रेलवे बोर्ड बिल्डिंग : गज़ब की निर्माण तकनीक का कमाल, 128 साल बाद भी शिमला की यह इमारत बेमिसाल
रेलवे बोर्ड बिल्डिंग : गज़ब की निर्माण तकनीक का कमाल, 128 साल बाद भी शिमला की यह इमारत बेमिसाल
विनोद भावुक। शिमला
शिमला की ऐतिहासिक इमारतों में से एक रेलवे बोर्ड बिल्डिंग अपनी अनोखी बनावट और मजबूत संरचना के कारण आज भी लोगों को आकर्षित करती है। गज़ब की निर्माण तकनीक का कमाल है कि 128 साल बाद भी शिमला की यह बिल्डिंग बेमिसाल है।
अपनी भव्यता के लिए मशहूर यह इमारत वास्तुकला के स्टूडेंट्स के लिए एक महत्वपूर्ण अध्ययन स्थल है। भारत के कई प्रतिष्ठित आर्किटेक्चर कॉलेजों और आईआईटी के स्टूडेंट्स यहां आकार इस ऐतिहासिक निर्माण तकनीक को करीब से समझते हैं।
हर्बर्ट हाउस और लोविले की जगह रेलवे बोर्ड बिल्डिंग
रेलवे बोर्ड बिल्डिंग के निर्माण से पहले यहां हर्बर्ट हाउस और लोविले नाम की ब्रिटिशकालीन रिहायशी कोठियां थीं, जिन्हें सरकार किराये पर लेकर सचिवालय, रेलवे बोर्ड और कॉमर्स विभाग के दफ्तर चलाती थी। बाद में इन्हें खरीदकर गिरा दिया गया और रेलवे बोर्ड बिल्डिंग खड़ी की गई।
यह शानदार इमारत 1896-97 में बॉम्बे की फर्म रिचर्डसन एंड क्रूडस ने महज 4,08,476 रुपए की लागत से बनाई थी। उस दौर में यह एक बेहद आधुनिक और अनोखी बिल्डिंग मानी जाती थी और जिसका आज भी जलवा बरकरार है।
कास्ट-आयरन और स्टील स्ट्रक्चर
यह हिल के ढलान पर बनी चार मंज़िला इमारत है, जिसके नीचे तीन बेसमेंट हैं। सबसे खास बात यह है कि ब्रिटिशकाल में ही इसमें कास्ट-आयरन और स्टील स्ट्रक्चर इस्तेमाल किया गया था, ताकि यह आगरोधी और सुरक्षित रहे।
साल 2001 में लगी भीषण आग में मूल ढांचा पूरी तरह सुरक्षित रहा। 10 फरवरी 2001 की आग ने इस बिल्डिंग की शीर्ष मंज़िल को भारी नुकसान पहुंचाया, लेकिन पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट ने इसके मूल स्वरूप को बरकरार रखते हुए बेहतरीन पुनर्निर्माण किया।
आज भी शिमला की पहचान
रेलवे बोर्ड बिल्डिंग की इसी तकनीक का इस्तेमाल शिमला में स्थित हिमाचल प्रदेश सरकार के सचिवालय एलर्जली और आर्मी ट्रेनिंग कमांड की इमारतों में भी किया गया है। यह दर्शाता है कि रेलवे बोर्ड बिल्डिंग ने शिमला की प्रशासनिक व सैन्य संरचनाओं के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
रेलवे बोर्ड बिल्डिंग वर्तमान शिमला की विरासत का एक शानदार प्रतीक है। वक्त बदला, आग लगी, मरम्मत हुई, लेकिन इसकी सवा सदी बीत जाने के बाद भी इसकी शान और पहचान आज भी वैसी ही कायम है।
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