अंग्रेजों के राज में भी असली ‘स्ट्रीट सुपरस्टार’ थे शिमला के बंदर
अंग्रेजों के राज में भी असली ‘स्ट्रीट सुपरस्टार’ थे शिमला के बंदर
विनोद भावुक। शिमला
शिमला में बंदर सिर्फ शरारत नहीं करते, वे यहां के असली स्ट्रीट सुपरस्टार हैं। शिमला की अनोखी खूबसूरती को बंदर इस कभी मज़ेदार, चंचल और कभी-कभी खतरनाक बना देते हैं। शिमला में बंदरों का आतंक नया नहीं है। ब्रिटिश राज के दौरान बंदर सिरदर्द बन गए थे। राष्ट्रीय अभिलेखागार में मौजूद 1943 की फाइलें इस बात की गवाही देती हैं।
अंग्रेज़ शिमला के बंदरों से कितने परेशान थे, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ब्रिटिश सरकार ने उस समय बंदरों को विदेश में निर्यात करने का प्लान भी बना लिया था। हालांकि किसी न किसी कारण से बंदरों को मारने या निर्यात करने के दोनों प्रस्तावों पर अंतिम राय नहीं बनी और योजना फाइल में रह गई।
दोनों प्रस्तावों पर नहीं हुआ अमल
1943 में जब बंदरों को विदेश भेजने की तैयारी हुई, तब विश्व युद्ध का समय था। इस फाइल का शीर्षक था ‘एलमिनेशन ऑफ मोंकीज़ फ्रोम शिमला’, जिसमें ब्रिटिश भारत सरकार ने शिमला में बढ़ते बंदरों के आतंक पर चर्चा की थी। समस्या के समाधान के लिए दो प्रस्ताव बने थे।
प्लान एक के मुताबिक बंदरों को मारने की योजना थी, पर हिंदू धार्मिक मान्यताओं में बंदरों को मारना अपमानजनक माना जाता है।इस वजह से यह योजना तुरंत रोक दी गई। दूसरा बंदरों को विदेश में निर्यात करने का प्रस्ताव था। सरकार चाहती थी कि बंदर पकड़कर विदेश भेज दिए जाए।
येलो फीवर का खतरा, गांधी जी की चेतावनी
ब्रिटिश सरकार को डर था कि युद्धकाल में दुश्मन इन बंदरों का दुरुपयोग कर सकते हैं, इसलिए यह योजना रद्द कर दी गई। ब्रिटिशों को लगता था कि दुश्मन बंदरों से येलो फीवर फैलाएँगे। फाइलों में लिखा है कि जर्मनी भारत में यलो फीवर फैलाने के लिए बंदरों का उपयोग कर सकता है।
दूसरी और निर्यात करने के प्रस्ताव पर महात्मा गांधी की कड़ी आपत्ति थी। उन्होंने साफ कहा दिया था कि एक भी बंदर विदेश नहीं जाएगा। गांधी ने हरिजन पत्रिका में लेख लिखकर यह कह दिया था कि बंदरों को विदेश भेजना अमानवीय है। मैं एक भी बंदर बाहर भेजने की इजाज़त नहीं दूँगा।
6 पन्नों की रिपोर्ट में जिंदा सच
वेशक शिमला के बंदरों से जुड़े दोनों प्रस्ताव हमेशा के लिए बंद होई गए, लेकिन फाइलों में 6 पन्नों का सच आज भी जिंदा है। दस्तावेज़ कहता है कि शिमला में बंदरों की संख्या 1943 में भी नियंत्रण से बाहर थी। बंदरों को जंगलों में छोड़ने का विकल्प भी रखा गया था।
शिमला में बंदरों की समस्या आज भी वहीं खड़ी है। केंद्र सरकार ने 2024 में एक साल के लिए बंदरों को “वर्मिन” (हानिकारक प्रजाति) घोषित कर गैर–वन क्षेत्रों में कंट्रोल करने की अनुमति दी थी, लेकिन समस्या वही है, समाधान अब भी अधूरा।
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