धर्मशाला से देखा था ब्रिटिश महिला एनी बेसेंट ने आध्यात्मिकता के रास्ते भारत की मुक्ति और जागृति का सपना

धर्मशाला से देखा था ब्रिटिश महिला एनी बेसेंट ने आध्यात्मिकता के रास्ते भारत की मुक्ति और जागृति का सपना
धर्मशाला से देखा था ब्रिटिश महिला एनी बेसेंट ने आध्यात्मिकता के रास्ते भारत की मुक्ति और जागृति का सपना
विनोद भावुक/ धर्मशाला
बेशक आज कांगड़ा जिला मुख्यालय धर्मशाला तिब्बती आध्यात्मिकता के केंद्र के तौर पर आकार ले चुका है और निर्वासित तिब्बत सरकार यहां से चीन से तिब्बत की मुक्ति की राह देखती है। लेकिन यह भी याद रखना ज़रूरी है कि कभी एनी बेसेंट जैसी ब्रिटिश महिला ने प्राचीन हिन्दू सभ्यता को श्रेष्ठ सिद्धकर आध्यात्मिक जागरण के जरिये धर्मशाला की इन वादियों में भारत की मुक्ति और जागृति का स्वप्न देखा था।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और आध्यात्मिक जागरण की प्रभावशाली आवाज़ रहीं एनी बेसेंट थियोसोफिकल आंदोलन की वैश्विक नेता बनने के बाद भारत आईं। उन्होंने हिमालय क्षेत्र, विशेष रूप से कांगड़ा जिला के धर्मशाला को अपने लिए एक आध्यात्मिक प्रयोगशाला के तौर पर चुना। धर्मशाला की शांत वादियों में उन्होंने ध्यान और दर्शन के कई सत्र आयोजित किए।
धौलाधार में शुद्ध आत्मिक वातावरण
1907–1913 के बीच एनी बेसेंट के पत्रों और वक्तव्यों में धर्मशाला और धौलाधार का उल्लेख एक ‘शुद्ध आत्मिक वातावरण’ वाले स्थान के रूप में हुआ है। धर्मशाला में उन्होंने स्थानीय निवासियों और कुछ अंग्रेज अधिकारियों के साथ भारतीय दर्शन, कर्म सिद्धांत और पुनर्जन्म जैसे विषयों पर संवाद किए थे। The Theosophist पत्रिका के कुछ अंकों (1912–1916) में उनके धर्मशाला यात्रा के अनुभव प्रकाशित हुए थे।
एनी बेसेंट एक पत्र में वे लिखती हैं, ‘The mountains of Dharamsala are like the silent sentinels of India’s ancient wisdom. Here the soul speaks louder than speech.’ धर्मशाला के पास के गांवों में उन्होंने शिक्षा और महिला जागरूकता को लेकर स्थानीय कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित किया था।
राजनीतिक संवाद के लिए शिमला की सैर
ब्रिटिश भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला में एनी बेसेंट का आना केवल सामाजिक शिष्टाचार नहीं था। वे वहां ब्रिटिश अफसरों, भारतीय बुद्धिजीवियों और स्वदेशी आंदोलन से जुड़े लोगों से संवाद करती थीं। 1910 के दशक में उन्होंने शिमला में कई आत्मिक व्याख्यान दिए, जिनमें ‘भारत का आत्मा और उसका पुनरुत्थान’ जैसे विषय शामिल थे। शिमला के क्लबों और औपनिवेशिक हॉलों में आयोजित होने वाले उनके व्याख्यानों में यूरोपीय महिलाएं, ब्रिटिश ऑफिसर और भारतीय अधिवक्ता शामिल होते थे।
एनी बेसेंट एक अन्य पत्र में वे लिखती हैं, ‘In Shimla’s proud corridors of power, I have heard echoes of India’s true voice — the voice of her soul yearning for freedom.’ शिमला में उनके विचारों ने कुछ ब्रिटिश और भारतीय महिलाओं को सामाजिक सेवा की ओर प्रेरित किया।
आध्यात्मिक संवाद और राजनीतिक सजगता का संगम
एनी बेसेंट की पत्रावली में Collected Works of Annie Besant, Volume 12–15 में शिमला और धर्मशाला के संदर्भ स्पष्ट रूप से मिलते हैं। थियोसोफिकल सोसायटी की आर्काइव और ब्रिटिश लाइब्रेरी में उनके उन पत्रों के दस्तावेज सुरक्षित हैं, जिनमें हिमालय के इन क्षेत्रों को आत्मिक चेतना का केंद्र बताया गया है। उनकी हिमालय यात्राएं दर्शाती हैं कि स्वतंत्रता की चेतना केवल राजनीतिक मंचों पर नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जागरण और आत्मखोज के रास्तों से भी आकार ले रही थी।
शिमला और धर्मशाला की उनकी यात्राएं भारत की आत्मा को गहराई से समझने और उसे जगाने का एक प्रयास थीं। उनके लिए शिमला और धर्मशाला केवल भौगोलिक स्थल नहीं थे, बल्कि भारत की आत्मा से संवाद के पवित्र स्थल थे।
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Jyoti maurya

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