200 साल पहले दुर्गम लाहौल-स्पीति में दुर्लभ पौधों और जंगली जीवों का अध्ययन कर गया फ्रांस का यंग बॉटनिस्ट और जियोलॉजिस्ट विक्टर जेकमों

200 साल पहले दुर्गम लाहौल-स्पीति में दुर्लभ पौधों और जंगली जीवों का अध्ययन कर गया फ्रांस का यंग बॉटनिस्ट और जियोलॉजिस्ट विक्टर जेकमों
200 साल पहले दुर्गम लाहौल-स्पीति में दुर्लभ पौधों और जंगली जीवों का अध्ययन कर गया फ्रांस का यंग बॉटनिस्ट और जियोलॉजिस्ट विक्टर जेकमों
विनोद भावुक। केलंग
करीब 200 साल पहले जब यूरोप के लिए पशिचमी हिमालय लगभग ‘अनदेखी दुनिया थी, फ्रांस का एक दुबला-पतला और बेहद जिज्ञासु युवक विक्टर जेकमों अपने हिमालय अभियान के चलते लद्दाख और लाहौल-स्पीति की दुर्गम घाटियों में दुर्लभ पौधों, ऊँचाई वाले पेड़ों, जंगली जीवों और भूमि संरचना
का विस्तार से अध्ययन कर रहा था।
हिमालय की गोद में की गई उसकी खोजों के सम्मान में कई पौधों के नाम उसके नाम पर रखे गए। उनकी याद में आज भी कई पौधों के नाम जीवित हैं। आज भी बॉटनी में Jacquem लिखा जाए तो उसका मतलब होता है Victor Jacquemont.
240 पाउंड सालाना का पैकेज
1828 में फ्रांसीसी वैज्ञानिक संस्थान जार्डिन डेस प्लांट्स ने सिर्फ 240 पाउंड सालाना पर जेकमों को भारत भेजा। उसका मिशन दुर्लभ पौधे, जंगली जानवर, भूगर्भिक संरचनाएँ और हिमालय के बेमिसाल प्राकृतिक संसार की खोज करना था।
बॉटनिस्ट और जियोलॉजिस्ट विक्टर दिल से एक सच्चा खोजी था। उसकी डायरी आज भी बताती है कि कैसे उसने यूरोप से दूर भारत की पहाड़ियों, पंजाब दरबार और लाहौल-स्पीति को अपनी खोज और जिज्ञासा से रोशन किया था।
पंजाब दरबार की बहादुरी का कायल
1829 में कलकत्ता पहुँचे जेकमों ने उत्तर भारत की ओर रुख किया और दिल्ली, राजपूताना, पंजाब, लाहौर, लद्दाख और लाहौल-स्पीति तक का कठिन सफ़र तय किया। 1831 में लाहौर में महाराजा रणजीत सिंह से मुलाकात की। वह पंजाब दरबार की बहादुरी, अनुशासन और संस्कृति से बेहद प्रभावित हुआ।
जेकमों की चिट्ठियाँ और पुस्तकों में भारत की राजनीति, समाज, संस्कृति और हिमालय के प्राकृतिक वैभव का ऐसा विस्तृत वर्णन है, जो 19वीं सदी के भारत की अनमोल तस्वीर पेश करता है। ‘लेटर्स फ़्रोम इंडिया (1829–1832)’ आज भी हिमालय अध्ययन का महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है।
लाहौल-स्पीति की वनस्पति का पहला अंतरराष्ट्रीय रिकॉर्ड
सिर्फ 31 वर्ष की उम्र में 1832 में बंबई में हैजे से जेकमों की मौत हो गई, लेकिन उसकी खोज, उसकी लिखी चिट्ठियाँ और उसके नाम पर रखे गए पौधे आज भी उसकी याद दिलाते हैं। उसका शोध हिमालय के शुरुआती वैज्ञानिक अध्ययन का आधार है।
जेकमों ने लाहौल-स्पीति और लद्दाख की वनस्पति का पहला अंतरराष्ट्रीय रिकॉर्ड तैयार किया था। उनकी पौधों की खोजों ने भविष्य के शोध को दिशा दी। वह सिर्फ एक वैज्ञानिक नहीं, बल्कि भारत को दुनिया के सामने नए नज़रिये से प्रस्तुत करने वाले पहले यात्रियों में से एक था।
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Jyoti maurya

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