Ginkgo biloba ‘तुलसी’ के बगीचे में गिफ्ट किया फॉसिल ट्री
विनोद भावुक / पालमपुर
चंबा जिला के भरमौर उपमंडल के प्रोन्डी गांव में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष तुलसी राम के बगीचे में तत्कालीन वन मंत्री एवं भाजपा के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का गिफ्ट किया हुआ फॉसिल ट्री Ginkgo biloba खूब फल फूल रहा है. आईये आज इस पेड़ को लेकर खुद को अपडेट करते हैं।
परमाणु विस्फोट में बचे पेड़
जापान के हिरोशिमा में 1945 में हुए परमाणु बम विस्फोट के दो किलोमीटर के बीच के दायरे में लगे Ginkgo biloba के छह पेड़ उन चंद जीवित वस्तुओं में से थे, जो उस क्षेत्र में हुए विस्फोट के बावजूद बचे रहे।विस्फोट से उस क्षेत्र के लगभग सभी अन्य पौधे और जानवर नष्ट हो गए थे।
हालांकि परमाणु विस्फोट से Ginkgo biloba के पेड़ भी जल गए थे, लेकिन वे बच गए और जल्द ही फिर से हरे हो गए। हिरोशिमा के ये पेड़ आज भी जीवित हैं।
पालमपुर में पैदा किये पौधे
Ginkgo biloba न्यूक्लियर पॉल्यूशन से बचाव करने वाला पेड़ है। धरती पर मानव सभ्यता की गवाह कहे जाने वाली डायनासोर युग की दुर्लभ वृक्ष प्रजाति Ginkgo biloba के वजूद को बचाने के लिए नेशनल मेडीसनल प्लांट्स बोर्ड की परियोजना वरदान साबित हुई है।
नेशनल मेडिसनल प्लांट्स बोर्ड ने सीएसआईआर- हिमालयन जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर को परमाणु प्रदूषण से बचाने वाले दुनिया के सबसे पुराने औषधीय पेड़ जिंको बाइलोबा की प्रमाणिक वंशवृद्वि और कृषि तकनीक विकसित करने के लिए दो चरणों में वित्त पोषण किया।
डेढ़ दशक की मेहनत के बाद कामयाबी
जनवरी 2005 में इस परियोजना पर काम शुरू हुआ। मसूरी, देहरादून, रानीखेत, नैनीताल, शिमला, मनाली व कल्पा से Ginkgo biloba की कलमें जुटाकर इसकी वंशवृद्वि के लिए पालमपुर में प्लांटिंग शुरू की गई।
वर्ष 2007 में चीन से Ginkgo biloba के बीज मंगवाकर जर्मीनेशन ट्रायल शुरू हुआ। यह अहम परियोजना सीएसआईआर- हिमालयन जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर के वैज्ञानिक डॉ. गोपी चंद के नेतृत्व में आगे बढ़ी।
पांच एकड़, तीस हजार पौधे
संस्थान के वैज्ञानिक कलम और बीज दोनों विधियों से Ginkgo biloba का क्वालिटी प्लांटिंग मैटीरियल विकसित करने में सफल रहे हैं। संस्थान के निदेशक कहते हैं कि संस्थान के जैव विविधता फार्म में पांच एकड़ पर जिंको बाइलोबा के तीस हजार पौधे तैयार हैं।
संस्थान के लाहौल स्थित रिसर्च सेंटर में भी Ginkgo biloba के पौधे विकसित करने में कामयाबी हासिल की है। आठ हजार पौधे हिमाचल प्रदेश वन विभाग, गैर सरकारी संस्थाओं व किसानों को आबंटित किए हैं।
कलम और बीज दोनों से सफल प्रयोग
नेशनल मेडीसनल प्लांट्स बोर्ड की इस परियोजना के तहत सीआएसआईआर- हिमालयन जैवसंपदा प्रोद्योगिकी संस्थान पालमपुर के वैज्ञानिकों ने वर्ष 2005 से 2013 तक दो चरणों में Ginkgo biloba की वंश बढ़ोतरी के लिए प्रयोग किए।
कलम और बीज दोनों तरीकों से इसकी प्रमाणिक पौधे विकसित करने की एग्रो टेक्नीक विकसित की। प्रयोगशाला और नर्सरी में विभिन्न प्रयोग कर संस्थान के वैज्ञानिकों ने जिंको बाइलोबा का क्वालिटी प्लांटिंग मैटीरियल विकसित करने में सफलता हासिल की है।
यहां पैदा हो सकता है जिंको बाइलोबा
सीएसआईआर- हिमालयन जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर के वैज्ञानिकों के अनुसार Ginkgo biloba को समुद्रतल से 500 मीटर से लेकर 3500 मीटर की ऊंचाई तक उगाया जा सकता है।
इसकी खेती के लिए 10 डिग्री सेल्शियस से लेकर 25 डिग्री सेल्शियस तक तापमान आदर्श है। वैज्ञानिक सलाह देते हैं कि पांच साल तक नर्सरी में तैयार पौधे का ही रोपण करना चाहिए।
Ginkgo biloba का क्लालिटी प्लांटिंग मैटीरियल सीआएआईआर हिमालयन जैवसंपदा प्रोद्योगिकी संस्थान पालमपुर से प्राप्त किया जा सकता है।
प्रति हेक्टेयर होगी दो लाख कमाई
7- 8 साल के बाद Ginkgo biloba आय देना शुरू करता है। इसे फार्म में लगाने के साथ खेतों की मेढ़ों पर भी लगाया जा सकता है।
Ginkgo biloba से प्रति हैक्टेयर डेढ़ क्विंटल तकसूखी पत्तियां प्राप्त की जा सकती हैं।
दवा उद्योग में वर्तमान में Ginkgo biloba की पत्तियां 300- 400 रूपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिक रही हैं। ऐसे में कृषिकरण के तमाम खर्चे निकालने के बाद सलाना प्रति हेक्टेयर दो लाख से ज्यादा की आय हासिल की जा सकती है।
लाइलाज रोगों में रामबाण हैं पत्तियां
Ginkgo biloba की पत्तियों के चिकित्सीय प्रभावों पर दुनिया भर के तीन सौ वैज्ञानिकों ने अध्ययन और शोध किया और इसके बाद मानव सभ्यता के लिए इस पेड़ के नए युग का सूत्रपात हुआ।
Ginkgo biloba की पत्तियों में मौजूद जिंको लाइड्स व ग्लाइको साइड्स रसायन अल्जाइमर, कैंसर, जोड़ों का दर्द, किमोथैरेपी के दुष्प्रभाव कम करने व अवसाद जैसे लाइलाज रोगों में रामबाण है। Ginkgo bilobaको स्मरण शक्ति वृक्ष भी कहते हैं।
दवा उद्योग में तेजी से बढ़ रही मांग
दवा उद्योग में Ginkgo biloba की पत्तियों की वैश्विक मांग तेजी से बढ़ रही है। इसका सत्व दुनिया के टॉप दस कमर्शियल उत्पादों में शामिल है और इसकी मांग में सलाना 26 से 32 प्रतिशत बढ़ोतरी हो रही है।
चिकित्सा जगत में बढ़ती मांग को देखते हुए Ginkgo biloba के वंश को बढ़ाने की दुनिया भर मे कोशिशें हो रही हैं। प्रमाणिक कृषि तकनीक के जरिये दुनिया के सबसे पुराने औषधीय पेड़ की खेती पर जोर दिया जा रहा है।
चीन का धार्मिक व राष्ट्रीय पेड़
Ginkgo biloba चीन का मूल धार्मिक पेड़ है। यह पेड़ चीन का राष्ट्रीय पेड़ भी है। बौद्ध मठों में इसका खास महत्व है। इसकी पत्तियों का चीनी चिकित्सा पद्धति में लगभग डेढ़ हजार वर्षो से उपयोग होता आ रहा है।
चीन में लंबे समय से Ginkgo biloba की खेती होती आ रही है। माना जाता है किबौद्ध मठों में स्थित पेड़ 1,500 साल पुराने हैं। आज से 350 साल पहले तक इस गुणकारी पेड़ के औषधीय गुणों के बारे में केवल चीन के लोग ही जानते थे।
चीन से ही इसके बीज जापान ले जाए गए। बौद्ध धर्म में इस पेड़ की खास हैसियत के चलते कोरिया और जापान के कुछ हिस्सों में इसे बड़े पैमाने पर लगाया जाता है।
वर्ष 1690 में जर्मन वनस्पति शास्त्री केंफर इन्गेलबर्ट ने जब जापानी मंदिर के बागानों में इस पेड़ को देखा तब यूरोपीय लोगों का इस पेड़ के साथ पहला परिचय हुआ। इस पेड़ के औषधीय गुणों के चलते यूरोप और अमेरिका में भी इस पेड़ को लेकर संरक्षण की पहल हुई।
खतरे में है जिंको बाइलोबा का वजूद
धरती पर मानव सभ्यता का गवाह कहे जाने वाले Ginkgo biloba वृक्ष का वजूद संकट में है। भारत में इसके मात्र 33 ही पेड़ बचे हैं। बचे हुए पेड़ों में भी 60 प्रतिशत पेड़ों की उम्र 30- 35 साल के बीच है, जबकि 40 प्रतिशत पेड़ सूखने लगे हैं।
Ginkgo biloba के प्राकृतिक पुनरोत्पादन में नर के साथ मादा पेड़ का होना जरूरी है, तभी बीज बनते हैं। मादा पेड़ विलुप्त हो रहे हैं, इसीलिए पेड़ के वजूद पर संकट है।
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