लन्दन के रॉबर्ट शा की इंद्रूनाग में ‘चायकोठी’, कांगड़ा चाय को तुर्किस्तान के बाजारों में पहुंचाने वाले पहले ब्रिटिश व्यापारी

लन्दन के रॉबर्ट शा की इंद्रूनाग में ‘चायकोठी’, कांगड़ा चाय को तुर्किस्तान के बाजारों में पहुंचाने वाले पहले ब्रिटिश व्यापारी
लन्दन के रॉबर्ट शा की इंद्रूनाग में ‘चायकोठी’, कांगड़ा चाय को तुर्किस्तान के बाजारों में पहुंचाने वाले पहले ब्रिटिश व्यापारी
विनोद भावुक/ धर्मशाला
लन्दन में पैदा हुए रॉबर्ट बार्कले शा ने कांगड़ा जिला के धर्मशाला से सटे पहाड़ी क्षेत्र में ‘खन्यारा टी एस्टेट’ की बुनियाद रखकर कांगड़ा चाय उद्योग की नींव रखी थी। शॉ ने कांगड़ा की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार चीन से लाई गई कमेलिया किस्म की विशेष चाय प्रजातियाँ रोपीं। उन्होंने इन्द्रूनाग में चाय की फैक्टरी लगाई, जिसे लोग ‘चाय कोठी’ के नाम से जानते थे।
रॉबर्ट बार्कले शा ने तुर्किस्तान के बाजारों में कांगड़ा चाय पहुँचाने के साथ वहाँ से कारपेट और रेशम का व्यापार किया। वे तुर्कीस्तान, रूस और ब्रिटेन के बीच सिल्क रूट के जरिये कारोबार के शुरुआती खिलाडियों में शामिल थे, जिन्होंने तुर्कीस्तान से कारपेट आयत करने और उनको चाय निर्यात करने के कारोबार को मजबूत किया।
बीमारी नहीं रोक पाई हुनर की उड़ान
रॉबर्ट बार्कले शा का जन्म 12 जुलाई 1839 को लंदन के अप्पर क्लैप्टन में हुआ था। उन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के ट्रिनिटी कॉलेज से पढ़ाई की। बचपन में गठिया की गंभीर बीमारी से ग्रस्त होकर वे सैन्य सेवा में शामिल नहीं हो सके। 1859 में वे भारत आए और अपने रिशतेदारों के पास उत्तर भारत की कांगड़ा घाटी में पहुंचे।
रॉबर्ट बार्कले शा ने 1868–69 में कांगड़ा चाय के निर्यात के लिए तुर्किस्तान तथा यारकंद, काशगर प्रांतों की साहसिक यात्रा की। उन्होंने तुर्किस्तान से कारपेट और रेशम आयात किए और ब्रिटिश भारत में इसका निर्यात किया। रॉबर्ट बार्कले शा ने ‘ए विजिट टू हाई टरटरी, यारकंद, काशगर’ पुस्तक लिखी। 1872 में उन्हें रॉयल जियोग्राफिकल सोसायटी के पेट्रेंस गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया।
ब्रिटिश सरकार में सियासी भूमिका
रॉबर्ट बार्कले शा के व्यापारिक योगदान को देखते हुए ब्रिटिश भारत सरकार में उनका चयन हुआ। 1878 में उन्हें मांडलेय का रेजीडेंट नियुक्त किया गया, जहाँ उन्होंने शाही संकट के दौरान साहस भरी भूमिका निभाई। वे एक अभिनव चाय उत्पादक, एक बहादुर खोजी और एक दूरदर्शी कूटनीतिज्ञ थे। कांगड़ा से मांडलेय तक का उनका सफर सिर्फ भौगोलिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक पड़ावों से भरा रहा।
15 जून 1879 को गठिया रोग के कारण रॉबर्ट बार्कले शा का निधन हो गया। उनकी विरासत आज भी कांगड़ा चाय संस्कृति और सिल्क रूट व्यापार की भू राजनीति से जुड़ी धरोहर के रूप में जीवित है। उनका जीवन यूरोपीय औपनिवेशिक उद्यमिता तथा मध्य और उच्च एशियाई कूटनीति की मिसाल है।
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Jyoti maurya

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