हिमाचल के कौन से स्थान पशु-पक्षियों के नाम पर बसे हैं ?
बिजनेस हिमाचल/ धर्मशाला
एक वह भी समय था कि पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश के विभिन्न भागों में गिद्ध, कौआ, खच्चर, चकोर, चूहा, घोड़ा, जंगली सूअर, शेर, रीछ, मोर, मोनाल, मधुमक्खी, भैंस, जंगली कबूतर, बाघ और बगुला जैसे पशु- पक्षी और जीव- जन्तु बड़ी संख्या में पाए जाते थे।
इस तथ्य की पुष्टि हिमाचल प्रदेश के नामों को लेकर खुद ही हो जाती है। इस पहाड़ी राज्य में ऐसे कई स्थान हैं, जिनके नाम पशु- पक्षियों और जीव- जंतुओं के नामों पर रखे गए हैं।
चुराह में ईलवास
चंबा ज़िला की चुराह तहसील के इस गांव के चारों ओर विशालकाय पेड़ हैं, जिन पर गिद्ध पक्षी वास करते हैं। गिद्धों को स्थानीय बोली में ईल कहते हैं। ईलों का वास होने के कारण यह स्थान ईलवास कहलाता है।
करसोग में काओ
मंडी जिला की करसोग तहसील में काओ नामक स्थान है। यहां कामख्या भगवती का प्राचीन मंदिर है। कामख्या भगवती को काओ भगवती भी कहा जाता है। परशुराम की साधना सिद्ध होने पर यहां कौवों के रूप में 64 योगनियां काओ-काओ की ध्वनि करती हुई आ पहुंची थी। इस काओ ध्वनि के कारण यह स्थान काओ गाँव के रूप में मशहूर हो गया है।
सिहुंता में खरगट
खरगट शब्द में खर का अर्थ खच्चर और गट का अर्थ समूह है। कहा जाता है कि चंबा ज़िला के सिहुंता क्षेत्र से व्यापारी लोग खच्चरों पर सामान लाद कर भरमौर तहसील तक जाते थे तथा उधर से सामान इधर लाते थे। इस स्थान पर विश्राम के लिए उनका पड़ाव पड़ता था। पड़ाव पर खच्चरों के समूह एकत्र होते थे। खच्चर समूह के आधार पर इस स्थान का नाम खरगट पड़ा है।
बंजार में गौशाला
कुल्लू जिला की बंजार तहसील की चनौण पंचायत के इस गांव में पहले गायों और गोवंश के लिए शाला बनी हुई थी, जिसके चलते यहां का नाम गौशाला पड़ गया।
पधर में चुकारु
कभी मंडी जिला की पधर तहसील के इस गांव में चकोर नामक पक्षी बहुतायत पाए जाते थे। इस स्थान पर बड़ी संख्या में चकोर होने के कारण ही यह गांव चुकारु कहलाता है।
रामपुर में चूहा बाग
शिमला ज़िला की रामपुर तहसील के रामपुर शहर के साथ में इस स्थान पर बुशहर रियासत के राजा का बाग होता था, जिसमें चूहे बहुत पाए जाते थे। बाग में चूहों होने से ही इस स्थान को चूहा बाग कहते हैं।
शिमला में घोड़ा चौकी
शिमला शहर के बालूगंज कस्बे के समीप शिमला-चंडीगढ़ सड़क पर हिमाचल प्रदेश सरकार मुद्रणालय परिसर के स्थान का नाम घोड़ा चौकी है। अंग्रेजी शासन काल में एक पुलिस चौकी होती थी, जिसके साथ में घोड़ों की घुड़शाला थी। घोड़ों की चौकी होने से यह स्थान घोड़ा चौकी बन गया।
स्पिति में ताबो
लाहौल-स्पिति ज़िला के स्पिति उपमंडल के ताबो गांव में प्राचीन बौद्ध विहार स्थित है। ताबो को हिमालय की अजंता कहा जाता है। ताबो शब्द ताफो से बदल कर बना है। ताफो शब्द का अर्थ है घोड़ा। यह स्थान प्राचीन काल में घोड़ों की उन्नत नस्ल के व्यापार का प्रमुख केंद्र रहा है, जिससे इस स्थान का नाम ताफो और उससे बाद में ताबो बना है।
मंडी में दो बगला
मंडी जिला की पधर तहसील में रणा खड्ड के समीप स्थित इस गांव में किसी समय बगुला नाम के पक्षी बहुत होते थे। इसी आधार पर यहां का नाम बगुला से बगला पड़ा है। मंडी जिला में ही मंडी -शिमला सड़क पर मंडी से 9 कि.मी. दूर स्थित बगला गांव का नाम भी वहां बगुला पक्षियों के होने से पड़ है।
रेणुका में बघारै री सेर
सिरमौर जिला की रेणुका तहसील के इस क्षेत्र के रजागा गांव के पजवान वंश के राजपूत एक सह-भोज में सम्मिलित होने के लिए जा रहे थे। उन्होंने एक बाघ को सम्मोहन विद्या से वश में कर लिया और अपने साथ ले चले। उनके अहंकार को तोड़ने के लिए गनोग परगने के लोगों ने इस स्थान पर वह बाघ मर दिया। यह घटना यहां के खेत समूह ‘सेर’ के बीच हुई। बाघ मारने की इस सेर स्थली का नाम बघारै री सैर पड़ा है।
नयना देवी में बाघछाल
बिलासपुर ज़िला की श्री नयना देवी उपतहसील में सतलुज नदी के किनारे बसे बाघछाल गांव है। एक बार एक बाघ ने अपना शिकार दबोचने के लिए पहाड़ी के एक स्थान से बहुत लंबी छलांग लगाई और शिकार को दबोच लिया। लोगों में यह घटना बहुत चर्चित हुई। छलांग को यहां की बोली में छाल कहते हैं। बाघ की छलांग की घटना से यह स्थान बाघछाल बना ।
घुमारवीं में भगेड़
बिलासपुर ज़िला की घुमारवीं तहसील के इस स्थान पर पहले बहुत बाघ होते थे। यहां बाघों की उपस्थिती होने के कारण यहां का नाम बाघेड़ पड़ा, जो बाद में भगेड़ हो गया है।
बिलासपुर में भाखड़ा
पहले यहां के जंगल में बाघ बहुत होते थे जिससे यह स्थान बाघबाड़ा कहलाया। बाघबाड़ा कालांतर में भाखड़ा हो गया है। बिलासपुर ज़िला की श्रीनयनादेवी उप-तहसील का यह गांव सतलुज नदी पर बने भाखड़ा बांध के कारण बहुत प्रसिद्ध है।
सिहुंता में भुज्जल
चंबा ज़िला की सिहुंता उप-तहसील के इस गांव के समीप के जंगल और पहाड़ियों पर नीले रंग की प्रजाति के कबूतर पक्षी बहुत होते हैं। इस प्रजाति के कबूतरों को भुज्जल कहा जाता है। भुज्जल पक्षियों के निवास के समीप होने से यह गांव का नाम भुज्जल पड़ा है।
चुराह में मलवास
चंबा ज़िला की चुराह तहसील के सेई परगना के इस गांव में लोग भेड़ बकरियां, गाय, बैल आदि बहुत पालते हैं। यहां लोगों की आजीविका का साधन पशुधन ही रहा है। पशुधन को यहां माल कहते हैं और वास का अर्थ है निवास। पशुधन का प्रमुख वास होने से इस जगह का नाम मालवास पड़ा, जो बाद में मलवास हो गया है।
शिमला में मशोबरा
शिमला का मशोबरा एक रमणीय स्थान है। मशोबरा शब्द मैंश और ओबरा शब्द के योग से बना है। मैंश शब्द भैंस अर्थ में संस्कृत महिष शब्द का परिवर्तित रूप है और ओबरा शब्द स्थानीय बोली में कमरा अर्थ में प्रयुक्त होता है। पहले इस स्थान पर भैंसों के आवास के रूप में बहुत बड़ा ओबरा होता था। मैंश के उसी ओबरे के आधार पर इस स्थान का नाम मशोबरा पड़ा।
कुल्लू में माहुण
मधुमक्खी को कुल्लुवी बोली में माहूं कहते हैं। कुल्लू जिला की गड़सा घाटी के इस गांव में मधुमक्खियां बहुत पाई जाती थी। अतः माहूं-स्थान के रूप में इस गांव का नाम माहुण पड़ा है।
रोहडू में मुराल डंडा
शिमला जिला की रोहडू तहसील में यह स्थान एक पहाड़ की ऊंचाई पर है। मुराल शब्द यहा एक अति सुन्दर वन्य पक्षी मोनाल के अर्थ में प्रयोग हुआ है और डंडा शब्द लगभग डंडे की भांति की सीधी चढ़ाई का बोधक है। इस स्थान पर चढ़ाई के रास्ते के जंगल में मोनाल पक्षी पाए जाते हैं। मोनाल पक्षी और सीधी चढ़ाई से यह स्थान मुराल डंडा कहलाता है।
सिहुंता में मोरठू
चंबा ज़िला की सिहुंता उप-तहसील के इस गांव के साथ के जंगल में मोर बहुत पाए जाते थे। यहां पर मोरों की ठाहर (ठिकाना) होने से ही इस स्थान का नामकरण मोरठू हुआ है।
ऊना में मोरबड़
ऊना जिला के भटोली कस्बे की एक बस्ती का नाम मोरबड़ है। किसी समय इस क्षेत्र में मोर बहुत होते थे और यहां के वट वृक्षों में उनका बसेरा होता था। मोर और वड़ वृक्षों के योग से इस स्थान को मोरबड़ नाम प्राप्त हुआ है।
चुराह में रिखालू
चंबा ज़िला की चुराह तहसील के इस स्थान पर बीहड़ चट्टानी गुफाएं हैं, जिनमें रीछों का वास होता था। रीछ को स्थानीय बोली में रिख कहते हैं। रिखों का स्थान होने से यहां का नाम रिखालू पड़ा है।
निरमंड में शाही डुआर
कुल्लू जिला की निरमंड तहसील की निशानी पंचायत के एक स्थान पर चट्टानीय गुफाओं ‘डुआरों’ में साही जानवर की मांदें होती थी। साही एक ऐसा जानवर होता है, जिसका शरीर तीखे लंबे कांटों से भरा होता है। साही को कुल्लुवी बोली में शाही कहते हैं। इस स्थान पर शाहियों के डुआर होने से यहां का नाम शाही डुआर पड़ा है।
झंडूता में शेर
बिलासपुर ज़िला की झंडूता तहसील में गालियां पंचायत के शेर गांव को स्थानीय उच्चारण में सेर भी कहा जाता है। पहले यहां बीहड़ जंगल था,जिसमें शेर वास करते थे। एक शेर रोज नेरसा देवी मंदिर में माथा टेकने आता था। बाद में न जंगल रहा, न शेर रहे, फिर भी यहां जो गांव बसा, इसका नाम शेर प्रचलित हुआ ।
सरकाघाट में शेरपुर
मंडी ज़िला की सरकाघाट तहसील में शेरपुर गांव जंगलों से घिरा हुआ है। कहते हैं कि पहले यहां जंगल में शेर हुआ करते थे, जिसके कारण यह गांव शेरपुर कहलाता है।
निरमंड में सिंहगाड़
सिंहगाड़ नाम में सिंह का अर्थ है शेर और गाड़ का अर्थ है खड्ड। कुल्लू ज़िला की निरमंड तहसील का यह स्थान निरमंड से 30 कि.मी. दूर श्रीखंड महादेव की पावन यात्रा का एक प्रमुख पड़ाव है। कहा जाता है कि जाओं गांव में पार्वती सिंह पर सवार होकर प्रकट हुई थी। भगवती मां के सिंह और गाड़ के योग से यह स्थान सिंहगाड़ कहलाता है।
रोहड़ू में सुंगरी
पहाड़ी भाषा में सूअर के लिए सुंगर शब्द का प्रयोग होता है, मादा सूअर को सुंगरी बोला जाता है। शिमला ज़िला की रोहड़ू तहसील में एक बार किसी व्यक्ति द्वारा एक गर्भवती सुंगरी मारी गई। इसे बहुत बड़ा पाप समझा गया और यह घटना समाज में बड़ी चर्चित रही। जहां सुंगरी मारी गई थी, सुंगरी नाम से प्रचलित हुआ।
बंगाणा में सूरडा
ऊना जिला की बंगाणा तहसील के सूरडा गांव में पहले जंगल हुआ करता था, जिसमें बहुत अधिक जंगली सूअर होते थे। यहां जंगली सूअरों के अधिक संख्या में होने के कारण यह गांव सूरडा नाम से मशहूर हुआ है।
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