दुल्हन की कलाइयों पर क्यों बांधे जाते हैं कलीरे ?

हिमाचल बिजनेस/ धर्मशाला
पंजाबी की अमर साहित्यकार अमृता प्रीतम ने साल 1962 में अपने उपन्यास ‘बंद दरवाजा’ में कलीरे का उल्लेख किया है। महान चित्रकार शोभा सिंह की ‘कांगड़ा दुल्हन’ की कलाई में भी कलीरा बंधा हुआ है। लोक साहित्य और चित्रकला में कलीरा शामिल है।
जाहिर है शादी के समय दुल्हन को कलीरे बांधना शुभ का संकेत है। उत्तरी भारत की लोक संस्कृति में कलीरे के बिना दुल्हन की कल्पना भी बेमानी है। शादी में अवसर पर दुल्हन का श्रंगार तब तक अधूरा लगता है, जब उसकी कलाइयों पर कालीरे न बंधे हों। कलीरे दुल्हन के सुहाग और सौभाग्य प्रतीक है।
कलीरा क्या होता है?
कौड़ियों, गरी के गोलों, छुहारों आदि मेवों को मोली में पिरोकर बनाई हुई माला को कलीरा कहा जाता है। दुल्हन को सबसे पहले मामा- मामी लड़की को कलीरा पहनाते हैं। उसके बाद अन्य
संबंधी और दुल्हन की सहेलियां कलीरे की डोरी दुल्हन की कलाइयों पर बांधती हैं। कालीरे बांधने से दुल्हन का व्यक्तित्व और निखर जाता है।
कलीरे का इतिहास
कालीरे के इतिहास में जाने पर लद्दन– पुत्तर दो बहनों का उल्लेख मिलता है। बताया जाता है कि वे हाथों में जो रंग बिरंगी चूड़ियां पहनती थीं, उनका नाम कालीरे और कचेरा नाम रखा था।
बाद में शादी के अवसर पर दुल्हन की कलाइयों पर विशेष तौर पर मेवे के साथ तैयार किया कलीरा बांधने का सिलसिला कब शूरु हुआ, कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिलते।
कलीरे में बंधे होते है सूखे मेवे
कलीरे में सूखे नारियल काजू और बादाम सहित कई तरह के सूखे मेवे लटकाए जाने का प्रचलन रहा है। ऐसा कहा जाता है कि पुराने समय में यातायात के साधन नहीं थे और बारात पैदल ही आती जाती थी, जिसमें कई बार बहुत समय अथवा कई दिन भी लग जाते थे।
मान्यता थी शादी होने के बाद अगर पति के साथ डोली में ससुराल जाते हुए सफर में भूख लगे, तो दुल्हन सूखे मेवे खाकर अपनी भूख को शांत कर ले।
कलीरे से जुड़ी मान्यता
एक मान्यता के अनुसार अपनी कलाइयों में बंधे कलीरों को दुल्हन कुवांरी लड़कियों के सिर पर हिलाती है। अगर कलीरों कोई हिस्सा टूट कर किसी लड़की पर गिर जाए तो उसकी भी शादी जल्द होती है।
लोकमानस में अभी तक यह रस्म बरकरार है और हर शादी में दुल्हन ऐसा करती है। इस रस्म पर अभी भी जनविश्वास है।
कलीरे पर गीत
सुरेश कौंडल के लिखे गीत ‘कलीरा’ को संदीप गौरव संगीत से संवारा है और प्रसिद्ध गायिका पूनम भारद्वाज ने गया है। बेटी के दुल्हन के रूप में विदाई के समय का यह गीत बहुत ही मार्मिक है। इसे यूट्यूब पर सुन सकते हैं।साहित्यकार विजय भारत दीक्षित ने भी बेटियों का समर्पित ‘कलीरा’ पर गीत रचा है, जिसे उनके यूट्यूब पेज पर सुना जा सकता है।
कांगड़ा दुल्हन का कलीरा
चित्रकार शोभा सिंह की ‘कांगड़ा दुल्हन’ पेंटिंग है। बड़ी नथ, लाल चूड़ियाँ, फूल, कलीरा, बिछिया और पायल जैसे हिमाचली आभूषणों से सजी पालकी पर बैठी और बाहर देखती हुई दुल्हन बहुत सुंदर दिख रही है।
पेंटिंग में एक खूबसूरत पहाड़ी दुल्हन को माइका छोड़कर अपने पति के घर जाने का चित्रण है। पहाड़ी दुल्हन ढेर सारी यादों के साथ अपने मायके से विदा हो रही है।
कलीरों का बाजार
महिलाएं पहले कलीरे खुद अपने हाथों से तैयार करती थीं। शादी में कलीरे पहनने का रिवाज़ अब फैशन का हिस्सा हो गया है। अब प्रदेश की बहुत सी दुकानों में बने- बनाए कालीरे मिल जाते हैं। कालीरों के प्रति बढ़ती मांग के चलते कलीरे अब कई डिज़ाइनों में मिलने लगे हैं। कालीरों की मार्केट ख़ूब फल-फूल रही है और वक्त के साथ साथ नई- नई तरह के कलीरे बन रहे हैं।
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