क्यों मिनी अमरनाथ के नाम से मशहूर है मणिमहेश ?
मनीष वैद/ चंबा
खूबसूरत पर्वतमाला से घिरा कैलाश पर्वत मणिमहेश कैलाश के नाम से भी प्रसिद्ध है। सैकड़ों वर्षों से तीर्थ यात्री व श्रद्धालु इस पवित्र मनोरम तीर्थस्थली की यात्रा करते आ रहे हैं। इसी स्थान पर मणिमहेश नामक एक छोटी सी पवित्र झील है। यह झील समुद्र तल से लगभग 13,500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है।
इस झील की पूर्व की दिशा में कैलाश पर्वत स्थित है। मणिमहेश चंबा जिले के भरमौर में आता है और मिनी अमरनाथ के नाम से मशहूर है। मान्यता है कि कैलाश पर्वत पर भगवान भोले नाथ शेषमणि के रूप में विराजमान है। भगवान शिव दर्शन भी मणि के रूप में देते हैं। इसलिए इस धार्मिक स्थल का नाम मणिमहेश पड़ा।
मणिमहेश से जुड़ी पौराणिक कथा
यह झील का स्थल पीर- पंजाल की हिम शृंखला में चंबा के पूर्व में स्थित है। पौराणिक कथाओं में इस झील को भगवान शिव की क्रीड़ास्थली माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने माता-पार्वती के साथ विवाह पश्चात इसका निर्माण किया था।
झील के कुछ पहले जल के दो मुख्य स्त्रोत हैं, जो शिव क्रोत्रि यानी के शिव जी का स्नान स्थल तथा दूसरा गौरी कुंड के नाम से जाने जाते हैं।
इस झील की खोज व धार्मिक रूप से तीर्थ यात्रा की शुरुआत करने का श्रेय योगी चरपटनाथ को जाता है, जिन्होंने इस जगह को जाना तथा सभी को इसके महत्व के बारे में बतलाया। तभी से दो सप्ताह चलने वाली यह यात्रा जन्माष्टमी से श्री राधाष्टमी तक प्रति वर्ष होती जाती है।
राजा ने स्थापित करवाया शिवलिंग
13746 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस झील को लेकर किंवदंती है कि बाबा चरपट नाथ ने ही छठी शताब्दी में पवित्र डल झील के किनारे शिवलिंग की स्थापना की थी। बताया जाता है कि यह शिवलिंग भरमौर रियासत के तत्कालीन राजा मेरूवर्मन को राजस्थान रियासत के एक राजा ने भेंट किया था।
राजा मेरूवर्मन ने इस शिवलिंग को बाबा चरपट नाथ को दिया और उन्होंने इसे राधाष्टमी के दिन मणिमहेश झील के किनारे विधिवत पूजा-अर्चना के बाद स्थापित कर दिया। बाबा चरपट नाथ हर साल अपने चेलों के साथ राधाष्टमी को झील किनारे पूजा-अर्चना एवं स्नान करने के लिए जाते रहे।
पवित्र झील में स्नान की प्रथा
हड़सर से धन्छो व सुंदरासी से होते हुए गौरी कुंड पहुंचने के बाद करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित मणिमहेश झील में स्नान करने के बाद श्रद्धालु यहां स्थापित शिवलिंग पर जल चढ़ाकर पूजा-अर्चना करते हैं। यहीं से कैलाश पर्वत का भव्य नजारा भी देखने को मिलता है।
चंबा जिला के लोगों के अलावा मणिमहेश यात्रा जम्मू-कश्मीर के लोगों खासकर जम्मू के लिए भी आस्था का केंद्र है। हर साल जम्मू-कश्मीर के डोडा-भद्रवाह से हजारों की संख्या में श्रद्धालु मणिमहेश यात्रा के लिए आते हैं।
अमरनाथ की तरह कठिन मणिमहेश यात्रा
13 हजार फीट की ऊंचाई,14 किमी का सफर, बीच में ऑक्सीजन की कमी और मौसम कब बदल जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। मणिमहेश यात्रा भी अमरनाथ यात्रा की तरह कठिन है।
भरमौर के हड़सर से मणिमहेश के लिए खड़ी चढ़ाई शुरू होती है। मणिमहेश झील तक पहुंचने में 10 से 12 घंटे लगते हैं। इस यात्रा के लिए देशभर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। सभी श्रद्धालु डल झील में डुबकी लगाते हैं।
यात्रा के ये हैं खास पड़ाव
मणिमहेश के लिए पैदल यात्रा हड़सर से शुरू होती है और धन्छो, सुंदरासी, शिवघराट व गौरीकुंड के पड़ाव के बाद खड़ी चढ़ाई चढ़कर डल झील पहुंचा जा सकता है। कुछ यात्री कुगती होकर मणिमहेश पहुंचते हैं, इसे परिक्रमा की संज्ञा भी दी जाती है।
ऐसा माना जाता है कि कुगती से होकर डल डील में पहुंचने से कैलाश पर्वत की परिक्रमा हो जाती है, जिसे पहाड़ी भाषा में कुछ लोग फेरी भी कहते हैं। कुछ यात्री डल झील में स्नान करने के बाद कमल कुंड में जाकर भी पूजा-अर्चना करते हैं।
गौरी कुंड में स्नान करती महिलाएं
मणिमहेश झील से करीब एक किलोमीटर की दूरी पहले गौरी कुंड और शिव क्रोत्री नामक दो धार्मिक महत्व के जलाशय हैं। मान्यता के अनुसार यहां गौरी और शिव ने क्रमशः स्नान किया था।
मणिमहेश झील को प्रस्थान करने से पहले महिला तीर्थयात्री गौरी कुंड में और पुरुष तीर्थयात्री शिव क्रोत्री में पवित्र स्नान करते हैं।
टरकोइज माउंटेन के नाम से मशहूर
कैलाश पर्वत को टरकोइज माउंटेन भी कहा जाता है। टरकोइज का अर्थ है नीलमणि। सूर्योदय के समय क्षितिज में लालिमा छा जाती है और उसके साथ ही प्रकाश की सुनहरी किरणों निकलती हैं। मणिमहेश में कैलाश पर्वत के पीछे से जब सूर्य उदय होता है, तो सारे आकाशमंडल में नीलिमा छा जाती है। सूर्य के प्रकाश की किरणें नीले रंग में निकलती है।
इस दौरान यहां का पूरा वातावरण नीले रंग के प्रकाश में ओत-प्रोत हो जाता है। प्रमाण है कि कैलाश पर्वत पर नीलमणि के गुण-धर्म मौजूद हैं, जिनसे टकराकर प्रकाश की किरणें नीली हो जाती है।
कैलाश पर्वत को माना जाता है अजेय
कैलाश पर्वत को अजेय माना जाता है। कोई भी अब तक इस चोटी को माप करने में सक्षम नहीं हुआ है। एक कहानी यह भी है कि एक बार एक गद्दी ने भेड़ के झुंड के साथ इस पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश की।
वह अपनी भेड़ों के साथ पत्थर में बदल गया है। माना जाता है कि प्रमुख चोटी के नीचे छोटी चोटियों की श्रृंखला पर चरवाहे और उसकी भेड़ों के झुंड के अवशेष हैं।
अदभुत, अलौलिक और अविस्मरणीय
दुनिया के लिए शोध का विषय बन चुके कैलाश पर्वत के रहस्य अभी तक सामने नहीं आ पाए हैं। जन्माष्टमी और राधाअष्टमी के दिन चौथे पहर कैलाश पर दिखाई पड़ती दिव्य ज्योति डल के झील में समा जाने के अदभुत, अलौलिक और अविस्मरणीय क्षण में गूंजते भोले नाथ के उदघोष भगवान की मौजूदगी की गवाही देते हैं।
यात्रा के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन
पवित्र मणिमहेश यात्रा इस वर्ष भी धार्मिक परंपरा के अनुरूप जन्माष्टमी के अवसर पर 28 अगस्त से शुरू होगी। यह यात्रा 11 सितंबर तक चलेगी। यात्रा का समापन श्री राधा अष्टमी के पवित्र स्नान के साथ होगा।
इस साल प्रशासन ने यात्रा में भाग लेने वाले हर श्रद्धालु को पंजीकरण कराना अनिवार्य कर दिया है। श्रद्धालु www.manimaheshyatra.hp.gov.in पर ऑनलाइन पंजीकरण करा सकते हैं।
मिलेगी हेली टैक्सी की सुविधा
मणिमहेश यात्रा में इस बार भी हेली टैक्सी की सुविधा रहेगी। इस बार श्रद्धालुओं को भरमौर से गौरीकुंड तक हवाई यात्रा के लिए 3895 रुपए एकतरफा किराया देना होगा। इस तरह आने-जाने का कुल किराया 7790 रुपए प्रति यात्री होगा, जो पिछले वर्ष की अपेक्षा काफी कम है।
अगर चंबा से कोई सीधी हवाई सेवा लेना चाहता है तो प्रति सवारी 25, 000 रुपए किराया निर्धारित हुआ है। जिसके लिए ऑन लाइन बुकिंग होगी।
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