1000 साल पुरानी विरासत को सहेजने की प्रेरककथा, ग्रामीणों ने अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों से मिलकर संरक्षित किए 11वीं–12वीं सदी में बने सात प्राचीन बौद्ध मठ

1000 साल पुरानी विरासत को सहेजने की प्रेरककथा, ग्रामीणों ने अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों से मिलकर संरक्षित किए 11वीं–12वीं सदी में बने सात प्राचीन बौद्ध मठ
विनोद भावुक/ शिमला
किन्नौर ज़िले के नाको गांव के ग्रामीणों ने अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों से मिलकर हिमालय की 1000 साल पुरानी सांस्कृतिक विरासत को सहेजने की अनूठी प्रेरककथा लिख डाली है। इस पहल के चलते इतिहास होने की कगार पर खड़े 11वीं–12वीं सदी में बने नाको के सात प्राचीन बौद्ध मठों को नई सांस मिली और आने वाली पीढ़ियों के लिए ये धरोहर स्मारक सुरक्षित हो गए। यह एक मिसाल है कि कैसे हम एक ऐसे स्मारकों को बचा सकते हैं, जो हिमालय की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा है।
ऑस्ट्रिया की विएना यूनिवर्सिटी की पहल
किन्नौर ज़िले के नाको गांव में 3600 मीटर की ऊँचाई पर 11वीं–12वीं सदी के बने सात प्राचीन बौद्ध मठ हैं, जिनमें रंग-बिरंगे भित्ति चित्र और ऊँचे लकड़ी के छज्जे हैं। सीमांत स्थिति में होने के कारण ये पुरातन स्मारक भूकंप, बारिश, बर्फ और दीमक से खतरे की जद में थे। ऑस्ट्रिया की विएना यूनिवर्सिटी ने ‘नाको रिसर्च एंड प्रिज़रवेशन प्रोजेक्ट’ के तहत इन धरोहर मंदिरों के अनुसंधान और संरक्षण का बीड़ा उठाया, ताकि एक हजार साल से भी पुराने इस बौद्ध मठों की रक्षा की जा सके।


दुनिया भर की संस्थाओं का सहयोग
‘नाको रिसर्च एंड प्रिज़रवेशन प्रोजेक्ट’ साल 1989 में शुरू किया गया था। साल 2001 में इस प्रोजेक्ट को ‘पश्चिमी हिमालय की सांस्कृतिक विरासत’ नामक अनुसंधान इकाई में शामिल किया गया। इस परियोजना का नेतृत्व प्रो. डेबोरा क्लिमबुर्ग साल्टर ने किया। हिमालय के इन धरोहर स्मारकों को बचाने के लिए दुनिया भर की संस्थाओं का सहयोग मिला। वर्ल्ड मोनुमेंट्स फ़ंड, ऑस्ट्रियन साइन्स फ़ंड और एसओएएस लंदन सहित कई संस्थाओं ने इस प्रोजेक्ट के लिए वित्तीय मदद दी।
डिजिटल फोटो आर्काइव
साल 2002 से इंग्लैंड, ऑस्ट्रिया और भारत के विशेषज्ञों ने मठों की दीवारों व छतों का निरीक्षण करना शुरू किया। साल 2004 में लकड़ी की छत के अध्ययन में पाया गया कि इसमें हिमालयन देवदार,मिट्टी, जिप्सम और गोंद का प्रयोग हुआ हैं तथा स्थानीय रंग इस्तेमाल किए गए हैं। प्रोजेक्ट के तहत इन मंदिरों का कम्प्यूटर-आधारित नुकसान विश्लेषण और डिजिटल फोटो आर्काइव बनाया गया, जिसमें 150,000 से अधिक इमेज डेटा शामिल है। गूगल अर्थ में 3डी मॉडल बनाकर मठों का भौगोलिक और दृश्य रूप तैयार किया गया।


वर्ल्ड मोनुमेंट्स फ़ंड और विल्सन चेलेंज ग्रांट
नाको के इन प्राचीन बौद्ध मठों की दीवारों पर दरारें पड़ गई थीं। दीवारों पर बनीं पेंटिंग्स खराब होने लगी थी और बारिश के पानी के रिसाव से मंदिर खराब हो रहे थे। इन समस्याओं के समाधान के लिए मंदिरों की दीवारों व छतों को स्थिर करने, उनकी सफ़ाई करने तथा संरक्षित रंगों की पुनर्स्थापना करने की योजना बनाई गई। साल 2002 में वर्ल्ड मोनुमेंट्स फ़ंड ने नाको के इन बोध मठों को 100 सबसे असुरक्षित साइट्स में शामिल किया और इनके संरक्षण के लिए विल्सन चेलेंज ग्रांट प्रदान की। नाको रिसर्च एंड प्रिज़रवेशन प्रोजेक्ट के तहत इन धरोहर स्मारकों के संरक्षण के लिए अब भी लगातार काम हो रहा है, ताकि ये मंदिर आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रहें।


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