यात्रा संस्मरण : ड्राइवर सिर्फ़ एक हाथ से बस चला रहा था, बिल्कुल आराम से च्यूइंगम चबा रहा था

यात्रा संस्मरण : ड्राइवर सिर्फ़ एक हाथ से बस चला रहा था, बिल्कुल आराम से च्यूइंगम चबा रहा था
यात्रा संस्मरण : ड्राइवर सिर्फ़ एक हाथ से बस चला रहा था, बिल्कुल आराम से च्यूइंगम चबा रहा था
विनोद भावुक। मनाली
1970–80 के दशक में कुल्लू–मनाली सड़क दुनिया की सबसे कठिन सड़कों में गिनी जाती थी। उस दौर की बस यात्रा: मौत और विश्वास दोनों साथ चलते थे। संकरी सड़क, कच्चे मोड़, ढहते पत्थर, लगातार भूस्खलन और खटारा और पुरानी बसें, फिर लोग बस की छत पर भी बैठकर यात्रा करते थे। हिमालय का रोमांच में खतरे के बावजूद विदेशी पर्यटक यात्रा करते थे।
1979 में एक विदेशी यात्री लिलियन वैन वील्डन शिमला से कुल्लू घाटी की ओर बस से सफ़र कर रही थीं, लेकिन यह यात्रा उनके लिए रोमांच नहीं, दहशत बन गई। लिलियन ने सड़क पर मलबा आने के चलते रुकी उस बस के फोटो संग अपने यात्रा संस्मरण फेसबुक पर शेयर किया है। पहाड़ों की इस खतरनाक संकरी सड़कों से गुजरती एक सरकारी बस।
नसों में महसूस होता मौत का डर
एक तरफ़ गहरी खाई और दूसरी ओर सीधा पहाड़ तथा बीच में कंपकंपाती खटारा बस, जो मोड़ों पर झुककर चलती थी और ऐसे लगता था जैसे किसी भी पल गिर जाएगी। ऊपर से बस ड्राइवर सिर्फ़ एक हाथ से ड्राइव कर रहा था और बिल्कुल आराम से च्यूइंग गम चबा रहा था। रोमांच की जगह उसके लिए सफर दहशत भरा हो गया था।
लिलियन लिखती हैं, मेरे हाथ पसीने से भीग चुके थे। मैं लगातार भगवान को याद कर रही थी। शायद मैंने अपने साथी का हाथ इतनी ज़ोर से पकड़ लिया कि उंगलियों के निशान पड़ गए होंगे। यह वही सड़क थी जिसे मशहूर यात्री एंथोनी बुरडेन ने खतरनाक सफर कहा था। ऐसा सफर जहां डर आपके नसों तक महसूस होता है।
सफर के अपने- अपने अनुभव
सोशल मीडिया पर यह पोस्ट जमकर वायरल हो रही है। एक अन्य यात्री माइकल स्कैलेट लिखते हैं, 360° व्यू, हवा के झोंके और डर, लेकिन बस ड्राइवरों ने इस सड़क पर हजारों बार बस चलाई है। एक विदेशी यात्री तो इस सड़क को देखकर बस की जगह रॉयल एनफ़ील्ड मोटरबाइक पर लेह निकल पड़े थे।
जिन्हें मौत का डर नहीं, उन्होंने यह सड़क पैदल नाप दी थी। फ़ेसबुक कमेंट्स में कई यात्रियों की यादें हैं। किसी ने कहा, मैंने यह रोड पैदल तय की, किसी बस से ज्यादा सुरक्षित लगा।
एक यात्री ने लिखा, डायनामाइट से चट्टान हटाते समय पत्थर हमारी बस पर गिरे और सड़क का हिस्सा नदी में बह गया।
उन ड्राइवरों की सलाम, मंजिल पर पहुंचाते थे सुरक्षित
1970 और 80 के दशक के यात्रियों के लिए कुल्लू- मनाली की सड़क सिर्फ़ सड़क नहीं थी, यह साहस की परीक्षा थी। आज बेशक मनाली तक का सफर फोरलेन और डबललेन रोड की वजह से आसान हो गया है, लेकिन कभी यह रोड दुनिया के सबसे खतरनाक और रोमांचकारी मार्गों में गिना जाता था। इसी खतरनाक रोड से निकलती थीं हिप्पी ट्रेल की कहानियां।
विदेशी बैकपैकर्स का रोमांच और पहाड़ी ड्राइवरों का साहस। यात्रियों के दिल दहला देने वाले अनुभव। कभी यही सफर हिम्मत, भरोसा और दुआओं का सहारा लेकर पूरा होता था। उन पहाड़ी ड्राइवरों को सलाम, जो उस दौर में हजारों यात्रियों को सुरक्षित मंज़िल तक पहुंचाते थे।
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Jyoti maurya

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