Britishers in Kullu : व्हीकल पहुंचने लगे तो कुल्लू- मनाली छोड़ने लगे अंग्रेज़
हिमाचल बिजनेस कंटेन्ट
Britishers in Kullu : उस समय तक कुल्लू घाटी तक केवल पैदल या पहाड़ी टट्टू की सवारी करके ही पहुंचा जा सकता था। मंडी-लारजी गॉर्ज रोड का खुलना था कि बसें, ट्रक और निजी कारें कुल्लू आने लगीं और कुल्लू कश्मीर की तरह एक लोकप्रिय अवकाश स्थल में तब्दील हो गया, इससे कुल्लू के Britishers in Kullu (ब्रिटिश निवासियों) के लिए जीवन का पूरा स्वरूप बदल गया। साल 1927 के आसपास कुल्लू में परिवहन युग की शुरुआत के कारण यहां बसने वाल ब्रिटिश लोगों ने कुल्लू को छोडना शुरू कर दिया।
आजादी से पहले ही कुल्लू छोड़ गए अंग्रेज़
साल 1947 में जब देश को आजादी मिली, तब तक कुछ को छोड़कर अधिकांश Britishers in Kullu अपनी संपत्ति बेच चुके थे और घाटी छोड़कर इंग्लैंड चले गए थे। पेनेलोप चेटवुड की पुस्तक ‘कुल्लू: द एंड ऑफ द हैबिटेबल वर्ल्ड’ के अनुसार, इसका भारतीय स्वतंत्रता के आगमन से लगभग 20 साल पहले 1927 के आसपास कुल्लू में यातायात के शुरू होने के साथ ही कुल्लू से अंग्रेजों का मोह भंग हो गया।
अंग्रेजों ने बेच दी अपनी प्रॉपर्टी
कर्नल आरएचएफ रेनिक ने 1921 में द हॉल एस्टेट मंडी के राजा को बेच दिया और उसके तुरंत बाद बाजौरा का गढ़ एस्टेट बेच दिया। विली डोनाल्ड की साल 1944 में मृत्यु हो गई। उन्होंने अपनी दो बेटियों बारबरा और हिलेरी को डोभी एस्टेट और कुटबई एस्टेट छोड़ दिया। साल 1945 में डोभी एस्टेट और साल 1952 में कुटबई एस्टेट बिक गया। सीआर जॉनसन और बैनन परिवार जैसे बहुत कम लोग थे जो कभी वापस नहीं गए।
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