Himalayan Rocket Stove : ऑस्ट्रेलिया के रसेल कोलिंस ने मनाली में विकसित किया स्टोव, लद्दाख और चंडीगढ़ में लगाई प्रोडक्शन यूनिट्स

Himalayan Rocket Stove : ऑस्ट्रेलिया के रसेल कोलिंस ने मनाली में विकसित किया स्टोव, लद्दाख और चंडीगढ़ में लगाई प्रोडक्शन यूनिट्स
विनोद भावुक / मनाली 
Himalayan Rocket Stove बनाने की यह प्रेरककथा है ऑस्ट्रेलिया के रसेल कोलिंस की  है। उन्होंने मनाली में सालों की अथक मेहनत के बाद वर्ष 2016 में हिमाचली तंदूर(बुखारी) को बेस बनाने हुए धातु के ऐसे Himalayan Rocket Stove  को डिजायन किया है, जो प्रदूषण रहित हीटिंग, कुकिंग और पानी गर्म करने की सुविधा तो देता ही है, जल्द ही इसमें लाइटिंग करने और मोबाइल चार्जिंग करने की सुविधा भी जडऩे वाली है। रसेल कोलिंस ने लद्दाख और चंडीगढ़ में प्रोडक्शन यूनिट्स स्थापित कर इस स्टोव को Himalayan Rocket Stove  के नाम से बाजार में उतारा है। यह स्टोव लकड़ी का प्रयोग करने पर ऊर्जा दक्षता दर को कई गुणा बढ़ा देता है। Himalayan Rocket Stove स्टैण्डर्ड रॉकेट स्टोव और थोड़ा बड़ा वाटर बॉक्स रॉकेट स्टोव के दो मॉडल्स में उपलब्ध है। अधिकतर समय ठंड के आगोश में रहने वाले पहाड़ी क्षेत्रों के लिए रसेल की इस तकनीक को क्रांतिकारी तकनीक माना जा रहा है।

Himalayan Rocket Stove: चंडीगढ़ और लद्दाख में प्रोडक्शन यूनिट्स

Himalayan Rocket Stove बनाने की यह प्रेरककथा है ऑस्ट्रेलिया के रसेल कोलिंस की  है। उन्होंने मनाली में सालों की अथक मेहनत के बाद वर्ष 2016 में हिमाचली तंदूर(बुखारी) को बेस बनाने हुए धातु के ऐसे Himalayan Rocket Stove  को डिजायन किया है, जो प्रदूषण रहित हीटिंग, कुकिंग और पानी गर्म करने की सुविधा तो देता ही है, जल्द ही इसमें लाइटिंग करने और मोबाइल चार्जिंग करने की सुविधा भी जडऩे वाली है।
46 साल के रसेल ने मनाली में Himalayan Rocket Stove का एक प्रोटोटाइप तैयार किया। ऐसी धुन सवार हुई कि उन्होंने यू टयूब पर हजारों वीडियोज देखे। इस दिशा में काम कर रहे कई वैज्ञानिकों से संवाद किया। गहन अध्ययन व परीक्षण कर डिजायन विकसित किया। वर्ष 2003 में किन्नौर घाटी में भूस्खलन में फंसने के दौरान रसेल ने एक अमेरिकी ट्रैकर की मदद की थी। उक्त अमेरिका में एक ऐसे धर्मार्थ ट्रस्ट का संचालन करता है जो ट्रस्ट सामाजिक कारणों के लिए परियोजनाओं फंडिंग करता है। रसेल को अपनी परियोजना के लिए उसी ट्रस्ट से उसकी परियोजना के लिए फंडिंग मिली। रसेल ने चंडीगढ़ और लद्दाख में उत्पादन इकाईयां स्थापित कर कमर्शियल प्रोडक्शन शुरू की।

19 साल की उम्र में छोड़ दिया था कॉलेज

रसेल 19 साल की उम्र में कॉलेज की पढ़ाई छोड़ कर इको रॉक थियेटर प्रोडक्शन में शामिल होकर सारा ऑस्ट्रेलिया घूमा। जब वह 22 साल का था तो एक दिन हिमाचल प्रदेश की दुर्गम स्पीति घाटी की यात्रा पर निकल आया। घाटी के सम्मोहन और वहां के लोगों के अपनेपन से ऐसे मोहपाश में बांधा कि ऑस्ट्रेलिया पहुंचने पर वह दिन रात फिर से हिमालय में लौट आने के सपने देखता रहा और फिर एक दिन सदा- सदा के लिए यहां लौट आया और हिमालय को ही अपना घर बना लिया। वह यहां के लोगों के सुख दुख में शामिल होने लगा और आधा साल बर्फ के आगोश में रहने वाली इस घाटी के लोगों के जीवन की मुश्किलों को आसान करने में जुट गया।

इको- हाउस डवलपमेंट से शुरूआत

Himalayan Rocket Stove स्टैण्डर्ड रॉकेट स्टोव और थोड़ा बड़ा वाटर बॉक्स रॉकेट स्टोव के दो मॉडल्स में उपलब्ध है। अधिकतर समय ठंड के आगोश में रहने वाले पहाड़ी क्षेत्रों के लिए रसेल की इस तकनीकी को क्रांतिकारी तकनीक माना जा रहा है।
Himalayan Rocket Stove बनाने वाले रसेल कोलिंस ने ताबो में एक इको- हाउस डवलपमेंट प्रोग्राम का खुद वित्त पोषण किया। स्पीति के बच्चों को गुणवतापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए वर्ष 2003 में सेरकॉन्ग स्कूल के लिए स्पॉन्सशिप का आयोजन शुरू किया। कुछ साल पहले उन्होंने स्कूल के लिए एक सोलर वॉटर पंप स्थापित किया। उन्होंने वर्ष 2003 में एक ट्रैवल कंपनी याक ट्रैक बनाई और हिमालयी क्षेत्रों में पर्यटन को विकसित किया। तब से वह सेरकॉन्ग स्कूल में शिक्षकों, कर्मचारियों और बच्चों की भागीदारी के साथ इको- एजुकेशनल टूअर आयोजित कर रहे हैं।
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