Temple of Himachal Pradesh मंदिर की चट्टान से टपकता था घी
बिजनेस हिमाचल कंटेन्ट/ मंडी
देवभूमि के नाम से विख्यात हिमाचल प्रदेश में अधिकतर मंदिरों के साथ अनूठी मान्यताएं अथवा प्रसंग जुड़े हुए हैं। यही कारण है कि यहां के अधिकतर मंदिरों में बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। आपको ऐसे Temple of Himachal Pradesh के बारे में बता रहे हैं, जिसकी चट्टान से कभी घी टपकता था और स्थानीय लोग धार्मिक, सामाजिक और पारवारिक समारोहों के लिए यहां से घी लेकर जाते थे।
बेशक, आज इस मंदिर की चट्टान से घी नहीं टपकता, लेकिन यहां ऐसे प्रमाण दिख जाते हैं जो कभी यहां घी टपकने की बात की पुष्टि करते हैं।
इस Temple of Himachal Pradesh के निर्माण से भी एक रोचक प्रसंग जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि लोगों की मुसीबतों को हल करने के लिए मां कोयला यहां खुद प्रकट हुई और लोगों को इस जगह मंदिर की स्थापना करने के लिए कहा।
ऊंचे पहाड़ पर बसी मां कोयला
मंडी जिला की बल्ह घाटी के राजगढ़ में स्थित माता कोयला भगवती का मंदिर प्रदेश भर में अपनी अलग पहचान रखता है।
नेरचौक से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस Temple of Himachal Pradesh तक वाहन से पहुंचा जा सकता है। मान्यता है कि मां यहां से सभी का ध्यान रखती है। ऐसा माना जाता है कि देवी के चमत्कार से कोलासुर नामक राक्षस का वध करने के कारण ही राजगढ़ के इस मंदिर का नाम कोयला माता के नाम से जाना जाने लगा।
प्राचीन समय में राजगढ़ की पहाड़ी पर यह Temple of Himachal Pradesh एक चट्टान के रूप में ही था। बाद में यह Temple of Himachal Pradesh कैसे अस्तित्व में आया और कोयला माता की पूजा-अर्चना कैसे शुरू हुई इसको लेकर कई प्रसंग सुनने को मिलते हैं।
राजगढ़ में हर दिन जलता था शव
कहा जाता है कि बहुत समय पहले की बात है कि राजगढ़ में हर दिन किसी न किसी के घर मातम छाया रहता था। आए दिन यहां कोई न कोई व्यक्ति मृत्यु का शिकार हो जाता था। राजगढ़ क्षेत्र का शमशान घाट किसी भी दिन बिना चिता जले नहीं रहता था।
यदि किसी दिन शमशान घाट में शव नहीं पहुंचता तो उस दिन वहां पर घास का पुतला जलाना पड़ता था। ऐसा न करने से किसी प्राकृतिक प्रकोप अथवा आपदा होने का खतरा रहता था। घास के पुतले जलाने की प्रथा से तंग आ कर इससे छुटकारा पाने के लिए लोगों ने देवी मां के आगे प्रार्थना की।
चट्टान से टपकने लगा देसी घी
लोगों की प्रार्थना से मां काली प्रसन्न हो गई देखते ही देखते एक व्यक्ति ने ‘खेलना शुरू कर दिया। खेलते- खेलते वह व्यक्ति कहने लगा कि मैं यहां की कल्याणकारी देवी हूं। तुम्हें घास के पुतला जलाने की प्रथा मुक्त करती हूं। मेरे मंदिर की स्थापना करों और सुखी रहो।
लोगों ने जब व्यक्ति के मुख से देवी के वाक सुने तो उन्होंने देवी से कही गई बातों का प्रमाण मांगा। खेलने वाले व्यक्ति ने पास की विशाल चट्टान की ओर इशारा किया और देखते ही देखते चट्टान से देसी घी टपकने लगा।
पवित्र चट्टान की पूजा-अर्चना
उसी दिन से इस पवित्र चट्टान व देवी के जयकारे व पूजा- अर्चना शुरू हो गई। क्षेत्र में जब भी किसी शुभ कार्य के लिए देसी घी की जरुरत होती थी तो लोग इस चट्टान के नीचे बर्तन रख जाते। कुछ ही समय में बर्तन घी से भर जाते। Temple of Himachal Pradesh की यह चट्टान धीरे- धीरे यहां के जन समुदाय की आस्था का केंद्र बन गई।
चट्टान से निकलने वाले घी को लोग माता के प्रसाद के रूप में ग्रहण करते और इस स्थल को पवित्र रखते। चट्टान से घी निकलने के कारण इस मंदिर के प्रति लोगों की आस्था बढ़ती गई।
जम्मू-कश्मीर से आई है कोयला माता
बताया जाता है कि मां कोयला माता जम्मू -कश्मीर से यहां आई थी। मां कोयला के कई रूप है, जैसे शमशानवासिनी, कमलासिनी आदि। पहले चट्टान की मां के रूप में मान्यता थी, लेकिन वर्ष 1979 के बाद यहां पर भव्य Temple of Himachal Pradesh का निर्माण करवाया गया है।
क्षेत्र में ऐसा विश्वास है कि मां कोयला सभी की मनोकामना पूर्ण करने वाली है। बल्ह घाटी में मां का प्रभाव है और इस क्षेत्र के सभी वर्गों की यह कुलदेवी हैं। पुजारी के तीन परिवार हैं जो कि बारी – बारी Temple of Himachal Pradesh व मां की देखभाल करते हैं, उन्हें पज्यारे कहते हैं।
मंदिर कमेटी मंदिर के विकास के लिए प्रयासरत है। इस Temple of Himachal Pradesh तक पहुंचने के लिए कमेटी ने करीब तीन किलोमीटर पक्की सड़क का निर्माण करवाया है, ताकि श्रद्धालुओं को मंदिर तक पहुंचने में परेशानी न हो।
कोयला माता को केवल स्थानीय लोग ही नहीं पूजते, बल्कि दूर- दूर के लोगों की माता पर गहरी आस्था है। विभिन्न धार्मिक उत्सवों व नवरात्रों के दिनों में मंदिर में भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते है| इस Temple of Himachal Pradesh में अक्सर देश प्रदेश की बड़ी हस्तियां अशीर्वाद प्राप्त करने पहुंचती हैं।
कहा जाता है कि इस Temple of Himachal Pradesh में पहुंचने वाले हर व्यक्ति की मुराद मां पूरी करती है। मन्नत पूरी होने पर लोग मां के दरबार में हाजिरी लगाने पहुंचते हैं।
1979 के बाद हुआ भव्य मंदिर का निर्माण
इस स्थान के प्रति बढ़ती आस्था के चलते वर्ष 1979 के बाद यहां पर Temple of Himachal Pradesh का निर्माण करवाया गया है। मां कोयला का न केवल पूरे बल्ह में मां का प्रभाव है, बल्ह से सटे अन्य क्षेत्रों के कई लोग भी मां को अपनी कुलदेवी मानते हैं।
बंद हुआ चट्टान से घी टपकना
कहा जाता है कभी इस Temple of Himachal Pradesh की चट्टान से घी टपकता था और यहां से लोग शादी ब्याह के लिए घी ले जाते थे। लेकिन अब चट्टान से घी नहीं टपकता है। इस के बारे में एक रोचक जनश्रुति आज भी प्रचलित है।
इस जनश्रुति के मुताबिक पहले जब सड़के का नामोनिशान नहीं था और लोग पैदल ही यात्राएं करते थे। उस समय लोग चच्योट मोवीसेरी, गोहर, जंजैहली व कुल्लू के लिए मंडी- सकरोह रास्ते से होकर जाते थे। इसी रास्ते से होकर एक दिन एक भड़ पालक अपनी भेड़-बकरियां लेकर गुजर रहा था। चढ़ाई चढ़ने के बाद वह आराम करने के लिए उसी चट्टान के समीप बैठ गया। उसने भी चट्टान से घी टपकने की बात सुन राखी थी।
यही सोच कर वह वहां बैठ कर खाना खाने लग गया और अपनी जूठी रोटी पर घी लगाने के लिए उसे चट्टान पर रगड़ने लगा। बताया जाता है कि जूठन के चलते उसी रोज से चट्टान से घी टपकना बेशक बंद हो गया, लेकिन देवी के चमत्कार फिर भी लोगों को देखने को मिलते रहे। कहा जाता है कि मां के अभिशाप से गद्दी पत्थर में बदल गया, अभी भी यहां एक बुत है, जिसे किरड़ा की जान पत्थर कहते हैं।
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