Dharohar sanrakshak: कभी ‘रद्दी मास्टर कभी चंड महात्मा’

Dharohar sanrakshak: कभी ‘रद्दी मास्टर कभी चंड महात्मा’

मंडी में नहीं बन पाया हिमाचल लोक संस्कृति संस्थान के संस्थापक का संग्रहालय

समीर कश्यप/ मंडी

Dharohar sanrakshak महापंडित राहुल सांकृत्यायन के हिमाचल भ्रमण के दौरान उनका मंडी नगर में अल्प-प्रवास यहां के साहित्यकारों व संस्कृति कर्मियों की सृजन यात्रा का आधारभूत कारक बना। राहुल जी ने उठते-बैठते, खाते-पीते या भ्रमण करते दैनंदिन जीवन के कार्यकलापों से लेकर सृष्टि के ज्ञात-अज्ञात रूपों पर जो सटीक टिप्पणियां कीं वे उस समय उनके साथ चल रहे नवयुवकों के लिये यथार्थवादी जीवन दृष्टि पाने के लिये सहयोगी रहीं। इसी युवा-मंडली मे जो राहुल जी से निरंतर प्रेरणा प्राप्त करते रहे Dharohar  sanrakshak  चंद्रमणि कश्यप हिमाचल लोक संस्कृति संस्थान के संस्थापक हैं।

dharohar Sanrakshak चंद्रमणि की पेंटिंग

राहुल से मुलाक़ात और जीवन का मकसद

Dharohar sanrakshak चंद्रमणि ने बताया था ‘तब 1954 का साल था, मंडी में इतनी भीड़ या गहमागहमी नहीं हुआ करती थी। किसी भी विशिष्ट व्यक्ति के शहर में पधारने पर सूचना एक दम मिल जाती थी। राहुल जी के मंडी आने की सूचना जैसे ही मिली हम कृष्णा होटल पहुँचे। मेरे साथ हुताशन शास्त्री, सुंदर लोहिया तथा टेकचंद थे। कुल्लू से लौटने के बाद राहुल जी को मास्टर जयवर्द्धन जी के घर ठहराया गया। उन्होंने अपार लोक संस्कृति और पुरातत्व के महत्व की सामग्री को सहेजने उसका संवर्धन करने और संचित करने की बात कही। Dharohar sanrakshak चंद्रमणि ने ‘राहुल जी की इन बातों को मैंने अपने भीतर उतार लिया था।

रद्दी मास्टर का फतबा, चंड महात्मा का ख़िताब

मंडी में लोक संस्कृति संस्थान की स्थापना के बारे में Dharohar sanrakshak चंद्रमणी जी बताते थे, “सांकृत्यायन के दिखाये मार्ग को प्रशस्त करने का एक ही रास्ता था कि “एकला चलो”। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, निजाम हैदराबाद और चंबा के राजा भूरी सिंह के संग्रहालयों का स्वपन एक प्राथमिक कक्षाओं को पढाने वाला मास्टर पाल रहा था। मित्रों से आर्थिक मदद चाही, सभी ने हाथ झाड लिये। लोग हस्तलिखित पांडुलिपियां दुकानदारों को बेच आते और मैं उनसे खरीद लेता। तब लोगों ने रद्दी मास्टर का फतवा दिया। एकांत में घूमता, यात्राओं पर निकलता तो चाहने वालों ने ‘चंड महात्मा’ कहना शुरू कर दिया लेकिन मैं रूका नहीं।‘

बड़ा होता गया संग्रह

राहुल जी के जाने के महज अढाई साल बाद ही Dharohar sanrakshak चंद्रमणि के संग्रह में 250 के लगभग हस्तलिखित पांडुलिपियां, सौ के लगभग प्राचीन मुद्राएं, तीस पहाडी चित्र व प्राचीन धातु-पाषाण की मुर्तियां एकत्र हो गई थी। इसके बाद प्रदेश-देश और विदेश के विद्वानों का यहां आना शुरू हुआ। अखबारों-पत्रिकाओं में इस लघु लेकिन महत्वपूर्ण संग्रह पर आलेख छपने का सिलसिला जारी हुआ। विदेशियों ने इस संग्रहालय का नाम अपनी पर्यटन निर्देशिकाओं में छापा। देशी विदेशी कला व्यापारियों ने कई प्रलोभन दिये लेकिन राहुल जी के शब्दों ने मुझे जीवन के मिथ्याचारों से हमेशा उबारा है।“

लोक संस्कृति संस्थान में इतिहास का खजाना

उल्लेखनीय है कि राहुल जी की प्रेरणा से स्थापित लोक संस्कृति संस्थान के संग्रहालय में पांच हजार के लगभग पांडुलिपियां प्राचीन ग्रंथों की, पांच सौ के लगभग पहाडी शैली के चित्र तथा अनेकों प्राचीन मुद्राएं, मुर्तियां, चंबा रूमाल से लेकर लोक कला के वस्त्र व दूसरी चीजें संग्रहित हैं। इस संग्रहालय में डा. निहार रंजन रे, डा. डब्लयु जी आर्चर, डा. मुल्कराज आनंद तथा एम एस रंधावा से लेकर देश विदेश के कई संस्कृति कर्मी व शोधार्थी आ चुके हैं। नौकरी से निवृत होने के बाद Dharohar sanrakshak चंद्रमणी पूरा समय संग्रहालय की देख रेख को दे रहे थे।

 मंदिर परिसर से घर में पहुंचा संस्थान

संग्रहालय के लिए Dharohar sanrakshak चंद्रमणि को मंडी के राजा की ओर से दमदमा स्थित बाबा कोट मंदिर परिसर में दो कमरे दिये गये थे। लंबे समय तक संग्रहालय यहीं पर चलता रहा लेकिन जब मंडी के राज परिवार के सदस्यों को इस परिसर की जरूरत महसूस हुई तो चंद्रमणी जी ने एक बार भी प्रतिकार किये बगैर इस परिसर से अपने संग्रहालय का सामान हटा लिया। इस अमुल्य विरासत को संरक्षित रखने के लिए उन्होने अपने छोटे से घर के दो कमरों में संग्रहालय बना लिया।

परिवार ने संजोई चंद्रमणि की विरासत

जीवन के कठिन दौर में भी पुरातत्व के संरक्षण और संवर्धन के लिए अपने जीवन को समर्पित करने वाले इस महान व्यक्तित्व Dharohar sanrakshak चंद्रमणी का अब देहावसान हो चुका है, लेकिन जिन मुल्यों और उदेश्यों के लिए वह जीवन भर संकल्पित रहे क्या वह प्राप्त कर लिये गये हैं। शायद नहीं। चंद्रमणी के बाद इस विरासत को उनके परिवार के सदस्यों ने भी अनेकों दुश्वारियों के बावजूद सहेज कर रखा हुआ है जिसके लिये उन्हे चंद्रमणी जी की हिदायतें बाध्य करती हैं।

मंडी में थी संग्रहालय बनाने के हसरत

Dharohar sanrakshak चंद्रमणी जी कि जिद थी कि संग्रहालय में अधिकतम वस्तुएं मंडी जनपद की होने के कारण इसका संग्रहालय मंडी में ही होना चाहिए। अगर सरकार इस तरह का मंडी में संग्रहालय बनाती है तो उनकी संग्रहित धरोहर वस्तुओं को इन संग्रहालय को दिया जा सकता है। लेकिन बहरहाल अभी तक चंद्रमणी के इस लोक-मणी रूपी संग्रह को सहेजने के लिए किसी ओर से कोई प्रयास सामने नहीं आए हैं।

तो क्या लुप्त हो जायेगी ऐतिहासिक विरासत

सांस्कृतिक धरोहर को बचाने का राहुल सांकृत्यायन का प्रेरणादायी विचार जो चंद्रमणी का संग्रहालय बना उसे कैसे बचाया जाए यह प्रश्न अभी भी प्रासांगिक है। इससे पूर्व कि पुरातात्विक महत्व का यह अदभूत संग्रह बगैर उचित रख रखाव के नष्ट हो कर भारी क्षति को प्राप्त हो, इसे बचाने के भागीरथी प्रयास करने की जरूरत है, जिससे हमारी आने वाली पीढियां अपनी ऐतिहासिक विरासत को जानने व समझने से वंचित न रह जाएं।

 

 

 

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