Folklore : मोहणा कर दो माफ, नहीं मिला इंसाफ

Folklore : मोहणा कर दो माफ, नहीं मिला इंसाफ
  • बिलासपुर लेखक संघ ने ‘कहलूर के झेड़े और लोककथाएं’ में  की पड़ताल, गहन जांच कर उजागर किए तथ्य

विनोद भावुक/ बिलासपुर

Folklore : बड़े भाइयों के कहने पर मोहणा ने हत्या का इल्जाम अपने सर ले लिया। उसको फांसी की सजा का हुक्म देने वाला राजा जानता था कि मोहणा निर्दोष है। कहते हैं जब मोहणा के खिलाफ कोई गवाही देने को तैयार नहीं था तो रंडोह की एक महिला पारवतू पत्नी शिव सिंह ने गवाही दी। परन्तु यह मात्र जनश्रुति है, इस बारे में कोई लिखित प्रमाण नहीं है।

कहा जाता है कि मोहणा की फांसी से राजा विजय चन्द मानसिक रूप से हार गया और 1927 में वह राजपाट अपने पुत्र आनन्द चन्द को सौंप कर बनारस चला गया।

बिलासपुर लेखक संघ ने पहली बार  'कहलूर के झेड़े और लोककथाएं' पुस्तक में मोहणा Folklore की पड़ताल करने के लिए गहन जांच कर ठोस तथ्यों को उजागर करने का प्रयत्न किया है।

बिलासपुर लेखक संघ ने पहली बार ‘कहलूर के झेड़े और लोककथाएं’ पुस्तक में मोहणा Folklore की पड़ताल करने के लिए गहन जांच कर ठोस तथ्यों को उजागर करने का प्रयत्न किया है।

एक गीत खास, मौन बाकी इतिहास

इस Folklore की पड़ताल बताती है कि भाइयों के लिए फांसी के फन्दे पर झूलने वाले भाई की सगे भाइयों ने कोई मदद नहीं की। राजा हो, सैनिक या कवि, कोई भी मोहणा के परिवार के साथ न्याय नहीं कर पाया।
लालदेई भरपूर जवानी में विधवा हो गई। उसकी राजा ने कोई मदद नहीं की। गीतों की रचना करने वालों ने मोहणा की पत्नी लालदेई का कहीं उल्लेख नहीं किया। मोहणा के बारे इतिहास भी मौन रहा। उसके बारे में मात्र एक गीत के और कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं है।

Folklore : एक प्रसंग, कई गाथाएं प्रचलित

Folklore मोहणा के बारे में कई गाथाएं सुनाई जाती हैं। इनमें यह भी कहा गया है कि मस्सदी को कुल्हाड़े से मारा गया तथा उसकी तत्काल मृत्यु हो गई। कुछ लोग कहते हैं कि मस्सदी के पास भी एक दराट था, परन्तु कुल्हाड़ी के बार से घायल वह दराट नहीं चला सका। मस्सदी के गम्भीर रूप से घायल होते ही अन्य लोग वहांसे भाग गए। घायल मस्सदी तड़पता रहा और फिर उसकी मृत्यु हो गई। दो दिन तक उसका शव वहीं पड़ा रहा।

राजाओं के भरोसे का परिवार

Folklore के मुताबिक मोहणा परगना तियून, तहसील घुमारवीं के रंडोह गांव का मूल निवासी था। इसके दादा मियां खजाना और पिता मियां ज्ञाना कहलूए के राजाओं के विश्वास पात्र थे। उन्हें इस क्षेत्र मे राजा ने बहुत भूमि प्रदान की हुई थी मोहणा के दो और भाई थे। इनमें लछमन बड़ा तथा तुलसी मंझला भाई था।
तुलसी बिलासपुर के राजा विजय चन्द के दरबार में भण्डारी के पद पर था। उसका दबदबा पूरे तियून परगना में था। कभी-कभी लछमन और मोहना भी अपने भाई तुलसी के साथ राज दरबार में आते-जाते रहते थे।

दो परिवारों में था जमीन का विवाद

इस परिवार का समीपवर्ती गांव मोरसिंघी के मस्सदी चौहान के साथ भूमि सम्बन्धी झगड़ा था। मस्सदी भी राजा के दरबार में प्यादा के पद पर था। वह रंडोह के आस-पास की भूमि पर कब्जा करना चाहता था। उसने सेना में भी सेवा की थी उसके कार्य से प्रसन्‍न होकर अंग्रेजी सरकार के निर्देश पर राजा विजय चन्द ने उसे रंडोह के समीप 30-32 बीघे भूमि मुरब्बे के रूप में दी थी।
उसकी मोरसिंघी में भी पर्याप्त भूमि थी। रंडोह में उसने आम और अमरूद का बगीचा लगाया हुआ था। यहां एक ब्राह्मण परिवार से भी उसका भूमि सम्बन्धी विवाद था।

खूनी टकराव में चली गई जान

मस्सदी रंडोह में आते समय घास काटने के लिए दराट या लकड़ी काटने के लिए कुल्हाड़ी लेकर आता था। 1922 में उस दिन भी वह दराट लेकर रंडोह आया। यहां उसका ब्राह्मण परिवार से टकराव हो गया। शोर सुन कर तुलसी और लछमन पहुंच गए। गाली-गलौच के बाद मार-पीट शुरू हो गई। इसमें मस्सदी बुरी तरह से घायल हो गया।
मस्सदी तड़पता रहा पर रक्तपात देखकर आरोपी भाग निकले। दो दिन तक उसका शव खुले में पड़ा रहा।

संदेह के आधार पर तीनों भाइयों की गिरफ्तारी

राजा ने तीसरे दिन घुमारवीं पुलिस थाना को सूचना भेजी तथा अधिकारियों को अपराधी को शीघ्र गिरफ्तार करने का निर्देश दिया। पुलिस ने रंडोह गांव के आस-पास के कई लोगों को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया।
धीरे- धीरे सन्देह लछमन, मोहणा और तुलसी पर होने लगा। इन तीनों को गिरफ्तार कर बिलासपुर ले जाया गया। राजा विजय चन्द ने स्वयं इस हत्या के बारे गहन जांच की।

भाइयों के कहने पर सिर लिया इल्जाम

Folklore के मुताबिक इस बीच तुलसी ने मोहणा को इस हत्या का इल्जाम अपने सिर लेने के लिए प्रेरित किया। उसने मोहणा को समझाया कि वह राजा के दरबार में विशेष महत्त्व रखता है। अगर मोहणा को राजा सज़ा देगा तो वह राजा से कहकर उस सजा को क्षमा करवा देगा ।
लछमन ने भी मोहन को इस अपराध को स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया। मोहणा अपने भाइयों का बड़ा आदर करता था। उसने राजा को बतलाया कि मस्सदी का कत्ल उसने किया है।

राजा ने समझाया, नहीं माना मोहणा

राजा विजय चन्द यह जान गया था कि मस्सदी का कत्ल तुलसी और लछमन ने किया है तथा मोहणा निर्दोष है। राजा ने मोहणा को बहुत समझाया कि वह भाईयों के अपराध को स्वीकार न करे तथा सत्य का पक्ष ले।
अगर ऐसा नहीं किया तो मोहन को फांसी की सज़ा हो सकती है। परन्तु मोहन ऐसा अनुभव करता रहा कि राजा बार-बार पूछ कर केवल दिखावा कर रहा है तथा भाइयों के कहने पर राजा उसे मुक्त कर देगा।

निर्दोष को सजा नहीं देना चाहता था राजा

Folklore के अनुसार राजा को फांसी की सज़ा देने का अधिकार 1922 में ही मिला था। वह नहीं चाहता था कि वह प्रथम बार फांसी के लिए निर्दोष मोहणा को शिकार बनाए। उसने मोहणा को बार-बार समझाया, परन्तु मोहना अपने शब्दों पर अटल रहा।
मजबूर होकर राजा ने मोहन को मस्सदी का हत्यारा सिद्ध कर उसे फांसी की सजा सुनाई। राजा ने लुहणू मैदान के समीप बेड़ी घाट में एक निश्चित दिन को सार्वजनिक रूप में फांसी देने का निर्णय लिया।

फांसी देखने पहुंचे थे बहुत से लोग

राजा ने मोहणा को बेड़ीघाट के समीप फांसी देने का फैसला दिया था। निश्चित समय पर लुहणू मैदान के समीप बेड़ीघाट में खम्भे गाड़े गए। राजा ने खम्भों के ऊपर एक अस्थाई मंच बनाया। मोहणा के पैरों में बेड़ी (लोहे की जंजीर) तथा हाथों में हथकड़ी लगा दी गई । राजा मंच पर ऊँचे स्थान पर बैठा।
मंच के नीचे अपने अतिरिक्त एक जज, एक जल्लाद, एक डाक्टर के बैठने को अलग-अलग व्यवस्था की थी। फांसी का समाचार सुन कर दूर-दूर से लोग यह देखने आए थे।

आखिरी बार फिर जानना चाहा सच

फांसी का तख्ता पलटने से पूर्व राजा ने फिर मोहणा को पूछा, ’मोहणा सच बतला दो कि मस्सदी की हत्या तुमने नहीं की।’ मोहन ने तुरन्त कहा, ‘महाराज मस्सदी की हत्या मैंने की है।’ मोहन का यह उत्तर सुनते ही जल्लाद को फांसी की कार्यवाही करने का आदेश दिया।
Folklore के मुताबिक इस तरह मियां मोहणा भाईयों के लिए फांसी पर चढ़ गया। वह छ फुट के लगभग हृष्ट-पुष्ट और सजीला नौजवान था। उस समय उसकी आयु पैंतीस वर्ष के लगभग थी।

मोहणा’ लोकगीत का प्रसंग इतना मार्मिक है कि सुनते- सुनते आंख भर आती है।

आया मरना ओ मोहना आया मरना।
तिजो भाईए रिये कितिए आया मरना।।

रोया करदी ओ मोहणा रोया करदी,
तेरी बालक ब्लेसरू रोया करदी।।

खाई लै फुलकू ओ मोहणा खाई लै फुलकू,
अपणी अम्मारे हत्था खाई लै फुलकू।।

मैं नी खाणा ओ लोको मैं नी खाणा,
मेरी घड़ी पल मरने री मैं नी खाणा।

किनी रैहणा ओ मोहना किनी रैहणा,
तेरे रंगलुए – बंगलुए किनी रैहणा॥

भाईआंरैहणां ओ लोको भाइयां रैहणा,
मेरे रंगलुए-बंगलुए भाईआं रैहणा॥

लम्बे गडुरे रे मोहणा लम्बे गडुरे हे,
बेड़िया रे घाटा बिच लम्बे गडरे।।

चढ़ी जा तख्ते ओ मोहणा चढ़ी जा तख्ते,
भाइए रिया कितियां चढ़ी जा तख्ते।।

बारह बजी गे ओ मोहणा बारह बजी गए,
राजे रीया घड़िया बारह बजी गे।।

तूनी दिसदा ओ मोहणा तू नी दिसदा,
छैल बांका छोरू मोहणा तू नी दिसदा।।

तेरी बुरिए ओ मोहणा तेरी बुरिए,
मेरा गला लाया लेसणे पैनी छुरिए।।

फुल्ल-फुल्लणे ओ मोहणा फुल्ल-फुल्लणे,
तेरे मिठड़े बोल मुया कियां भुलणे।।

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