मेरिएन नॉर्थ : रंगों और ब्रश के जरिये शिमला की जैव विविधता को सहेजने वाली ब्रिटिश वैज्ञानिक, आज भी पेंटिंग्स वैज्ञानिकों के लिए जीवित रिकॉर्ड
मेरिएन नॉर्थ : रंगों और ब्रश के जरिये शिमला की जैव विविधता को सहेजने वाली ब्रिटिश वैज्ञानिक, आज भी पेंटिंग्स वैज्ञानिकों के लिए जीवित रिकॉर्ड
विनोद भावुक। शिमला
लगभग डेढ़ सदी पहले 1878 के आस- पास जब न तो कैमरे के चलन शुरू हुआ था और न फोटोग्राफी की शुरुआत हुई थी, उस दौर में एक ब्रिटिश महिला अपने ब्रश से शिमला के जंगलों और फूलों की तस्वीरें बनाकर पेंटिंग्स के जरिये उस दौर की शिमला की वनस्पति को संरक्षित कर रही थी।
24 अक्टूबर 1830 को इंग्लैंड में जन्मी मेरिएन नॉर्थ सिर्फ एक चित्रकार ही नहीं थीं, वह एक वनस्पति वैज्ञानिक थीं। वह एक खास मकसद से शिमला आईं थीं। उनकी पेंटिंग्स का मतलब ब्रिटिश राज की ग्रीष्मकालीन राजधानी की जैव विविधता को संरक्षित करना था।
‘नालदेहरा नियर शिमला’ की ख्याति
ब्रिटिश राज के दौर में समर कैपिटल ऑफ इंडिया कहे जाने वाले इस हिल स्टेशन पर ब्रिटेन से कई लोग आराम करने आते थे तो कई लोग प्रशासनिक व्यवस्था का हिस्सा होते थे। मेरिएन नॉर्थ वनस्पति को खोजने और रंगों के जरिये उसे सहेजने के लिए शिमला आई थीं।
मेरिएन नॉर्थ ने अपने ब्रश से शिमला के जंगलों, देवदार के पेड़ों और फूलों को इतनी बारीकी से उकेरा कि वे आज भी वैज्ञानिकों के लिए जीवित रिकॉर्ड हैं। मेरिएन नॉर्थ यहाँ ‘नालदेहरा नियर शिमला’ नाम की मशहूर पेंटिंग बनाई। यह पेंटिंग उस दौर की सबसे शुरुआती कलाकृतियों में से एक है।
मेरिएन के नाम पर कई पौधों के नाम
मेरिएन नॉर्थ के नाम पर कई पौधों के नाम रखे गए हैं। लंदन के केव गार्डन्स में बनी मेरिएन नॉर्थ गैलरी उनकी कला को संजोए हुए है, पर उसकी असली याद शिमला की हवाओं में रंग बनकर बहती है। बीबीसी ने उनके काम पर 2016 में ‘केव फोरगोटन क्वीन’ नाम से डॉक्यूमेंटरी बनाई है।
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