लोक के राग’ – 2 : आकाशवाणी शिमला की पहली लोकगायिका कमला रानी, जिन्होंने भारत के पहले राष्ट्रपति के समक्ष दी थी प्रस्तुति

लोक के राग’ – 2 : आकाशवाणी शिमला की पहली लोकगायिका कमला रानी, जिन्होंने भारत के पहले राष्ट्रपति के समक्ष दी थी प्रस्तुति
विनोद भावुक /सोलन
साल 1955 में जब शिमला में आकाशवाणी केन्द्र की स्थापना हुई, तो कमला रानी उस दौर की पहली महिला लोकगायिका बनीं, जिन्होंने हिमाचल के पारंपरिक गीतों, संस्कार गीत, ऋतु गीत, गिद्धे, भजन, लोका और रामायण गीतावली को राष्ट्रव्यापी मंच पर प्रस्तुत किया। रोचक, मनोरंजक और ज्ञानवर्धक कहानियों के प्लेटफॉर्म ‘हिमाचल बिजनेस’ की ‘लोक के राग’ सीरीज की आज की कड़ी में बात देवभूमि हिमाचल की वादियों में गूंजती रही एक ऐसी आवाज़ की, जिसने न केवल लोकसंस्कृति को जीवंत रखा, बल्कि अपनी मधुरता और बुलंदी से हिमाचल प्रदेश की पहचान को देशभर में प्रतिष्ठा दिलाई। यह आवाज़ थी स्व. कमला रानी की। अर्की-कुनिहार क्षेत्र की लोकगायिका कमला रानी, जिनका जीवन हिमाचल प्रदेश के लोकगीतों की आत्मा बन गया।
कमला रानी को भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के समक्ष प्रस्तुति देने का गौरव प्राप्त हुआ। हिमाचल निर्माता डॉ. यशवंत सिंह परमार कहते थे ‘कमला जी अपने गीत सबको सिखा दो, ताकि हिमाचल में लोकगायकों की कमी न रहे।‘ वर्ष 1981-82 में उन्हें हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ठाकुर राम लाल ने श्रेष्ठ लोकगायिका के रूप में सम्मानित किया था।
शास्त्रीय संगीत की विधिवत शिक्षा
कमला रानी का जन्म 6 जनवरी 1920 को हुआ। वह बचपन से ही संगीत की ओर आकर्षित थीं। यह सिर्फ शौक नहीं था, बल्कि उनके पारिवारिक संस्कारों में रचा-बसा एक गुण था। अपने बड़े भाई शिवराम से प्रेरणा लेकर उन्होंने उस्ताद बूटे खां से शास्त्रीय संगीत की विधिवत शिक्षा प्राप्त की।
उनके गायन की शुरुआत उस दौर में हुई जब फिल्मी गीतों का चलन नगण्य था। राजाओं-महाराजाओं के दरबारों में गायन को सर्वोच्च स्थान प्राप्त था, और राजा कुठाड़, अर्की, पटियाला और नेपाल के दरबारों से उन्हें मंच मिला – जिससे उनका नाम और सम्मान चारों ओर फैल गया।
विरासत के रूप में संगीत
आकाशवाणी की A-ग्रेड कलाकार होते हुए भी उनमें कोई अहंकार नहीं था। जब वे आकाशवाणी भवन आतीं, तो केन्द्र निदेशक उनका स्वागत स्वयं करते थे। कमला रानी की आवाज़ में गहराई और बुलंदी का अद्भुत मेल था। ‘बाम्हणा रे छोरुआ’ जैसे गीत जब उनकी आवाज़ में गूंजते, तो श्रोताओं को झटका सा लगता। ऐसी थी गायिकी पर उनकी पकड़ और उनकी मखमली आवाज का असर।
उनके गीत आज भी रिकॉर्डिंग्स में सुने जाते हैं और नए लोक गायकों के लिए मार्गदर्शक बने हुए हैं। उनकी इस परंपरा को उनके बच्चों मीना, राजकुमारी, कृष्णा कुमारी, बेटे इन्द्रपाल छावड़ा और विजय छाबड़ा ने आगे बढ़ाया। इन सभी ने हिमाचल प्रदेश के लोक संगीत को उसी जोश और समर्पण से जीवित रखा।
एक्टिंग में किया कमाल
कमला रानी सिर्फ गायिका नहीं थीं, वे एक समर्पित कलाकार भी थीं। हिमाचल प्रदेश में बनी बाल फिल्म “जैगो ज़िंग ज़िंग बार” में उन्होंने दादी मां की भूमिका निभाई। मनाली में शूटिंग के दौरान उनके जोश और अभिनय कौशल ने साबित कर दिया कि वे अभिनय में भी उतनी ही पारंगत थीं जितनी गायन में।
आवाज़ जो कभी मरेगी नहीं
26 नवम्बर 1989 को जब कमला रानी ने अंतिम सांस ली, तो यह हिमाचली लोकसंगीत के एक स्वर्णिम युग का अवसान था, लेकिन उनकी आवाज़ और विरासत आज भी आकाशवाणी के माध्यम से जीवित है, और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित कर रही है।
कमला रानी न केवल एक गायिका थीं, बल्कि एक सांस्कृतिक आन्दोलन थीं। उन्होंने हिमाचल प्रदेश की आत्मा को सुरों में पिरोया और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अमूल्य धरोहर छोड़ गईं। उनकी याद में गाया उनका हर लोकगीत, एक श्रद्धांजलि है – उस आवाज़ को, जो कभी मरेगी नहीं।
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