Second World War इस गांव में 4 साल तक रहे इटली के युद्धबंदी
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Second World War: भारत विभाजन के दौरान पाकिस्तान से आये 20,000 शरणार्थियों को दी शरण
विनोद भावुक/ धर्मशाला
राइजिंग कोर का हेड क्वार्टर योल कैम्प 40 के दशक में ही अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में आ गया था। योल हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला का इकलौता गांव था जो Second World War के दौरान खूब चर्चा में रहा। इस दौरान साल 1942 में ब्रिटिश शासकों ने यहां दुनिया भर के विभिन्न देशों से बंदी बनाए गए इटलीके सैनिकों को नजरबंद करके रखा था।
Second World War के यहां नजरबंद किए गए युद्धबंदी पर्यटकों की तरह पिकनिक के मूड में रहते थे। उनके मनोरंजन के लिए भी प्रबंध किए गए थे। उद्योगपति एवं फिल्म प्रोड्यूसर श्यामलाल मैणी योल कैम्प के सिनेमा हॉल में युद्धबंदियों को फ़िल्में दिखाते थे।
इटली के युद्धबंदियों ने योअर ऑन लाइन कहना शुरू किया। भारतीय सेना ने यहां अपना बेस बनाया तो यंग अफसर लीव कैंप के नाम से संबोधित किया गया। इस स्थान को स्थानीय बोली में ‘मुंझा दा बल्ला’ कहा जाता था, जिसका अर्थ होता है मुंझ घास वाली बंजर जमीन।
4 साल तक रहे 11000 युद्धबंदी
Second World War के यहां इटली के 11000 युद्धबंदियों को नजरबंद रखा गया था। इनमें सैनिकों के अतिरिक्त डॉक्टर, प्रोफेशनल और लेखक भी शामिल थे। साल 1942 में योल और नरवाना गांव की ढलानों पर 4 शिविर स्थापित किए गए थे।
युद्धबंदियों को रखने के लिए यहां 770 एकड़ भूमि पर बैरकें बनाई गई थीं, जिनमें ज्यादातर लकड़ी का ही प्रयोग हुआ था। निर्माण का काम अप्रैल 1941 में शुरू हुआ था और 6 मार्च में अक्टूबर में पूरा हुआ। शिविर में इटली के युद्धबंदी 4 सालों तक रहे।
युद्धबंदियों की कई कहानियां
योल के शिविरों में रहे Second World War के इटली युद्धबंदियों के कई किस्से योल और आसपास के गांवों में अभी तक सुनाए जाते हैं। ऐसे ही चवेरा- लवेरा को इन शिविरों का कमांडर बनाया गया था। कमांडर शिविरों पर कड़ा नियंत्रण रखता था।
नियंत्रण के के बावजूद कट्टर युद्धबंदियों को छोड़ बाकी सभी युद्धबंदियों को यहां घूमने की पूरी आजादी थी। युद्धबंदी अक्सर शिविरों में मिलों दूर घूमने निकल जाया करते थे।
योल से भागे पहुंचे तिब्बत
योल के Second World War के एक युद्धबंदी ने शिविर से भागने की कोशिश की थी तो ब्रिटिश सैनिकों ने उसे गोली मार दी थी। ब्रिटिश सैनिकों द्वारा मारे गए युद्धबंदी को शिविर के पास ही दफनाया गया और उसकी कब्र पर पत्थर की पट्टिका लगाई गई, जिस पर ‘आई फ़ैल हेयर’ लेख लिखा गया।
योल में इटली के युद्धबंदी की इकलौती कब्र है।
योल से इटली के दो युद्धबंदियों के तिब्बत भाग जाने का प्रसंग भी इतिहास में दर्ज है, इनमें से ने एक युद्धबंदी ने बाद में तिब्बत पर एक पुस्तक भी लिखी थी।
भारत में जिंदा इटली की स्मृतियां
Second World War केउदार युद्धबंदियों को घूमने फिरने की पूरी आजादी थी, पर कट्टरपंथियों के लिए एक अलग से बैरकें बनाई गई थी। यहां कट्टर इटली और भारतीय कैदियों को प्रताड़ित किया जाता था।
इटली के युद्धबंदियों ने शिविर में स्लेटों से एक स्मारक स्थापित किया था। स्मारक पर आजादी के प्रतीक स्वरूप बड़े बेटों स्लेटों का एक जोड़ा लगाया गया था। स्मारक के केंद्र में एक भूरे रंग के स्लेट पर एक शिलालेख अंकित किया गया था।
नो डिप्रेशन, ओनली जश्न
योल में नजरबंद Second World War के इटली के युद्धबंदी स्थानीय लोगों के साथ घुलमिल गए थे और पारिवारिक सम्बन्ध बना लिए थे। कुछ युद्धबंदियों ने ज़ुबानी करार कर स्थानीय लोगों से जमीन लेकर सब्जियां उगानी शुरू कर दी थी।
भारतीय करेंसी हासिल करने के लिए युद्धबंदियों द्वारा अपने कपड़े, खाने में मिलने वाले फल स्थानीय लोगों को भी बेच देने के कई किस्से सुनाए जाते हैं।
स्थानीय बुजुर्गों के मुताबिक इटली के युद्धबंदी युद्ध ने अपनी मातृभूमि से दूर होने की पीड़ा में नहीं दिखते थे, बल्कि हर वक्त जश्न के मूड में दिखते थे।
युद्धबंदी शिविर बना शरणार्थी शिविर
भारत विभाजन के दौरान पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों के लिए योल में शरणार्थी कैंप लगाया गया था। कैंप में 20000 शरणार्थियों ने शरण ली थी।
एक बार शरणार्थियों के बीच हुए उपद्रव के चलते यहां गोलीबारी भी हुई थी, जिसमें कुछ शरणार्थी और एक पुलिसकर्मी मारे गए थे। 19 47 – 48 में योग योल को जम्मू- कश्मीर की मिलिट्री के ट्रैकिंग ट्रेनिंग कैंप के तौर पर प्रयोग किया जा रहा था।
साल 1957 में मिलिट्री कैंप के शिफ्ट होने पर योग कैंप का एक भाग आर्मी की एक यूनिट को दे दिया गया और शरणार्थियों को नरवाणा, सिद्धबाड़ी और धर्मशाला में भेजा गया।
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