कालका-शिमला रेल मार्ग के सर्वे में किसका था सबसे अहम रोल ? 

कालका-शिमला रेल मार्ग के सर्वे में किसका था सबसे अहम रोल ? 
Kalka Shimla Rail

हिमाचल बिजनेस/ शिमला 

7 जुलाई 2008 को यूनैस्को ने कालका-शिमला रेल मार्ग को विश्व धरोहर का दर्जा प्रदान किया गया। सोलन के झाजा गांव के बाशिंदों के लिए यह दिन विशेष महत्व रखता है। इसी गांव के एक अनपढ़ फकीर बाबा भलकू ने इस रेल मार्ग के सर्वेक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। भलकू ने अपने हुनर से ब्रिटिश सरकार के बड़े से बड़े इंजीनियरों को भी आश्चर्य चकित कर दिया था।

बाबा भलकू ने पूरा किया सर्वेक्षण

कालका-शिमला  रेल मार्ग का काम देख रहे इंजीनियर जॉन बड़ोग ने तो आत्महत्या ही कर ली थी क्योंकि उसने इस मार्ग की सबसे लम्बी सुरंग का सर्वेक्षण गलत कर दिया था।
Kalka Shimla Rail

कालका-शिमला रेल मार्ग का काम देख रहे इंजीनियर जॉन बड़ोग ने तो आत्महत्या ही कर ली थी क्योंकि उसने इस मार्ग की सबसे लम्बी सुरंग का सर्वेक्षण गलत कर दिया था।

बाद में बाबा भलकू ने कालका-शिमला रेल मार्ग के सर्वेक्षण को सही कर सुरंग का निर्माण संभव बनाया था। बाबा भलकू की सूझबूझ और हुनर के कारण ही यह रेल मार्ग कालका से शिमला पहुंचा था।

लकड़ी की छड़ी से किया सर्वेक्षण

बाबा भलकूने लकड़ी की छड़ी से इस कालका-शिमला  रेल मार्ग का सर्वे पूरा किया था। ब्रिटिश इंजीनियरों की समझ में यह नहीं आ रहा था कि इस रेल मार्ग कि जाबली से आगे कहां से लेकर जाया जाए।
Kalka Shimla Rail

बाबा भलकूने लकड़ी की छड़ी से इस कालका-शिमला रेल मार्ग का सर्वे पूरा किया था। ब्रिटिश इंजीनियरों की समझ में यह नहीं आ रहा था कि इस रेल मार्ग कि जाबली से आगे कहां से लेकर जाया जाए।

बाबा भलकू उस समय हिन्दुस्तान तिब्बत रोड़ में काम कर रहा था। जब कालका-शिमला रेल मार्ग के सर्वेक्षण में आ रही रुकावटों की बात सुन अपनी सेवाएं देनी चाही तो कुछ अंग्रेज अफसरों ने उसका हुलिया देख खूब मजाक उड़ाया।

कुछ अफसरों को बाबा भलकू की दिव्य शक्तियों का पता था और उसे यह काम सौंप दिया। उसने अपनी छड़ी से जब आगे का सर्वेक्षण किया तो उसकी समझ और बुद्धि को सलाम करना पड़ा। उसके बाद कालका-शिमला रेल मार्ग और सुरंगों के निर्माण में भलकू की सेवाएं ली गईं।

1903 में चली पहली ट्रेन

काम पूरा करने में तीन वर्ष लगे और नवंबर 1903 को इस पर पहली रेलगाड़ी कालका से शिमला के लिए चलाई गई। जिस रेल मार्ग को उस साधारण से दिखने वाले बाबा भलकू ने अंजाम दिया उसे आज विश्व धरोहर का दर्जा मिला है।
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ब्रिटिश सरकार ने इस रोमांचक कालका-शिमला रेल मार्ग की स्वीकृति दे दी और तमाम औपचारिकताएं पूरी करके इस रेल मार्ग पर पट्टियां बिछाने का काम अम्बाला- दिल्ली कम्पनी को सौंपा गया।

काम पूरा करने में तीन वर्ष लगे और नवंबर 1903 को इस पर पहली रेलगाड़ी कालका से शिमला के लिए चलाई गई। जिस रेल मार्ग को उस साधारण से दिखने वाले बाबा भलकू ने अंजाम दिया उसे आज विश्व धरोहर का दर्जा मिला है।

889 पुल, 102 सुरंगें

कालका-शिमला रेल मार्ग की कुल लंबाई 96.54 किलोमीटर है, जिसमें कुल मोड़ 919 है और 889 पुलों का प्रावधान किया गया है। छोटे बड़े पहाड़ों को काट और बींध कर 102 सुरंगों के बीच से छोटी रेलगाड़ी गुजरती है।

शिमला से कालका और कालका से शिमला पहुंचने में यह रेल पांच घंटे का समय लेती है।

दुनिया की पहली रेलकार

कालका-शिमला रेल मार्ग को दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे, नीलगिरि माउंटेन रेलवे और छत्तीसगढ़ शिवाजी टर्मिनल के साथ विश्व धरोहर का दर्जा मिला है। देश-विदेश के पर्यटकों के लिए इस खिलौना रेल में सफर करना एक अजूबे से कम नहीं है।

102 सुरंगों, कई स्टेशनों, गांवों और घने जंगलों के बीच से गुजरती सरसराती इस रेलगाड़ी में सफर करने का अपना ही रोमांच और आनंद है। इस मार्ग पर एक छोटी रेलकार भी दौड़ती है जो शायद विश्व में और कहीं नहीं है।

सर्वेक्षण के बाद कहीं चले गए बाबा भलखू

अंग्रेज अफसर सम्मान से भलकू को ‘भलकू जमादार’ पुकारते थे। यह आम धारणा है कि वे 1890-95 के किसी वर्ष तीर्थ यात्रा के लिए गए थे, जहां से वापिस नहीं लौटे।

इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि बाबा भलकू इस रेल मार्ग का सर्वे करने के पश्चात् ही कहीं चले गए थे। वे कहां चले गए थे इस बारे में किसी को कोई खबर नहीं।

याद में लगी भलकू की प्रतिमा

कालका-शिमला रेल मार्ग के सौ वर्ष पूरे किए तो ‘बाबा भलकू स्मृति एवं जन विकास समिति, चायल ने एक स्मारिका प्रकाशित। इस उपलक्ष्य पर प्रदेश सरकार के सहयोग से चायल बाजार में बाबा भलकू की एक प्रतिमा भी स्थापित की गई। चायल बाजार बाबा भलखू के पैत्रिक गांव झाजा से लगभग 7 कि.मी. दूर है। झाजा तक अब सड़क मार्ग है।

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