क्लासिकल न्यूमिस्टिक गैलरी की नीलामी में शामिल चढ़त सिंह के काल की चंबा की ‘चकली’

क्लासिकल न्यूमिस्टिक गैलरी की नीलामी में शामिल चढ़त सिंह के काल की चंबा की ‘चकली’
क्लासिकल न्यूमिस्टिक गैलरी की नीलामी में शामिल चढ़त सिंह के काल की चंबा की ‘चकली’
मनीष वैद। चंबा
रियासत चम्बा रियासत में कभी ऐसी मुद्रा चलती थी जिसे ‘चकली’ कहा जाता था। अन्य रियासतों में सोने या चांदी के सिक्कों के बजाय चंबा रियासत में तांबे का सिक्का स्थानीय स्तर पर इस्तेमाल किया जाता था। चकली चम्बा की उस आर्थिक दुनिया की गवाही देती है, जहाँ तांबे के सिक्कों का ही व्यापक उपयोग था, और सोने-चांदी की कमी के बावजूद रियासत ने अपनी पहचान बनाई थी।
चम्बा के शासकों जैसे चढ़त सिंह, श्री सिंह और शाम सिंह ने तांबे के ये सिक्के जारी किए थे।
‘चकली’ सिक्कों पर प्रमुख चिन्ह था त्रिशूल और देव नागरी लिपि में राजाओं के नाम अंकित रहते थे। पांच चकली एक आना के बराबर होती थी।
छिद्रित कान और ‘विष्णु-पद’ के चिन्ह
920-940 ईस्वी में राजा साहिल वर्मन ने चकली पर छिद्रित कान एक विशेष प्रतीक धारण कराया, जो उस समय के प्रसिद्ध योगी चर्पटनाथ को सम्मानित करते हुए उनकी योग की पहचान दर्शाता था। बाद के राजाओं ने सिक्कों के डिज़ाइन में ‘विष्णु-पद’ का चिन्ह भी जोड़ना शुरू किया, जो धार्मिक और सांस्कृतिक समर्पण का प्रतीक था।
चम्बा रियासत में पारंपरिक रजत या स्वर्ण के सिक्के प्रचालन में नहीं थे। केवल तांबे की मुद्रा ही चलन में थी। सिक्कों पर छिद्रित कान का चिन्ह दर्शाता है कि राजाओं ने योगी चर्पट नाथा और आध्यात्मिक गुरुओं के महत्व को स्वीकारा और उनकी महत्ता को सिक्कों पर अमर किया।
भूरी सिंह संग्रहालय में संरक्षित सिक्के
क्लासिकल न्यूमिस्टिक गैलरी की नीलामी सूची में चढ़त सिंह के काल का तांबे का सिक्का शामिल है। त्रिशूल और विष्णु-पद वाले ये सिक्के आज के सिक्का-संग्रहकर्ताओं के लिए दुर्लभ और क़ीमती हैं।
ओरिएंटल न्यूमिसमैटिक सोसायटी के एक शोध पत्र में उल्लेख है कि कुछ चकली सिक्के अभी भी भूरी सिंह संग्रहालय चंबा में सुरक्षित हैं।
चकली जैसी स्थानीय मुद्राएं इतिहास का एक जीवंत हिस्सा हैं और उनकी आर्थिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक दृष्टि से पहचान और संरक्षण की जरूरत है।
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Jyoti maurya

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