चुका है।

मंदिर के पास दी जाती थी नर बलि

ममलेश्वर महादेव मंदिर के पास एक प्राचीन विशाल मंदिर और है, जो सदियों से बंद पड़ा है। माना जाता है कि इस मंदिर में प्राचीन समय में भूंडा यज्ञ किया जाता था, जिसमें की नर बलि भी दी जाती थी।

तब भी इस मंदिर में केवल पुजारियों को ही प्रवेश की अनुमति थी, अब भी इस मंदिर में केवल पुजारी वर्ग को ही जाने की आज्ञा है।

पांच शिवलिंगों की अनोखी कहानी

यहां प्रचलित मान्यता के अनुसार, ममलेश्वर महादेव मंदिर में पांच पांडवों के पांच शिवलिंग भी स्थापित हैं। धारणा है कि भगवान परशुराम ने करसोग घाटी में 80 शिवलिंगों की स्थापना की थी और 81वां शिवलिंग भगवान शिव की प्रतिमा के रूप में इस मंदिर में स्थापित किया था। मंदिर की काष्ठ कला और शैली उत्कृष्ठ है।

ऐसे पहुंचे ममलेश्वर मंदिर

ममलेश्वर महादेव मंदिर जाने के लिए आप मंडी और शिमला दोनों रास्तों से करसोग पहुंच सकते हैं। शिमला से करसोग की दूरी करीब 115 किलोमीटर है। शिमला से करसोग को बसें जाती हैं। आप निजी वाहन से भी जा सकते हैं। अगर शिमला से सुबह निकलें तो मंदिर के दर्शन कर उसी दिन शिमला वापस आ सकते हैं। ममलेश्वर महादेव का मंदिर करसोग बस स्टैंड से मात्र दो किलोमीटर दूर है। मंदिर परिसर में ठहरने की व्यवस्था मुफ्त उपलब्ध है।

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