शिमला का हंगेरियन व्यापारी इम्रे श्वाइगर, जिसने दुनिया को दिखाए भारत के ख़ज़ाने
शिमला का हंगेरियन व्यापारी इम्रे श्वाइगर, जिसने दुनिया को दिखाए भारत के ख़ज़ाने
विनोद भावुक। शिमला
आज ब्रिटिश शिमला की अनसुनी कहानी शिमला हंगेरियन व्यापारी इम्रे श्वाइगर की, जिसने भारत के ख़ज़ाने दुनिया भर को दिखाए। एक विदेशी जिसने भारत की कला को अमर कर दिया। इम्रे श्वाइगर सिर्फ एक खालिस व्यापारी नहीं थे, वे एक संस्कृति दूत भी थे।
श्वाइगर ने भारत की कलाओं को दुनिया भर में सम्मान दिलाया। उन्होंने अपने अनूठे व्यापार के चलते पश्चिम और पूर्व के बीच एक सांस्कृतिक सेतु बनाया। एक सच्चे संग्रहक की तरह वह अपनी खोज दुनिया को बांटता रहा।
हंगरी में जन्मे इम्रे श्वाइगर का सफ़र किसी फ़िल्मी कहानी से कम नहीं था। बचपन से कला के प्रेमी रहे उस युवा ने जब यूरोप छोड़ा, तो उसे पता नहीं था कि भाग्य उसे भारत के कीमती रत्नों और राजाओं की दुनिया में ले जाएगा।
श्वाइगर ने पहले लंदन में क्रेडिट लाईनेस बैंक में काम किया, जहां उन्होंने अंग्रेज़ी सीखी। उन्हें उस बैंक की शिमला ब्रांच में जॉब करने की इंटरनेशनल असाइनमेंट मिली। शिमला से ही उनका पूर्व के ख़ज़ानों को खोजने का सफर शुरू हुआ।
शिमला के बाद दिल्ली में दस्तक
शिमला में एंटीक की बारीकियां सीखने के साथ कई बहुमूल्य कलाकृतियां उनके संग्रह का हिस्सा बन चुकी थी। ब्रिटिश रॉयल फैमिली, भारतीय महाराजा, अमेरिकी अरबपति और दुनिया के प्रसिद्ध संग्रहालय उनके ग्राहक बन चुके थे। 1900 के दशक की शुरुआत में श्वाइगर ने दिल्ली के कश्मीरी गेट क्षेत्र में अपना मशहूर शो रूम खोला।
कहा जाता है कि जब ब्रिटेन की क्वीन मैरी उनकी दुकान पर आईं, तो उन्होंने श्वाइगर से कहा, मैं आपकी पत्नी से मिलना चाहती हूँ। अगले कुछ ही मिनटों में, श्वाइगर की अंग्रेज़ पत्नी नेली श्वाइगर क्वीन से मिलने पहुँच गई।

दिल्ली का विला और नीले फूल
श्वाइगर का दिल्ली का विला कला और संस्कृति का नायाब मिश्रण था। मूर्तियाँ, हाथी दांत की नक्काशियाँ, कीमती पत्थर और दुर्लभ चित्रों से सजा हुआ एक भव्य घर। उनके मेहमानों में उस दौर के प्रसिद्ध लेखक शामिल थे।
कई लेखकों ने उनके घर का वर्णन ‘राजसी संग्रहालय’ के रूप में किया है। श्वाइगर हमेशा अपने कोट में नीला कॉर्नफ्लावर (हंगरी का प्रतीक) लगाते थे। इस फूल को वो खुद अपने बगीचे में भी उगाते थे।
ओरिएंटल तलवारों का विशेष संग्रह
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान लंदन में रह रहे श्वाइगर को शत्रु देश का नागरिक घोषित किया गया था, लेकिन ब्रिटिश वॉर मिनिस्टर लॉर्ड किचनर ने उन्हें विशेष छूट दी, क्योंकि श्वाइगर उनकी ओरिएंटल तलवारों का विशेष संग्रह बनाने में मदद कर रहे थे।
बाद में वे विश्व विख्यात कार्टियर ज्वेलरी हाउस के करीबी सहयोगी बने। उन्होंने भारत के शाही परिवारों और कार्टियर के बीच एक पुल का काम किया। उनके प्रयासों के चलते ही टूटी- फ्रूटी जैसी विश्वप्रसिद्ध डिजाइनें बनीं।

तिब्बती कला के पहले कद्रदान
श्वाइगर उन शुरुआती यूरोपीय लोगों में से थे जिन्होंने तिब्बती कला का महत्व पहचाना। मठों के भिक्षु अपनी मूर्तियां या थांका पेंटिंग बेचने के लिए सबसे पहले उन्हीं के पास आते थे। कलाकृतियां आज भी ब्रिटिश म्यूजियम और फेरेंस हॉप म्यूजियम ऑफ एशियन आर्ट बुड्डापेस्ट में सुरक्षित हैं।
उन्होंने अपनी अधिकांश संपत्ति हंगरी के संग्रहालयों को दान में दी। 1940 में दिल्ली में ही श्वाइगर का निधन हुआ। उन्हें वहीं इनलिश मिलिट्री कब्रिस्तान में दफ़नाया गया। उनका विला अब एक सरकारी भवन है, लेकिन आज भी उनके योगदान की कहानियाँ कला-प्रेमियों के बीच जीवित हैं।
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