Padamshri Classic Singer बेगम अख्तर ने की  गायन की तारीफ, खुशवंत सिंह बताया पटियाला घराने का पिल्लर 

Padamshri Classic Singer बेगम अख्तर ने की  गायन की तारीफ, खुशवंत सिंह बताया पटियाला घराने का पिल्लर 
Padamshri Classic Singer सोमदत्त बट्टु कांगड़ा जिला के जसूर के निवासी हैं।

दुनिया भर में अपने हुनर का लोहा मनवाने वाले हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक पंडित सोमदत्त बट्टू

विनोद भावुक/ शिमला 
Padamshri Classic Singer के गायन को साल 1970 में मल्लिका-ए-ग़ज़ल बेगम अख्तर ने  रेडियो पर सुना तो वह तारीफ किए बगैर नहीं रह सकीं। उन्होंने देश में ही नहीं विदेशों में भी अपनी अपनी संगीत और गायन प्रतिभा का लोहा मनवाया। पाकिस्तान, नाइजीरिया, यूएसए, वेस्टइंडीज, यूके, जर्मनी और इटली जैसे कई देशों में उनके संगीत कार्यक्रम जबरदस्त हिट रहे है। उन्होंने भारतीय सेना की कोर ऑफ सिग्नल के लिए मार्शल ट्यून की रचना की है, जिसे कोर गीत के रूप में अपनाया गया है। इस गीत की रचना प्रसिद्ध फिल्म गीतकार आनंद बक्शी ने की है। कार्पस ऑफ़ सिग्नल का बैंड अक्सर रिपब्लिक डे रिट्रीट फंक्शन और कार्पस ऑफ़ सिग्नल फंक्शन पर इस धुन को प्रदर्शित करता है। प्रसिद्ध विचारक स्वर्गीय खुशवंत सिंह ने उन्हें पटियाला घराने के स्तंभ के रूप में स्वीकार किया है। इस प्रेरककथा के नायक हैं पटियाला घराने के हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक 84 वर्षीय पंडित सोमदत्त बट्टू। इसी साल भारत सरकार ने उन्हें पदमश्री देकर सम्मानित किया है।

घर में मिला संगीत का माहौल

Padamshri Classic Singer सोमदेव बट्टू को खुशवंत सिंह ने पटियाला घराने का पिल्लर कहा।

11 अप्रैल 1938 को कांगड़ा जिले के जसूर में संगीत की पृष्ठभूमि वाले परिवार में पैदा हुए Padamshri Classic Singer को संगीत विरासत के रूप में मिला है। उनके पिता पंडित रामलाल बट्टू श्याम चौरासी घराने के अनुयायी थे, जिन्होंने बचपन से ही सोमदत्त बट्टू को हिंदुस्तानी गायन संगीत की शिक्षा देनी शुरू कर दी। उन्होंने पंडित विष्णु दिगंबर पुलश्कर के शिष्य पंडित कुंजलाल शर्मा से संगीत में प्रशिक्षण प्राप्त किया और पटियाला घराने की गायकी की तकनीक पंडित कुंदन लाल शर्मा से सीखी।

आकाशवाणी शिमला ने प्रतिभा को पहचान

Padamshri Classic Singer सोमदत्त बट्टू कांगड़ा के जासूर के रहने वाले हैं।

1955 में Padamshri Classic Singer शिमला आए और गवर्नमेंट प्रेस शिमला में नौकरी करने के साथ उन्होंने गजलें गानी शुरू कर दीं। धीरे-धीरे शिमला में सोमदत्त बट्टू की महफिलें होने लगीं। जब 9 जून 1955 को शिमला में आकाशवाणी केंद्र खुला तो प्रोफेसर बट्टू की गजलें तथा शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम प्रसारित होने लगे। साल 1968 में कोटशेरा कॉलेज में संगीत के शिक्षक नियुक्त हुए। उन्होंने लगभग 40 वर्षों तक प्रदेश के विभिन्न कॉलेजों में संगीत शिक्षक के पद पर सेवाएं दी हैं।

तराशे संगीत के कई सितारे

Padamshri Classic Singer के सैकड़ों शिष्य उनकी दी गई संगीत की विरासत को देश- विदेश तक पहुंचा रहे हैं। उनके कई शागिर्दों ने शास्त्रीय संगीत और ग़ज़ल गायकी को हिमाचल प्रदेश में लोकप्रिय बनाया है। इनमें प्रोफेसर चमन वर्मा, डॉक्टर के एल सहगल, जयप्रकाश कंडारा, संतराम, कृष्ण कालिया, डॉ प्रवीण जरेट, डॉ बृज लाल भारद्वाज, राम रतन कंडारा, रंजना बहल, मालश्री प्रसाद, सुशील बैरी श्रीमती महेश्वरी, श्रीमती शुक्ला, कुलजीत सिंह, अजय नंद शर्मा और सविता सहगल के नाम प्रमुखता से लिया जा सकते हैं।

संगीत का सर्वोच्च पुरस्कार

Padamshri Classic Singer को भारत सरकार के कला संस्कृति मंत्रालय की ओर से साल 2018 के संगीत का सर्वोच्च पुरस्कार प्रदान किया गया है। संगीत नाटक अकादमी का यह पुरस्कार संगीत नाटक अकादमी के तहत तत्कालीन उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने प्रदान किया, जिसके तहत एक लाख रुपये का नकद पुरस्कार व् प्रशस्ति शामिल है। साल 2016 में उन्हें प्रदेश सरकार ने ‘हिमाचल गौरव’ पुरस्कार से नवाजा है। उन्हें ‘पंजाबी अकादमी नई दिल्ली ने लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार, परमसभ्यचरण सम्मान तथा पंजाब संगीत रतन पुरस्कार से सम्मानित किया है। साल 2024 में उन्हें पदमश्री दिया गया।

‘मैन एंड म्यूजिक इन इंडिया’

भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला ने वर्ष 1992 में देश के 10 शीर्ष संगीतकारों के शोधपत्रों को प्रकाशन के लिए चुना, जिसमें Padamshri Classic Singer का शोध पत्र ‘मैन एंड म्यूजिक इन इंडिया’ भी शामिल है। वे भारतीय सांस्कृतिक परिषद नई दिल्ली में हिंदुस्तानी संगीत के लिए एन्पेनाल्मेंट कमेटी के सदस्य रहे हैं।

गायकी की बारीकियां और नियमों का पालन

Padamshri Classic Singer  पटियाला घराने की गायकी की बारीकियों और उसके नियमों का पालन करते हुए पटियाला घराने के महान संगीत की वंश परंपरा का अनुसरणकर्ता होने पर गर्व महसूस करते हैं। वे प्रसिद्ध संगीतज्ञ हैं और शास्त्रीय संगीत, सुगम संगीत तथा भक्ति संगीत के प्रमुख कलाकार हैं। डॉ. टीसी कौल अपनी पुस्तक ‘गजल गायिकी’ में लिखते हैं, हिमाचल प्रदेश में प्रोफ़ेसर बट्टू से बढ़कर गजल गायिकी का प्रसार किसी दूसरे ने नहीं किया है। उन्होंने सारी उम्र लोक संगीत तथा शास्त्री गायन के लिए लगा दी है।

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