Kangra : दोस्त बाणबट के सहयोग के लिए आया था रावण
वीरेंद्र शर्मा वीर/ कांगड़ा
आपको जानकार हैरानी होगी कि लंकापति रावण Kangra (कांगड़ा) आया था। Kangra का राजा बाणबट राजा रावण का मित्र था। बाणवट ने रावण से सहयोग चाहा, जिसके लिए वह Kangra में आया।
जनभुतियों के अनुसार कांगड़ा दुर्ग के समीप वर्तमान समेला पंचायत के समेला गांव में रावण और बाणबट का सम्मेलन हुआ। इस स्थान का समेला नाम इसी सम्मेलन से ही व्युत्पन्न हुआ है।
कटोच राजाओं की वंशावली Kangra के इतिहास को द्वापर युग तक ले जाती है, लेकिन बाणबट और रावण का यह कथा प्रसंग इस इतिहास को कई युग और पीछे ले जाता है। इस लोक कथा के अनुसार बाणबट राजा राम और रावण के समकालीन थें।
रस्सियां बांटता था राजा बाणबट
जनभुतियों के इतिहास के अन्तर्गत Kangra में बाणबट राजा राज्य के कोष से अपने और अपने परिवार के लिए कोई व्यय नहीं करता था। वह अपने जीवन यापन के लिए ब्यूहल वृक्ष के रेशे से रस्सियां बांटने का काम करता था और इस कारण यह बाणबट राजा कहलाता था।
राजा बाणबट की रानी महतो ऊन की कताई करती थी। कहते हैं कि उसका अध्यातम बल इतना परिपुष्ट था कि वह पानी के घड़े को कच्चे धागे से बांधकर अपने महल के चौबारे से बाण गंगा नदी में फेंक कर पानी के भरे घड़े को खींच कर महल में ला देती थी।
नौलक्खा हार और रावण का सहयोग
हिमाचल की लोककथाओं में शुमार इस कथा के अनुसार एक बार रानी ने कुछ धनवान स्त्रियों के हार श्रृंगार से प्रभावित होकर राजा से अपने लिए नौलक्खा बनवाने को कहा। राजा ने उसे यह विचार त्याग कर सादगीपूर्ण जीवन जीने का परामर्श दिया, परन्तु रानी अपने हठ पर अडिग रही। राजा बाणवट ने रानी का हार बनाने के लिए रावण से सहयोग चाहा, जिसके लिए रावण Kangra में आया।
हार बना तो दिव्या शक्ति गई
Kangra दुर्ग के समीप वर्तमान समेला पंचायत के समेला गांव में रावण और बाणबट का सम्मेलन हुआ। इस स्थान का समेला नाम इसी सम्मेलन से ही व्युत्पन्न हुआ है। रावण के सहयोग से रानी का नौलक्खा हार बन गया, लेकिन तब रानी की दैवी शक्ति क्षीण हो गई। उसने धागे से घड़ा बांध कर बाण गंगा में फैंका लेकिन धागा टूट गया। रानी को अपनी गलती का आभास हुआ जिसका उसने पश्चाताप किया और सादगी से रहने लगी पर दिव्या शक्ति नहीं लौटी।
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