रोचक किस्सा : शगुन की अंगूठी बेच उपन्यास छ्पवाने दिल्ली पहुंच गए थे कुलदीप चंदेल

रोचक किस्सा : शगुन की अंगूठी बेच उपन्यास छ्पवाने दिल्ली पहुंच गए थे कुलदीप चंदेल
रोचक किस्सा : शगुन की अंगूठी बेच उपन्यास छ्पवाने दिल्ली पहुंच गए थे कुलदीप चंदेल
विनोद भावुक/ बिलासपुर
प्रसंग कोई 50 साल पुराना है। 26 साल की उम्र में बिलासपुर के एक युवा उपन्यासकार ने ‘विद्रोही’ शीर्षक से एक उपन्यास लिख डाला। उपन्यास लिख दिया सोचा कि अब इसका प्रकाशन करवाते हैं।
जेब में इतने पैसे थे नहीं कि दिल्ली जाकर किसी प्रकाशक से इसे छ्पवाने की बात की जा सके।
उस उपन्यासकार ने तब विवाह में शगुन के रूप में मिली सोने की अंगूठी बेच दी और दिल्ली पहुंच गया।
प्रकाशक ने युवा समझकर उपन्यासकार को टाल दिया तो दिल्ली से बैरंग हिसार लौट आया, जहां वह किसी जमींदार के यहां खेती का काम करता था। रोचक, मनोरंजक और ज्ञानवर्धक कहानियों के प्लेटफॉर्म ‘हिमाचल बिजनेस’ पर प्रेरक कहानी बिलासपुर के वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार कुलदीप चंदेल की, जो 75 साल की उम्र में भी लेखन में खासे सक्रीय हैं।
लेखन से चार दशक का नाता
कुलदीप चंदेल ने साल 1983-83 से लिखना शुरु कर दिया था। पिछले चार दशक में उन्होंने सरिता ,साप्ताहिक हिंदुस्तान, सानुबंध आदि कई पत्र- पत्रिकाओं में लिखा। उनके दो कहानी संग्रह ‘परिवर्तन’ व ‘मनोवृति’ साल 1988-90 के बीच प्रकाशित हुए हैं। जब ‘वीर प्रताप’ में उनकी कोई कहानी छ्पती थी तो पाठकों के बहुत से पत्र आते थे।
कुलदीप चंदेल की लिखी बाबा नाहर सिंह बजिया की ‘स्तुति पुस्तिका’ के तीन संस्करण छप चुके हैं।
आकाशवाणी शिमला से उनके लिखे बिलासपुर के ऐतिहासिक और धार्मिक स्थानों के एक दर्जन से अधिक रूपकों की श्रृंखला प्रसारित हुई है।
खबरें लिखने पर धमकियों का सिलसिला
कुलदीप चंदेल बताते हैं कि एक बार कॉलेज की एक लड़की को किसी गुंडे ने थप्पड़ मार दिया।
उन्होंने जब इस पर वीर प्रताप में खबर लिखी तो उक्त गुंडे ने धमकी दी कि पत्रकार के हाथ तोड़ दिए जाएंगे। गुंडे की यह धम्की गीदड़ भभकी साबित हुई।
कुलदीप चंदेल ने एक पागल लड़की के बारे में खबर लिखी। उन्होंने लड़की के पागल होने की वजह भी लिखी। जिस आदमी की वजह से वह पागल हुई थी, उनसे उसका शोषण किया था। वहां से भी उन्हें धमकी आई कि हाथ तोड़ दिए जाएंगे, पर उनकी लेखनी न झुकी और न ही डरी।
खाटी पत्रकार रहे कुलदीप चंदेल
कुलदीप चंदेल विशुद्ध पत्रकार रहे। लिखने से जो मिलता, उसी से घर- गृहस्थी चलती रही। अखबार से आने वाले महीने के पारिश्रमिक के चेक का इंतजार रहता था। उनका कहना है कि लिखने से उन्हें इज्जत और मान- सम्मान बहुत मिला, लेकिन लक्ष्मी हमेशा रूठी रही।
वे याद करते हैं कि उनकी पत्नी ने एक बार हंसते हुए कहा था कि लेखक, पत्रकार नाल कोई ब्याह नी कराए। हालांकि उनकी पत्नी ने खरे- बुरे दौर में उनका हमेशा साथ दिया और उन्हें कभी मुझे टूटने नहीं दिया।
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Jyoti maurya

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