Actor from Shimla : नेचुरल एक्टिंग में हिंदोस्तानी सिनेमा के पहले टॉपर मोती लाल
विनोद भावुक/ शिमला
Actor from Shimla मोतीलाल को उनकी जीवंत अदायगी के लिए हमेशा याद किया जाता है। अपने अभिनय में विविधता के बूते उन्होंने अपने आपको बाकि अदाकारों से हमेशा अलग ही खड़ा किया। देवदास के चुन्नी बाबू से लेकर परख में उनके यादगार अभिनय के लिए फिल्मफेयर अवार्ड भी मिले। कामेडी से लेकर गंभीर अभिनय, हर पात्र को पर्दे पर जीवंत करने का हुनर मोतीलाल के पास था। हर पात्र में जान डालने की उनकी अदा के कारण ही अभी भी बॉलीबुड को मोतीलाल व संजीव कुमार जैसे कलाकार नहीं मिल पाए। स्वाभिक अभिनय की ताजगी से उन्होंने दो दशकों तक सिने प्रेमियों के दिलों पर राज किया।
नेचुरल एक्टिंग में माहिर
हिंदुस्तानी सिनेमा में नेचुरल एक्टिंग की चर्चा चलने पर गिने-चुने चेहरे ही याद आते हैं। इनमें जिस कलाकार का नाम सबसे पहले चमका और टॉप पर पहुंचा, वे थे Actor from Shimla मोतीलाल। हर बार अलग अंदाज हिंदी सिनेमा के आसमान में अब तक सैकडों नायक जगमगाए हैं। उनमें सिर्फ दो हीरों ऐसे हुए हैं, जिन्होंने अपनीे नेचुरल एक्टिंग से दर्शकों को लुभाया और कामयाब हुए। इनमें पहला नाम है मोतीलाल का, और दूसरा- संजीव कुमार का। मोतीलाल ने अपने मैजिक से नायक और चरित्र अभिनेता के रूप में दो दशक तक दर्शकों के दिलों पर राज किया।
हैट बन गया मोती लाल की पहचान
Actor from Shimla मोती लाल ने हिंदी फिल्मों को मेलोड्रामाई संवाद अदायगी और अदाकारी की तंग गलियों से निकालकर खुले मैदान की ताजी हवा में खड़ा किया। मोतीलाल की पहचान उनके सिर की फेल्ट हैट थी, जिसे उन्होंने कभी मुडने नहीं दिया। शानदार चमचमाते शर्ट-पेंट, जूतों की चमक में झिलमिलाते अक्स। चाल-ढाल में नजाकत-नफासत। बातचीत में शाही अंदाज। मोतीलाल जिंदादिल एक्टर ही नहीं, जीते-जागते केलिडोस्कोप थे। जब देखो, जितनी बार देखो, हमेशा अलग अंदाज में नजर आते थे मोतीलाल।
नेवी में जाना था, सिनेमा में पहुंचे
शिमला में चार दिसंबर 1910 को जन्मे मोतीलाल राजवंश जब एक साल के थे, तभी पिता का साया सिर से उठ गया। चाचा ने परवरिश की, जो उत्तरप्रदेश में सिविल सर्जन थे। चाचा ने मोती को बचपन से जीवन को बिंदास अंदाज में जीने और उदारवादी सोच का नजरिया दिया। शिमला के अंग्रेजी स्कूल में शुरूआती पढाई के बाद उत्तर प्रदेश और फिर दिल्ली में उच्च शिक्षा हासिल की। कॉलेज के दिनों में वे ऑलराउंडर स्टूडेंट थे। नेवी ज्वॉइन करने के इरादे से मुंबई आए थे। अचानक बीमार हो गए, तो प्रवेश परीक्षा नही दे पाए। शानदार ड्रेस पहनकर सागर स्टूडियो में शूटिंग देखने जा पहुंचे। वहां डायरेक्टर कालीप्रसाद घोष एक सामाजिक फिल्म की शूटिंग कर रहे थे। अपने सामने Actor from Shimla मोतीलाल को देखा, तो उनकी आंखें खुली रह गई। उन्हें अपनी फिल्म के लिए ऐसे ही हीरो की तलाश थी, जो बगैर बुलाए मेहमान की तरह सामने खड़ा था।
ऐसे मिली पहली फिल्म
डायरेक्टर कालीप्रसाद घोष ने शहर का जादू (1934) में सविता देवी के साथ Actor from Shimla मोतीलाल को नायक बना दिया। तब तक पाश्रव गायन प्रचलन में नहीं आया था। लिहाजा मोतीलाल ने के सी डे के संगीत निर्देशन में अपने गीत खुद गाए थे। इनमें हमसे सुंदर कोई नहीं है, कोई नहीं हो सकता गीत लोकप्रिय भी हुआ। सागर मूवीटोन उस जमाने में कलाकारों की नर्सरी थी। सुरेंद्र, बिब्बो, याकूब, माया बनर्जी, कुमार और रोज जैसे कलाकार वहां कार्यरत थे। डायरेक्टर्स में महबूब, सर्वोत्तम बदामी, चिमनलाल लोहार अपनी सेवाएं दे रहे थे। मोतीलाल ने अपनी शालीन कॉमेडी, मैनरिज्म और स्वाभाविक संवाद अदायगी के जरिए तमाम नायकों को पीछे छोडते हुए नया इतिहास रचा। परदे पर वे एक्टिंग करते कभी नजर नहीं आए। मानो उसी किरदार को साकार रहे हो।
दीवाली से होली तक बहुरंगी
वर्ष 1937 में Actor from Shimla मोतीलाल ने सागर मूवीटोन छोडक़र रणजीत स्टूडियो ज्वॉइन कर लिया। इस बैनर की फिल्मों में उन्होंने दीवाली से होली के रंगों तक, ब्राह्मण से अछूत तक, देहाती से शहरी छैला बाबू तक के बहुरंगी रोल से अपने प्रशंसकों का भरपूर मनोरंजन किया। उस दौर की पॉपुलर गायिका -नायिका खुर्शीद के साथ उनकी फिल्म शादी सुपर हिट रही थी। रणजीत स्टूडियो में काम करते हुए मोतीलाल की कई जगमगाती फिल्में आई- परदेसी, अरमान, ससुराल और मूर्ति। बॉम्बे टॉकीज ने गांधी जी से प्रेरित होकर फिल्म अछूत कन्या बनाई थी।
फिल्म में गांधी का संदेश
रणजीत ने Actor from Shimla मोतीलाल- गौहर मामाजीवाला की जोडी को लेकर अछूत फिल्म बनाई। फिल्म का नायक बचपन की सखी का हाथ थामता है, जो अछूत है। नायक ही मंदिर के द्वार सबके लिए खुलवाता है। इस फिल्म को गांधी जी और सरदार पटेल का आशीर्वाद मिला था। 1939 में इन इंडियन फिल्स नाम से ऑल इंडिया रेडियो ने फिल्म कलाकारों से इंटरव्यूज की एक श्रृंखला प्रसारित की थी। इसमें अछूत का विशेष उल्लेख इसलिए किया गया था कि फिल्म में गांधीजी के अछूत उद्घार के संदेश को सही तरीके से उठाया गया था।
दिल जलता है, तो जलने दे
जहर खान निर्देशित फिल्म पहली नजर में Actor from Shimla मोतीलाल को उनके चचेरे भाई मुकेश ने प्ले-बैक दिया था। मुकेश का गाया यह था- दिल जलता है, तो जलने दे। मोतीलाल की अदाकारी के अनेक पहलू हैं। कॉमेडी रोल से वे दर्शकों को गुदगुदाते थे, तो दोस्त और गजरे जैसी फिल्मों में अपनी संजीदा अदाकारी से लोगों की आंखों में आंसू भी भर देते थे।
देवदास का चुन्नी बाबू
वर्ष 1950 के बाद Actor from Shimla मोतीलाल ने चरित्र नायक का चोला धारणकर अपने अद्भुत अभिनय की मिसाल पेश की। विमल राय की फिल्म देवदास (1955) में देवदास के शराबी दोस्त चुन्नीबाबू के रोल को उन्होंने लार्जर देन लाइफ का दर्जा दिलाया। सुद्वि दर्शकों के दिमाग में वह सीन याद होगा, जब नशे में चूर चुन्नीबाबू घर लौटते हैं, तो दीवार पर पड रही खूंटी की छाया में अपनी छड़ी को बार-बार लटकाने की नाकाम कोशिश करते हैं। देवदास का यह क्लासिक सीन है।
जिंदगी ख्वाब है
राज कपूर निर्मित और शंभू मित्रा-अमित मोइत्रा निर्देशित फिल्म जागते रहो (1956) के उस शराबी को याद कीजिए, जो रात को सुनसान सडक़ पर नशे में झूमता-लडख़ड़ाता गाता है-, जिंदगी ख्वाब है। देवदास और परख फिल्मों की चरित्र भूमिकाओं के लिए Actor from Shimla मोतीलाल को फिल्मफेअर अवार्ड मिले थे। मोती लाल ने राजवंश प्रोडक्शन कायम करके फिल्म छोटी—छोटी बातें बनाई थी। फिल्म को राष्ट्रपति का सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट जरूर मिला, पर मोतीलाल दिवालिया हो गए। फिल्म तीसरी कसम शैलेंद्र के जीवन के लिए भारी साबित हुई थी, Actor from Shimla मोतीलाल का यही हाल छोटी— छोटी बातें कर गई।