एक्सक्लूसिव : हुनर से अंग्रेजों से जीतीं थी सिरमौर की गुलेरी रानी, पहली बार सामने आई प्रेरक कहानी

एक्सक्लूसिव : हुनर से अंग्रेजों से जीतीं थी सिरमौर की गुलेरी रानी, पहली बार सामने आई प्रेरक कहानी
एक्सक्लूसिव : हुनर से अंग्रेजों से जीतीं थी सिरमौर की गुलेरी रानी, पहली बार सामने आई प्रेरक कहानी
क्वीनी प्रधान की शोधपरक पुस्तक ‘रानीज़ एंड राज: पेन एंड स्वोर्ड’ में बुद्धिमान और ज्ञानी महिला के तौर पर दर्ज गुलेरी रानी
विनोद भावुक/ शिमला
सिरमौर की गुलेरी रानी हुनर के दम पर अंग्रेजों से जीतीं थी। क्वीनी प्रधान की शोधपरक पुस्तक ‘रानीज़ एंड राज: पेन एंड स्वोर्ड’ में पहली बार यह प्रेरक कहानी सामने आई है। पुस्तक में गुलेरी रानी बुद्धिमान और ज्ञानी महिला के तौर पर दर्ज हुई है। सिरमौर के इतिहास में राजा कर्म प्रकाश की दूसरी पत्नी गुलेरी रानी का नाम बहुत बुद्धिमान और ज्ञानी रानी के तौर पर अंकित है। वह 19वीं सदी के शुरुआती समय में सिरमौर रियासत की शासक थी।
गुलेरी रानी एक प्रभावशाली और शक्तिशाली रानी थी, जिसने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ संघर्ष किया था। जब यह स्पष्ट हो गया कि अंग्रेज सिरमौर के राजा को सिंहासन नहीं सौंपेंगे, तब गुलेरी रानी ने अपने कूटनीतिक कौशल से अंग्रेजों से संवाद स्थापित कर अपने नाबालिग बेटे को राजा नियुक्त करने के लिए राजी किया। रानी की यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी, क्योंकि सिरमौर के राजा अभी भी जीवित थे।
बीच का रास्ता निकाल कर किया राज
सिरमौर की गुलेरी रानी का पहला संदर्भ गायत्री चक्रवर्ती स्पिवक के लिखे गए एक लेख में मिलता है, जिसके मुताबिक एंग्लो-सिरमौर संबंधों में गुलेरी रानी की भूमिका अहम थी। अंग्रेजों के आदर और आक्रोश दोनों से बचते हुए गुलेरी रानी ने ‘मध्यम मार्ग’ के जरिये रियासत के सियासी संकटों का समाधान किया था।
क्वीनी प्रधान की पुस्तक ‘रानीज़ एंड राज: पेन एंड स्वोर्ड’ के मुताबिक गुलेरी रानी ने पंजाब के पहाड़ी राज्यों के बीच सिरमौर के राजनीतिक महत्व को स्थापित करने के लिए अंग्रेजों के साथ बातचीत की और जटिल संबंधों को संतुलित करने का प्रयास किया।
बेटे के लिए रीजेंट बनी गुलेरी रानी
‘रानीज़ एंड राज: पेन एंड स्वोर्ड’ में क्वीनी प्रधान लिखती हैं कि मैदानी इलाकों में राजघरानों के निर्वासन (1809-15) के दौरान गुलेरी रानी ने ब्रिटिश अधिकारियों के साथ संवाद के जरिये अपने परिवार की सत्ता को फिर से हासिल करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे सत्ता में वापसी के साथ पति से विरासत में मिली जर्जर रियासत के अभूतपूर्व सशक्तिकरण में भी एक प्रमुख सूत्रधार थीं।
नाहन से गोरखाओं के निष्कासन के समय रानी की अपने बेटे के लिए रीजेंट के रूप में बहाली हुई। सर्वोच्च ब्रिटिश कमांडर सर डेविड ऑक्टरलोनी ने गुलेरी रानी की मदद की, जिसका सिरमौर के भविष्य पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा। डेविड ऑक्टरलोनी ने राजा से लिखित वादा करवाकर सत्ता के लिए रानी का रास्ता साफ किया।
रानी को देनी पड़ी सती होने की धमकी
‘रानीज़ एंड राज: पेन एंड स्वोर्ड’ के अनुसार नाहन जब अंग्रेजों के अधीन आ गया तो रानी और उनके बेटे ने राजधानी को फिर से संभाल लिया, जबकि राजा और उनकी शेष पत्नियां पटियाला में बस गईं। शुरू में रियासत के कुलीनों और प्रजा ने उसके शासन को चुनौती दी, लेकिन जल्द ही गुलेरी रानी ने रियासत पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। रीजेंट के रूप में अपनी नई भूमिका को समायोजित करने में भी रानी को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
रियासत से निष्कासित राजा जब तक नज़रों से ओझल रहे, गुलेरी रानी ने विषम स्थिति को सफलता से संभाला। राजधानी की तलहटी में राजा के फिर से प्रकट होने से उनकी स्थिति और राजपूत शासन के स्थापित मानदंडों के बीच विरोधाभास सामने आया। इस संकट से निपटने के लिए गुलेरी रानी ने सती होने की धमकी दी।
सिरमौर के विकास में गुलेरी रानी का रोल
क्वीनी प्रधान अपनी पुस्तक में लिखती हैं कि 1815 से 1827 तक रीजेंसी में अपने नामांकन के तीन साल के अंदर ही गुलेरी रानी ने सिरमौर की स्थिति को मजबूती से स्थापित कर दिया था। सिरमौर ने ब्रिटिश शासन के पहले दशकों में निरंतर आर्थिक विकास हुआ। 1817 और 1830 के बीच सिरमौर की वार्षिक आय 37,000 रुपए से बढ़कर 53,000 रुपए हो गई।
गुलेरी रानी ने पहाड़ी अभिजात वर्ग में अपनी स्थिति का इस्तेमाल किया। गुलेरी रानी कितनी प्रभावशाली थी इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1818 में थारोचिन के ठाकुर के राज्याभिषेक की अध्यक्षता लाहौर के प्रतिष्ठित अधिकारियों के साथ सिरमौर के बाल-राजा ने की थी।
मां की मेहनत से बेटे को मिला ताज
‘रानीज़ एंड राज: पेन एंड स्वोर्ड’ के मुताबिक पहाड़ी शासक परिवारों की पारंपरिक प्रथाओं के अनुसार गुलेरी रानी ने अपने बेटे को संस्कृत, संगीत और कला के साथ उसके सामाजिक पद के अनुरूप सांस्कृतिक मानदंडों और परंपराओं की शिक्षा दिलवाई। उन्होंने शिष्टाचार और राजसी आचरण की शिक्षा से कहीं अधिक कला और लघु चित्रों के संरक्षण पर जोर दिया। चित्रकला में उनका व्यापक ज्ञान और चित्रकारों के साथ संबंध उनके बेटे को हस्तांतरित हो गए।
जब 1827 में अथक गुलेरी रानी का निधन हुआ तो उनका बेटा एक समारोह में सिंहासन पर बैठा, जिसकी अध्यक्षता पहाड़ी राज्यों के ब्रिटिश अधीक्षक ने की थी। शिमला हिल्स स्टेट के सभी राजाओं और सरदारों के बीच दरबार में मुख्य स्थान पर आसीन होना और सबसे प्राचीन राज्य का राजा बनना एक बड़ा सम्मान था। उनकी मां गुलेरी रानी की नीतियों के चलते यह सब संभव हुआ था।
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Jyoti maurya

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