Tonga Services on Kalka-Shimla Road: कालका से शिमला तक तांगे पर सफर
विनोद भावुक/ शिमला
साल 1856 तक जब कालका से शिमला तक कार्ट रोड बनकर तैयार हो गया, एक अच्छी परिवहन और संचार व्यवस्था छह से ज्यादा महीनों तक शिमला में रहने वाली ब्रिटिश सरकार को पहली जरूरत थी। शिमला के बढ़ते महत्व के साथ इस सड़क को चौड़ा किया गया और Tonga Services on Kalka-Shimla Road (तांगा सर्विस) शुरू की गई। ‘शिमला देन एंड नाऊ’ पुस्तक में विपिन पब्बी लिखते हैं कि तांगा सेवा की शुरुआत जॉर्ज लॉ ने की थी, जिन्हें सेंट्रल प्रोविंस में इसी तरह की सेवा से यह विचार मिला था।
Tonga Services on Kalka-Shimla Road : डाक और परिवहन सेवा
Tonga Services on Kalka-Shimla Road डाक और यात्रियों के लिए राय बहादुर दौलत राम की देखरेख में कुशलतापूर्वक संचालित की गई थी। तांगा सेवा शुरू में निजी मालिकों द्वारा प्रदान की जाती थी। सरकार ने दो चरणों में इस सेवा को अपने अधीन कर लिया और साल 1881 में इस पर अपना पूरा नियंत्रण स्थापित कर लिया। यह सेवा बहुत उपयोगी साबित हुई, लेकिन ब्रिटिश सरकार कालका से शिमला तक रेलवे शुरू करने की इच्छुक थी।
परिवहन : तांगे से पहले खच्चर और घोड़े
‘शिमला देन एंड नाऊ’ के मुताबिक Tonga Services on Kalka-Shimla Road (तांगा सेवा) शुरू तक परिवहन का साधन खच्चर और घोड़े थे। सामान स्थानीय लोगों द्वारा ढोया जाता था। कई बार लोगों की कमी को देखते हुए, दूर-दूर से कुलियों को जबरन बुलाया जाता था। लोगों को खेती सहित उनके कामों से दूर करके गोरे साहबों का सामान ढोने के लिए भेज दिया जाता था और बहुत कम वेतन दिया जाता था।
पालकी की शुरुआत
‘शिमला देन एंड नाऊ’ के मुताबिक कार्ट रोड के पूरा होने पर Tonga Services on Kalka-Shimla Road शुरू करने से पहले एक पालकी (जम्पन) की शुरूआत हुई, जिसे कुली ढोते थे। इयान स्टीफंस कहते हैं कि शिमला में हर साल होने वाला यह कदम रोमांटिक लेकिन भयावह था। उन्होंने लिखा है ‘मेरे दिमाग में जो याद ताजा है, वह उन कुलियों की है जो अपनी पीठ पर बहुत भारी बोझ ढोते और ढोते हुए पहाड़ी ढलानों पर चढ़ते थे। शिमला सड़क अभी भी काफी संकरी थी और भूस्खलन की आशंका थी। उस दौरान शिमला के दुकानदार कालका से लाए गए सामान को नुकसान पहुंचाने के जोखिम को कवर करने के लिए ग्राहकों से अतिरिक्त शुल्क लेते थे।
कालका शिमला ट्रेन की शुरुआत
Tonga Services on Kalka-Shimla Road शुरू होने के बाद लॉर्ड कर्जन ने रेलवे के निर्माण में गहरी दिलचस्पी दिखाई और एचएस हैरिंगटन को मुख्य इंजीनियर बनाया। 103 सुरंगों वाली इस कालका- शिमला रेल लाइन को अंततः 31 मार्च 1891 को माल ढुलाई के लिए चालू किया गया। इस ट्रैक पर 9 नवंबर 1903 को पहली यात्री ट्रेन को हरी झंडी दिखाई गई।
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