200 साल पहले की लव स्टोरी : चंबा की राजकुमारी ने फ्रांस के सेनापति से किया प्यार, सीमा, भाषा और धर्म की दीवारों को तोड़कर बसाया घर- बार

200 साल पहले की लव स्टोरी : चंबा की राजकुमारी ने फ्रांस के सेनापति से किया प्यार, सीमा, भाषा और धर्म की दीवारों को तोड़कर बसाया घर- बार
विनोद भावुक/ चंबा
यह ऐतिहासिक प्रेम कहानी है एक रियासत की राजकुमारी और एक विदेशी सेनापति के साहस और समर्पण की। यह अमर प्रेमगाथा आज भी फ्रांस के सेंट ट्रोपेज़ में समुद्री लहरों में गूंजती है और पीरपंजाज के आंचल तले रावी किनारे बसे चंबा की मिट्टी की खुशबू वहां तक ले जाती है। दो सौ साल पहले चंबा की राजकुमारी बन्नू पान देई और फ्रांस के जनरल जीन फ्रांस्वा अलार्ड सीमाओं, भाषाओं और धर्मों की दीवारों को तोड़कर एक- दूसरे के हो गए थे।
कलांतर में यह प्रेम कहानी भारत और फ्रांस के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान का भी प्रतीक बन गई। राजकुमारी बन्नू पान देई के बारे में चंबा में बेशक कम लोग जानते हों, लेकिन फ्रांस में आज भी उनका नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। चंबा की इस राजकुमारी की फ्रांस में भव्य प्रतिमा स्थापित की गई है।
लाहौर में प्यार चढ़ा परवान
चंबा के राजा मेंगा राम और उनकी पत्नी बन्नी पांजे देई की पुत्री बन्नू पान देई का जन्म 25 जनवरी 1814 को हुआ था। राजमहल में लाड़- प्यार से पली बन्नू पान देई बेहद सुन्दर युवती थीं। चंबा से सटी कई रियासतों के राजकुमार इस राजकुमारी से शादी करने के सपने संजो रहे थे। उससे विवाह के लिए प्रस्ताव राजमहल तक पहुंचने लगे।
यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही बन्नू पान देई का दिल फ्रांस के जनरल जीन फ्रांस्वा अलार्ड पर आ गया था।
शादी के बाद फ्रांस प्रवास
1826 में बन्नू पान देई ने जनरल अलार्ड से हिन्दू रीति रिवाज से प्रेम विवाह कर लिया। शादी के बाद यह दंपति लाहौर और पेशावर में रहने लगा। उनके सात बच्चे हुए थे, जिनमें से दो का शिशु अवस्था में ही निधन हो गया था। उन्होंने एक अनाथ बच्चे अकील को भी गोद लिया था।
साल 1834 में जनरल अलार्ड और बन्नू देई फ्रांस गए। उनका भव्य स्वागत हुआ और फ्रांस के राष्ट्रीय अख़बारों में यह जोड़ा सुर्खियां बन गया। सेंट ट्रोपेज में पुश्तैनी हवेली में रहते हुए इस दंपति का साल 1835 में क्रिस्चियन रस्मो-रिवाज़ों से पुनः विवाह किया गया। इसके बाद उनके बच्चों को वैध माना गया और उनकी शिक्षा की व्यवस्था की गई।
पेशावर में जनरल अलार्ड का मकबरा
महाराजा रणजीत सिंह के फ़्रांसिसी सेनापति जनरल अलार्ड फ्रांस से पंजाब वापस आ गए। उसके बाद वह कभी भी अपनी पत्नी और बच्चों से नहीं मिल सके। साल 1841 में जनरल अलार्ड की पेशावर में मृत्यु हो गई। बन्नू देई ने अपने पति का अंतिम संस्कार पेशावर में किया और उनकी याद में पेशावर में एक भव्य मकबरा बनवाया।
पति की मौत के बाद बन्नू देई सेंट ट्रोपेज में अपने बच्चों सहित रहने लगीं। बन्नू देई हर शाम अपने पति की याद में समुद्र के किनारे जाती थी। यह प्रथा आज भी फ्रांस की महिलाओं में जीवित है, जो अपने फौजी पति की याद में हर शाम को समुद्र के किनारी जाती हैं।
चंबा की राजकुमारी के सम्मान में फ्रांस में स्मारक
बन्नू देई ने ईसाई धर्म अपना लिया। फ्रांस के महाराजा बन्नू पान देई के धर्मपिता और फ्रांस की महारानी बन्नू पान देई की धर्ममाता बनीं। बन्नू पान देई ने सेंट ट्रोपेज में अपने पुराने चित्रों और यादों के बीच समय बिताया। वह फ्रांस के लोगों को चंबा की संस्कृति, जीवन और रिवाज़ों के बारे में बतातीं थी। साल 1845 में उनकी बेटी फेलिसी का निधन हो गया।
बन्नू पान देई की मौत 13 जनवरी 1884 को सेंट ट्रोपेज में हुई। उन्हें सेंट ट्रोपेज के कब्रिस्तान में जनरल अलार्ड की कब्र के नजदीक दफनाया गया। फ्रांस सरकार ने बन्नू देई के सम्मान में उनकी और उनके पति जनरल अलार्ड की प्रतिमा बनाई। फ्रांस जाने वाले भारतीय राजनायिक और राजनेता बन्नू पान देई के सम्मान में बने स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित करते हैं।
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