लैंस व रेंज –लखनऊ के फोटो जर्नलिस्ट, पनापर में ‘अज्ञातवास’, मनमोहन शर्मा उत्तर प्रदेश के पच्चीस सालों के राजनीतिक फोटोजेनिक इतिहास के गवाह

लैंस व रेंज –लखनऊ के फोटो जर्नलिस्ट, पनापर में ‘अज्ञातवास’, मनमोहन शर्मा उत्तर प्रदेश के पच्चीस सालों के राजनीतिक फोटोजेनिक इतिहास के गवाह
लैंस व रेंज –लखनऊ के फोटो जर्नलिस्ट, पनापर में ‘अज्ञातवास’, मनमोहन शर्मा उत्तर प्रदेश के पच्चीस सालों के राजनीतिक फोटोजेनिक इतिहास के गवाह
विनोद भावुक / पालमपुर
पहली नजर में ही वे ओशो के संन्यासी दिखते हैं। उनके चेहरे पर अजब सा आकर्षण है और बात करते हैं तो बच्चे सी निश्छल हंसी उनके चेहरे पर पढ़ी जा सकती है। आजकल पालमपुर के पनापर गांव में अज्ञातवास आश्रम में धुरंधर और फक्कड़ फोटोग्राफर मनमोहन शर्मा का बसेरा है।
लखनऊ के रेलवे अधिकारी चमन लाल शर्मा के घर पैदा होने वाले मनमोहन शर्मा के हाथ में हाई स्कूल से पहले कैमरा था। माया पत्रिका के बंद होने के बाद भी कैमरे से उनका प्रेम उतना ही गहरा है। मनमोहन शर्मा ने पालमपुर के पनापर गांव में लीज पर जमीन लेकर अज्ञातवास आश्रम बनाया हैं।
मनमोहन शर्मा उत्तर प्रदेश के पच्चीस सालों के राजनीतिक फोटोजेनिक इतिहास के गवाह हैं। कभी किशोरावस्था में धौलाधार की ओर आना हुआ था। ओशो प्रेमी मनमोहन शर्मा ताउम्र धौलाधार के मोहपाश में बंधे रहे। जैसे ही उन्हें यहां आने का अवसर मिला, महानगर की चमक-धमक को छोड़ वे यहां के हो गए।
माया पत्रिका के साथ मुकाम
मनमोहन शर्मा ने दिल्ली प्रेस की पत्रिकाओं से बतौर फोटोग्राफर शुरुआत की। उन्होंने हिंदी की अपने जमाने की मशहूर पत्रिका माया के उत्तर प्रदेश ब्यूरो में बतौर फोटो जर्नलिस्ट अपने काम से फोटो जर्नलिज्म का नया मुहावरा गढ़ दिया।
माया पत्रिका में नेशनल फोटो जर्नलिस्ट रहे मनमोहन शर्मा का देश-विदेश में फोटो जर्नलिज्म करने का अवसर मिला। मनमोहन शर्मा उन फोटोग्राफरों में शुमार हैं, जिन्होंने यह अहसास करवाया कि एक फोटो कितना अहम है। आज उनके खींचे लाखों फोटो ऐतिहासिक हो गए हैं।
एक लाख से ज्यादा दुर्लभ फोटोग्राफ्स
मनमोहन शर्मा के पास 1980 से लेकर 2005 तक उत्तर प्रदेश की तमाम राजनीतिक हलचलों से संबंधित एक लाख से ज्यादा दर्लभ चित्र हैं। उन्होंने अपने कैमरे के दम पर पच्चीस सालों के राजनीतिक इतिहास को संजो कर रखा है। वे केवल राजनीतिक घटनाओं के साक्ष्य जुटाने वाले ही नहीं हैं, बल्कि उन तमाम घटनाओं के साक्षी रहे हैं।
अपने हर फोटोग्राफ के बारे में उनके पास विस्तृत विवरण है और विलक्षण स्मृति है। उनके दो बेटे ऋषि और मुनि उनके फोटोग्राफी के अद्भुत काम के डिजिटलाइजेशन में जुटे हुए हैं, ताकि शोधार्थियों के लिए यह लाभदायक हो।
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Jyoti maurya

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