Plastic Surgery in Kangra : नाक -कान की सर्जरी का जनक
विनोद भावुक/ कांगड़ा
Plastic Surgery in Kangra का एक अपना खास मुकाम रहा है। एक समय ऐसा भी था जब कांगड़ा नाक और कान के इस प्रकार के ऑपरेशन के लिए मशहूर था। कांगड़ा शब्द ही कान + गढ़ा ऐसे उच्चारण से तैयार हुआ है।
डॉ. एस.सी. अलमस्त ने Plastic Surgery in Kangra मॉडल’ पर बहुत कुछ लिखा है। वे कांगड़ा के ‘दीनानाथ कानगढ़िया’ नाम के नाक-कान के ऑपरेशन करने वाले वैद्य से स्वयं जाकर मिले थे। इस वैद्य के अनुभव डॉ. अलमस्त ने लिखे हैं।
सन्1404 तक की पीढ़ी Plastic Surgery in Kangra की जानकारी रखनेवाले ये ‘कान-गढ़िया’ नाक और कान की प्लास्टिक सर्जरी करने वाले कुशल वैद्य माने जाते हैं।
ब्रिटिश शोधकर्ता सर अलेक्जेंडर कनिंघम (1814-1893) ने Plastic Surgery in Kangra पर बड़े विस्तार से लिखा है। अकबर के कार्यकाल में ‘बिधा’ नाम का वैद्य कांगड़ा में इस प्रकार के ऑपरेशन करता था, ऐसा फारसी इतिहासकारों ने लिखा है।
Plastic Surgery in Kangra : तीन हजार साल पुराना इतिहास
भारतीय ज्ञान का खजाना पुस्तक के लेखक प्रशांत पोल लिखते हैं कि भारत ही है प्लास्टिक सर्जरी का जनक है और इसमें Plastic Surgery in Kangra की खास भूमिका रही है।
वे लिखते हैं कि प्लास्टिक सर्जरी का भारत में ढाई से तीन हजार वर्ष पूर्व से अस्तित्व था। इसके पक्के सबूत मिले हैं। नाक, कान और होंठों को व्यवस्थित करने का तंत्र भारत में बहुत पहले से चलता आ रहा है।
बीसवीं शताब्दी के मध्य तक छेदे हुए कान में भारी गहने पहनने की रीति थी। उसके वजन के कारण छेदी हुई जगह फटती थी। उसको ठीक करने के लिए गाल की चमड़ी निकालकर वहां लगाई जाती थी। उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक इस प्रकार के ऑपरेशन भारत में होते थे।
‘सुश्रुत संहिता’: नाक के ऑपरेशन की पूरी विधि
पौने तीन हजार वर्ष पहले ‘शल्य-वैद्य (आयुर्वेदिक सर्जन) सुश्रुत’ ने नाक के ऑपरेशन की पूरी विधि अपने ग्रंथ में दी है। सुश्रुत’ की मृत्यु के लगभग ग्यारह सौ (1100) वर्षों के बाद ‘सुश्रुत संहिता’ और “चरक संहिता’ का अरबी भाषा में अनुवाद हुआ।
यह कालखंड आठवीं शताब्दी का है। ‘किताब-इ-सुसरुद’ नाम से सुश्रुत संहिता मध्य-पूर्व में पढ़ी जाती थी। ‘किताब-इ-सुसरुद’ के माध्यम से सुश्रुत संहिता यूरोप पहुँच गई।
चौदहवीं-पंद्रहवीं शताब्दी में इस ऑपरेशन की जानकारी अरब-पर्शिया (ईरान)-इजिप्ट होते हुए इटली पहुँची। इसी जानकारी के आधार पर इटली के सिसिली आयरलैंड के “ब्रांका परिवार’ और ‘गास्परे टाग्लीया-कोसी’ ने कान तथा नाक के ऑपरेशन करने शुरू किए। चर्च के भारी विरोध के कारण उन्हें ऑपरेशन बंद करने पड़े।
ब्रिटिश सैनिकों के नाक काटने का प्रसंग
सन 1769 से 1799 तक तीस वर्षों में हैदर अली-टीपू सुल्तान इन बाप-बेटे और अंग्रेजों में चार बड़े युदूध हुए। एक युदूध में अंग्रेजों की ओर से लड़ने वाला ‘कावसजी’ नाम का मराठा सैनिक और चार तेलुगु भाषी लोगों को टीपू सुल्तान की फौज ने पकड़ लिया।
सभी की नाक काटकर उनको अंग्रेजों के पास भेज दिया। इस घटना के कुछ दिनों के बाद ही एक अंग्रेज कमांडर ने एक भारतीय व्यापारी की नाक पर कुछ निशान देखे।
कमांडर ने उससे पूछा तो पता चला कि उस व्यापारी ने चरित्र के मामले में कुछ गलती की थी, इसलिए उसको नाक काटने की सजा मिली थी। नाक कटने के बाद उस व्यापारी ने एक वैद्यजी के पास जाकर अपनी नाक पहले जैसी करवा ली थी।
‘मद्रास गजेट’ और ‘जेंटलमैन’ में छ्पी स्टोरी
अंग्रेज कमांडर को यह सुनकर आश्चर्य लगा। कमांडर ने उस वैद्य को बुलाया और कावसजी तथा उसके साथ के चार लोगों की नाक को पहले जैसा करने के लिए कहा। पुणे के पास के एक गांव में यह ऑपरेशन हुआ।
ऑपरेशन के समय दो अंग्रेज डॉक्टर्स थॉमस क्रूसो और जेम्स फिंडले भी उपस्थित थे। इन दोनों डॉक्टरों ने उस अज्ञात मराठी वैद्य दूवारा किए हुए इस ऑपरेशन का विस्तृत समाचार “मद्रास गजेट‘ में प्रकाशन के लिए भेजा।
वह छपकर भी आया। लंदन से प्रकाशित होने वाली ‘जेंटलमैन’ पत्रिका ने इस समाचार को अगस्त 1794 के अंक मे दोबारा प्रकाशित किया। ‘जेंटलमैन’ में प्रकाशित ‘स्टोरी’ से प्रेरणा लेकर इंग्लैंड के जे.सी. कॉर्प नाम के सर्जन ने इसी पद्धति से दो ऑपरेशन किए। दोनों सफल रहे।
तीन सप्ताह में चमड़ी का प्रत्यारोपण
ऐसा माना जाता है कि ‘एडविन स्मिथ पापिरस’ ने पश्चिमी लोगों के बीच प्लास्टिक सर्जरी के बारे में सबसे पहले लिखा। लेकिन रोमन ग्रंथों में इस प्रकार के ऑपरेशन का जिक्र एक हजार वर्ष पूर्व से मिलता है, अर्थात् भारत में यह ऑपरेशंस इससे बहुत पहले हुए थे।
किसी विशिष्ट वृक्ष का एक पत्ता लेकर उसे मरीज के नाक पर रखा जाता है। उस पत्ते को नाक के आकार का काटा जाता है। उसी नाप से गाल, माथा या फिर हाथ/पैर, जहाँ से भी सहजता से मिले, वहाँ से चमड़ी निकाली जाती है।
उस चमड़ी पर विशेष प्रकार की दवाइयों का लेपन किया जाता है। फिर उस चमड़ी को जहाँ लगाना है, वहाँ बाँधा जाता है। तीन हफ्ते बाद नई चमड़ी आ जाती है और इस प्रकार से चमड़ी का प्रत्यारोपण सफल हो जाता है।
महाभारत का कहना है कि कर्ण माँ की कोख से पैदा नहीं हुआ था। इसका मतलब यह कि उस समय जेनेटिक साइंस मौजूद था। हम गणेशजी की पूजा करते हैं। कोई तो प्लास्टिक सर्जन होगा उस जमाने में, जिसने मनुष्य के शरीर पर हाथी का सिर रखकर प्लास्टिक सर्जरी का प्रारंभ किया होगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी, 25 अक्तूबर, 2014 को मुंबई में एच.एन. रिलायंस फाउंडेशन हॉस्पिटल
इस विषय से संबन्धित पोस्टें –