अमीन चिश्ती : फुटपाथ से हुई थी कला की शुरूआत, रंगमंच पर पेश किए जज़्बात

अमीन चिश्ती : फुटपाथ से हुई थी कला की शुरूआत, रंगमंच पर पेश किए जज़्बात
हिमाचल बिज़नेस । चंबा
सर्द दोपहरी थी। सड़क किनारे बरगद के पेड़ के नीचे एक पेटी, कुछ रंगों के डिब्बे और ब्रश। उसी छोटे से कोने में बैठा एक युवक नंबर प्लेट, साइन बोर्ड और बैनर रंग रहा था। किसी विद्यालय से कला की शिक्षा नहीं ली थी, फिर भी उसकी कूची की लकीरें लोगों को अपनी ओर खींच लाती। वक्त के संघर्षों ने तराशकर इस युवक को उस मुकाम पर पहुंचा दिया, जहां उसकी कला मुखर होकर बोलने लगी। अमीन शेख चिश्ती नाम का यह कलाकार चंबा की कला, रंगमंच और लोकसंस्कृति की धड़कनों में गहरे बस गया।
चंबा में नुक्कड़ नाटकों की नींव रखने वाले अमीन शेख चिश्ती ने पहाड़ी सूक्ष्म चित्रकारी, पोर्ट्रेट आर्ट और मंचन में अद्वितीय योगदान दिया है। वह कई युवाओं को चित्रकला और रंगमंच से जोड़ने वाला मार्गदर्शक है। उनकी अर्धांगिनी मंजू चिश्ती भी कला के इस सफ़र में उनकी साथी बनीं। इस दंपति ने साथ मिलकर कला को साधना बनाया और लोकसंस्कृति को नया जीवन दिया।
14 साल अंतर्राष्ट्रीय मिंजर मेले का मंच संचालन
सूचना एवं जनसम्पर्क अधिकारी के पद से सेवानिवृत अमीन शेख चिश्ती के नाम कई उप्ल्ब्धियां दर्ज हैं। उनके नाम लगातार 14 वर्षों तक अंतर्राष्ट्रीय मिंजर मेले का अकेले मंच संचालन करना एक अनूठा रिकॉर्ड। उन्होंने हॉलीवुड की गिनीज़ बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में दर्ज फिल्म ‘जीजस’ को चंबयाली और गद्दी बोली में रूपांतरित किया, और डबिंग में अपनी आवाज़ भी दी।
अमीन शेख चिश्ती ने सैकड़ों पहाड़ी गीतों की रचना की है, जिनमें ‘डुग्गी मेरी ढाकनी री बांई’ और ‘सेइयो ऐसी लागी प्रीत’ आज लोकगीत बनकर चंबा की गली–कूचों में गूंजते हैं। अमीन चिश्ती सिर्फ़ कलाकार ही नहीं, बल्कि संवेदनशील विचारक भी हैं। मंच से वे अक्सर कहते हैं, यह मेरे वतन की मिट्टी है साहब… पूरी कायनात से मोहब्बत की खुशबू आएगी। बारूद के ढेर पर अमन के बीज बोए जाएंगे और मासूम चेहरे वतन की खातिर लहू बहाएंगे।”
अश्वथामा और गौतम बुद्ध– यशोधरा पर लिख रहे धारावाहिक
अमीन शेख चिश्ती खुद को आज भी ‘बंजारा’ मानते हैं। उनका कहना है कि हुनर है तो पहचान मिलेगी, चाहे पगडंडियों पर छालों के साथ चलना पड़े। हजूम नहीं, हुनर ही इंसान का असली मुकाम है। 64 वर्ष की उम्र पार करने के बाद भी अमीन शेख चिश्ती रुकने को तैयार नहीं हैं। फिलहाल वे अश्वथामा और गौतम बुद्ध–यशोधरा जैसे पात्रों पर धारावाहिक लिख रहे हैं। उनके शब्दों में दर्द, करुणा और सत्य की पुकार जीवंत हो उठती है।
अमीन चिश्ती का जीवन एक सीख है कि संघर्ष चाहे फुटपाथ से शुरू हो, लेकिन अगर जज्बा और साधना अटूट हो, तो मंज़िल अंतर्राष्ट्रीय मंच तक ले जाती है। वे सिर्फ़ एक कलाकार नहीं, बल्कि हिमाचल की सांस्कृतिक आत्मा हैं, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी।
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