Gold बनाना जानते थे चंबा राज परिवार के गुरु चर्पटनाथ!
विनोद भावुक / चंबा
नाथ सिद्ध चर्पटनाथ (चर्पटीनाथ) का रियासतकाल से ही चंबा के लोक जीवन पर गहरा प्रभाव रहा है और वर्तमान में भी वह चंबा के जनजीवन में गहरे रसे- बसे हैं।
गोरखनाथ के शिष्य चर्पटनाथ Gold ( स्वर्ण अथवा स्वर्णभस्म) बनाने की विधि जानते थे। अपने जीवन काल के अंत तक वह चम्बा के राज परिवार में राजगुरु की हैसियत से विराजमान रहे।
‘नाथ सिद्धों की बानियां में चर्पटनाथ की 59 सवदियां और 5 श्लोक संकलित हैं। इनका वर्ण्य-विषय लौकिक पाखण्डों का खण्डन तथा कामिनी-कंचन की निन्दा आदि है।
उनके एक श्लोक में पारद का यशोगान किया गया है और इसी सन्दर्भ में Gold स्वर्ण या स्वर्णभस्म बनाने की विधि का उल्लेख भी हुआ है। इसीलिए चर्पटनाथ रसेश्वरसिद्ध कहे जाते हैं।
लक्ष्मीनारायण मंदिर परिसर में चर्पटनाथ की समाधि
चंबा का लक्ष्मीनारायण मंदिर समूह चम्बा को सर्वप्रसिद्ध देवस्थल है। इस मंदिर समूह में महाकाली, हनुमान, नंदीगण के मंदिर के साथ–साथ विष्णु व शिव के तीन–तीन मंदिर हैं।
इसी मंदिर परिसर में Gold बनाने के माहिर सिद्ध चर्पटनाथ की समाधि भी है। चंबा में सदियों से हर साल होने वाली मणिमहेश यात्रा की अगुआई आज भी चर्पटनाथ की छड़ी करती आ रही है।
भरमौर में लगभग चौदाह सौ वर्ष पुराना चौरासी मंदिर परिसर है। माना जाता है कि भरमौर के राजा सहिल वर्मन ने मंदिर का निर्मान 84 सिद्धों के नाम पर करवाया था।
चौरासी सिद्धों में से एक चर्पटनाथ
Gold बनाने की विधि जानने वाले चर्पटनाथ चौरासी सिद्धों में से एक थे, जिन्हें राहुल सांकृत्यायन की सूची में 59वां और ‘वर्ण रत्नाकार’ की सूची में 31वां सिद्ध बताया गया है। राहुल सांकृत्यायन ने चर्पटीनाथ को गोरखनाथ का शिष्य मानकर इनका समय 11वीं शती अनुमित किया है।
‘नाथ सिद्धों की बानियां’ में इनकी सबदी संकलित है। उसमें एक स्थल पर कहा गया है-
‘आई भी छोड़िये, लैन न जाइये।
कुहे गोरष कूता विचारि-विचारि षाइये।।‘
सबदी में कई स्थलों पर अवधूत शब्द का भी प्रयोग हुआ है। एक सबदी में नागार्जुन को सम्बोधित किया गया है-
‘कहै चर्पटी सोंण हो नागा अर्जुन।’
इन उल्लेखों से विदित होता है कि Gold बनाने का फार्मूला जानने वाले चर्पटीनाथ गोरखनाथ के परवर्ती और नागार्जुन के समसामयिक सिद्ध थे। अत: अनुमान किया जा सकता है कि वे 11वीं 12वीं शताब्दी में हुए होंगे।
चंबा राज परिवार से सम्बन्ध
रज्जब की सर्वागी में इन्हें चारणी के गर्भ से उत्पन्न कहा गया है, किंतु डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल ने इनका नाम चंबा रियासत की राजवंशावली में खोज निकाला।
पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल हिन्दी के ख्यातिप्राप्त साहित्यकार हुए हैं। वे विद्वान् आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के सहयोगी रहे थे। उन्होंने ‘गोरख बानी’ और ‘रामानन्द’ की रचना की थी।
एक सबदी में ‘सत-सत भाषंत श्री चरपटराव’ कहकर कदाचित् Gold की विधि जानने वाले चर्पटीनाथ ने स्वयं राजवंश से अपने सम्बन्ध का संकेत किया है।
तिब्बती भाषा में लिखी ‘चतुर्भवाभिशन’
Gold बनाने की विधि जानने वाले चर्पटनाथ की किसी स्वतंत्र रचना का प्रमाण नहीं मिला। डॉ. हज़ारीप्रसाद द्विवेदी ने उनकी एक तिब्बती भाषा में लिखी कृति ‘चतुर्भवाभिशन’ का उल्लेख किया है।
‘नाथ सिद्धों की बानियाँ’ में चर्पटीनाथ की 59 सवदियां और 5 श्लोक संकलित हैं। इनका वर्ण्य-विषय लौकिक पाखण्डों का खण्डन तथा कामिनी-कंचन की निन्दा आदि है।
एक श्लोक में पारद का यशोगान किया गया है और इसी सन्दर्भ में स्वर्ण या स्वर्णभस्म बनाने की विधि का उल्लेख भी हुआ है। इसीलिए चर्पटीनाथ रसेश्वरसिद्ध कहे जाते हैं।
महिमहेश झील की खोज और यात्रा की पहल
मान्यता है कि Gold बनाने की विधि जानने वाले चर्पटनाथ ने ही महिमहेश झील का पता लगाया था। कहा जाता है कि राजस्थान के एक राजा ने चंबा के साहिल देव जो को भगवान् शिव की एक पिंडी भेंट की थी, जिसे चर्पटनाथ ने स्वयं महिमहेश कैलाश के साथ स्थित झील के किनारे प्रतिष्ठापित किया था। इसी के साथ मणिमहेश यात्रा की शुरुआत हुई थी, जो वर्तमान में भी जारी है।
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