धरोहर संरक्षण : नई नस्लों के लिए जिंदा रहे इतिहास, डॉ. राकेश कुमार शर्मा की भूमिका खास

धरोहर संरक्षण : नई नस्लों के लिए जिंदा रहे इतिहास, डॉ. राकेश कुमार शर्मा की भूमिका खास
विनोद भावुक / मंडी
इतिहास केवल धूल से अटी पुरानी किताबों की श्रृंखला नहीं, बल्कि वह पुल है जो वर्तमान को अतीत से जोड़ता है। इस पुल को मजबूती देने वाले कारीगरों में एक नाम है डॉ. राकेश कुमार शर्मा, जिन्होंने अपने पूरे जीवन को इतिहास, लोक परंपराओं और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के मिशन में समर्पित कर दिया है। डॉ. राकेश कुमार शर्मा सिर्फ एक प्रोफेसर नहीं, भारतीय इतिहास, कला और संस्कृति को पुनर्परिभाषित करने वाले प्रेरणास्रोत हैं।
सरदार पटेल विश्वविद्यालय मंडी के इतिहास विभाग के प्रमुख डॉ. राकेश कुमार शर्मा न केवल शिक्षा बल्कि शोध, अकादमिक नवाचार और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के प्रेरक हैं। उनके नेतृत्व में विभाग ने 6 प्रतिष्ठित संस्थानों से एमओयू, 6 राष्ट्रीय सेमिनार, 5 शैक्षणिक भ्रमण, 12 जयंती समारोह, सांस्कृतिक कार्यक्रम और ‘सरदार पटेल को नमन’ जैसी ऐतिहासिक प्रदर्शनियों का सफल आयोजन किया।


दो राष्ट्रीय शोध परियोजनाओं में शामिल
डॉ. राकेश कुमार शर्मा वर्तमान में दो राष्ट्रीय शोध परियोजनाओं से जुड़े हैं। भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद और ठाकुर रामसिंह शोध संस्थान द्वारा प्रायोजित ‘हिमाचल का वृहद इतिहास (2024–2029)’ परियोजना के वे सह-परियोजना निदेशक हैं। संस्कृति मंत्रालय द्वारा प्रायोजित ‘अनसंग हीरोज़ ऑफ हिमाचल’ परियोजना में उनकी विशेष भूमिका है। उन्होंने ‘गाँव का इतिहास’ जैसी परियोजनाओं के ज़रिए जन भागीदारी से ग्रामीण इतिहास लेखन को नई दिशा दी है।
डॉ. राकेश कुमार शर्मा अब तक 12 पुस्तकें, 13 पुस्तक अध्याय, 14 शोधपत्र और 75 से अधिक राष्ट्रीय–अंतरराष्ट्रीय सेमिनारों में शोधपत्र प्रस्तुत कर चुके हैं। उनका दृष्टिकोण केवल तथ्यपरक नहीं, बल्कि उसमें लोक संस्कृति, पुरातत्व, साहित्य और समाजशास्त्र का समावेश होता है। वे सरदार पटेल पर 5 पुस्तकें लिख चुके हैं, जिनमें से ‘लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल का जीवनवृत्त’ पुस्तक का विमोचन मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने किया।


प्रशिक्षण, नेतृत्व और सामाजिक योगदान
डॉ. राकेश कुमार शर्मा इग्नू के अकादमिक काउंसलर, चार विश्वविद्यालयों के पेपर सेटर, और एनएसएस के पूर्व कार्यक्रम अधिकारी हैं। वे राष्ट्रीय सेवा योजना, नेहरू युवा केंद्र, अखिल भारतीय हिंदी महासभा (हिमाचल प्रांत), भाषा अकादमी की पहाड़ी भाषा विकास समिति के सदस्य और इतिहास दिवाकर के संपादक जैसे अनेक संस्थागत पदों पर सक्रिय हैं।
डॉ. राकेश कुमार शर्मा अपने शिक्षकों डॉ. एम.एस. अहलूवालिया, डॉ. विद्या चंद ठाकुर, प्रो. कुमार रत्नम और डॉ. आर.सी. शर्मा को याद करते हुए कहते हैं कि ‘इतिहास केवल पुस्तकीय ज्ञान नहीं बल्कि समाज का दर्पण है, यह आत्मबोध और रचनात्मक सामाजिक परिवर्तन का माध्यम है।‘
हमीरपुर की मिट्टी से निकला हीरा
हमीरपुर जिला की सदर तहसील के कपहड़ा गांव में जन्मे डॉ. राकेश कुमार शर्मा ने सरकारी स्कूलों में पढ़ाई कर शिमला विश्वविद्यालय से एमए, एमफिल और दीनदयाल उपाध्याय विचार में पीजी डिप्लोमा किया। जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर से उन्होंने जनरल ज़ोरावर सिंह पर शोध कर पीएचडी की। उनके पीएचडी शोध को भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद की जूनियर रिसर्च फेलोशिप प्राप्त हुई थी।
इतिहास में उनके शोध कार्य के लिए डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी स्मृति पुरस्कार और डॉ. एम.एस. अहलूवालिया राज्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्हें नेहरू युवा केंद्र द्वारा सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय सेवा कर्मी सम्मान और जी.जेड.एस कॉलेज में सर्वश्रेष्ठ व्यक्तित्व पुरस्कार मिला है।


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