मंदिर के बाहर चोरिंग पर क्यों बैठते हैं किन्नौर के देवता?

मंदिर के बाहर चोरिंग पर क्यों बैठते हैं किन्नौर के देवता?
Chhoring- Gods Rest Room

पवन चौहान/ महादेव

किसी क्षेत्र विशेष में देवी-देवताओं के पूजा-पाठ, उनके ठहरने, बैठने के स्थान आदि की अपनी-अपनी व्यवस्था होती है। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर में मंदिर के बाहर देवी- देवता को जिस जगह बिठाया जाता है, उसे ‘चोरिंग’ कहा जाता है।

चोरिंग देवता के बैठने का वह स्थान है जो उस स्थान के देवी या देवता ने स्वयं निश्चित किया होता है। चोरिंग किन्नौर के अलावा भारत के हर उस क्षेत्र में विद्यमान है, जहाँ देवी-देवताओं के प्रति लोगों की गूढ़ आस्था व श्रद्धा है। बस, उसका आकार-प्रकार भिन्न-भिन्न हो सकता है।

हर गांव में चोरिंग

चोरिंग किन्नौर के हर गांव में बना होता है। यह व्यवस्था यहां सदियों से चली आ रही है। देवता द्वारा सुझाए गए स्थान पर पूरे विधि-विधान के बाद ही इसकी नींव का पत्थर रखा जाता है।

यह लकड़ी के चार पिल्लर पर खड़ा एक खुला हवादार कमरे जैसा होता है जिसके ऊपर मंदिर के छत जैसी ऊंची उठी छत होती है।

चोरिंग की छत का निर्माण

चोरिंग की छत को पत्थर की स्लेटों की छांव दी गई होती है। जब इन जनजातीय क्षेत्रों में स्लेटों की व्यवस्था कर पाना मुश्किल था तब छत लकड़ी के छोटे-छोटे फट्टों से छाई (ढकी) जाती थी। सदियों से बने ये चोरिंग आज भी उन्हीं जगहों पर विद्यमान हैं जहां वे पहले थे। बस, हल्का-फुल्का बदलाव ज़रूर हुआ है।

चोरिंग में होने लगे बदलाव

इस बदलाव में जो चीज़ें मुख्य रूप से बदली हैं वह है इसकी छत, जो लकड़ी के फट्टों की बजाय पत्थर के स्लेट की है। किसी-किसी इलाके में हमें आज भी लकड़ी के फट्टों से बनी छत देखने को मिल जाती है।

चोरिंग की सजावट

चोरिंग को अपने सामर्थ्य के अनुसार गांववासी बनाते व सजाते हैं। नक्काशी के लिए इसका मुख्य हिस्सा इसके पिल्लर व छत रहते हैं। पीलर के ऊपर बेल-बूटों से लेकर हर धर्म के देवी-देवताओं के चित्रों का समावेश रहता है।

यहाँ के निवासी बौद्ध धर्म को बहुत मानते हैं इसलिए इस नक्काशी में बौद्धकला का प्रभाव साफ देखा जा सकता है। छत या इसकी झालर पर भी पिल्लर की तरह कई प्रकार के आकारों को रूप दिया गया होता है।

झालरों पर नक्काशी

झालर को लकड़ी के छोटे-छोटे लटकाने वाले डिज़ाइनदार टुकड़ों या फिर लकड़ी की पतली फट्टी पर हुई जालीनुमा नक्काशी से सजाया गया होता है।

छत के चारों कोनों के अंतिम छोर पर लकड़ी से बने शेर या ड्रैगन की आकृति से चोरिंग को और आकर्षक, प्रभावशाली व सुंदर बनाया जाता है।

आधार की सुंदरता के लिए रेलिंग

चोरिंग के आधार को सीमेंट से पक्का किया होता है। कहीं-कहीं हमें यह आधार आज भी पहले की तरह लकड़ी के मोटे-मोटे देवदार के सलीपरों का मिल जाता है। इसको सुंदरता प्रदान करने हेतु कहीं-कहीं इसके किनारों पर लगभग 6 इंच ऊंचाई की डिज़ाइनदार लकड़ी की रेलिंग को भी लगाया गया होता है।

तीन देवता बैठ सकते हैं साथ

किसी-किसी गांव में एक से ज़्यादा चोरिंग का निर्माण भी किया गया होता है, जहां पर बजंतरी या देवता के अन्य कार-करींदे बैठते हैं।

चोरिंग लगभग 12 से लेकर 15-16 वर्ग फुट का रहता है। इसमें एक साथ दो से तीन देवता बैठ सकते हैं।

देवता की हिफाज़त के लिए चोरिंग

किन्नौर के गांव किल्बा के जगजीत नेगी के अनुसार,’’चोरिंग को मंदिर से बाहर बनाने का एकमात्र मकसद यह है कि खास मौकों पर या पूजा-पाठ के लिए देवी- देवता को मंदिर से बाहर निकाला जाता है। देवी-देवता को कई बार, कई दिनों तक कई अड़चनों के चलते बाहर ही रुकना पड़ता है।

उन्हें खुले आसमान तले नहीं बिठा सकते। उसके लिए यह सारी व्यवस्था की गई होती है ताकि बारिश या बर्फ में देवता के रथ को कोई आंच न आने पाए और न ही किसी पक्षी आदि की बीट देवता पर गिरे।

देवता अपने रास्तों से तय करते सफर

किन्नौर के देवी-देवताओं के संबंध में एक बात हैरान करने वाली है। वह यह कि ये देवी-देवता आज भी उसी रास्ते से जाते हैं जिन रास्तों से ये सदियों पहले से जाते रहे हैं।

यह लोगों की निजी या सरकारी भूमि, कोई भी हो सकती है। इस भूमि को लोग देवता की भूमि कहते हैं।

चोरिंग में विराजमान देवी-देवता

यदि ज़मीन की कमी के चलते लोगों को उस ज़मीन पर घर, या अन्य कोई निर्माण करना हो तो वे उसके लिए देवता से आज्ञा लेकर उस कार्य को अंजाम देते हैं।

इसका मतलब यह कतई नहीं है कि उक्त व्यक्ति वह रास्ता ही बंद कर दे। उसे वह रास्ता तो हर हाल में छोड़ना ही पड़ेगा। उसके इधर-उधर की ज़मीन पर ही वह निर्माण कर सकता है। रास्ता रोकने वालों के लिए देवता स्वयं दंड का प्रावधान करता है। परंतु ऐसी हिम्मत विरले ही कोई करता है।

खाली चोरिंग भी आस्था का केन्द्र

खाली चोरिंग भी सबके लिए आस्था का केन्द्र होता है। वहां से आने-जाने वाले लोग चोरिंग पर अपना शीश नवाकर देवता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। चोरिंग एक ऐसी व्यवस्था है जो आज भी उसी रूप में विद्यमान है जैसे यह सदियों पहले थी, जब ये इलाके यहां बसे थे। यहां के देवी-देवताओं के प्रति लोगों ने अपनी आस्था स्वरूप इस तरह के कई निर्माण किए थे।

सांस्कृतिक व पारंपरिकता की निशानी

चोरिंग किन्नौर की समृद्ध सांस्कृतिक व पारंपरिकता की निशानी है, जो यहां के निवासियों की देवता के प्रति गूढ़ आस्था व श्रद्धा को दर्शाती है।

इसको संजोए रखने का श्रेय यहां के लोगों को जाता है और हमें मौका मिलता है इस जनजातीय इलाके के एक और समृद्ध पहलू को जानने व समझने का।

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