काठगढ़ महादेव : और सिकंदर हो गया शिव उपासक

काठगढ़ महादेव : और सिकंदर हो गया शिव उपासक

विनोद भावुक/ धर्मशाला

काठगढ़ महादेव मंदिर में स्थापित शिवलिंग को लेकर कई मान्यताएं हैं। यह भी कहा जाता है कि महान योद्धा सिकंदर ने भी शिव की शक्ति को महसूस किया था। सिकंदर ने एक फकीर को यहां भगवान शिव की पूजा करते देखा तो प्रलोभन दिया कि वह पूजा- पाठ छोड़ उसके साथ यूनान चले तो वह उसे दौलत से मालामाल कर देगा।

फकीर के इसी भाव से सिंकदर प्रभावित होकर शिवभक्त हो गया। सिकंदर ने काठगढ़ महादेव मंदिर के लिए भूमि को समतल करवाया और चारदीवारी व चबूतरे भी बनवाए। मंदिर परिसर में आज भी यूनानी कलाकृतियां देखने को मिल जाती हैं।

फकीर ने सिकंदर की दौलत को ठोकर मारते हुए कहा, तुम थोड़ा पीछे हटो, ताकि मुझ तक सूर्य का प्रकाश आ सके। इतना कहने के बाद फकीर निडर और निर्भीक प्रभु भक्ति में लीन हो गया।

फकीर के इसी भाव से सिंकदर प्रभावित होकर शिवभक्त हो गया। सिकंदर ने काठगढ़ महादेव मंदिर के लिए भूमि को समतल करवाया और चारदीवारी व चबूतरे भी बनवाए। मंदिर परिसर में आज भी यूनानी कलाकृतियां देखने को मिल जाती हैं।

पुस्तकों में दर्ज सिकंदर का प्रसंग

प्रोफेसर सुखदेव सिंह चाढ़क की पुस्तक ‘हिमालयी राज्यों का इतिहास और संस्कृति’ में काठगढ़ महादेव मंदिर का संदर्भ मिलता है। कहा जाता है कि सिकंदर की सेना काठगढ़ पहुंचकर हतोत्साहित हो गई थी और वह यहीं से वापस अपने घर लौट गया था।

प्रोफेसर सुखदेव सिंह चाढ़क की पुस्तक ‘हिमालयी राज्यों का इतिहास और संस्कृति’ में काठगढ़ महादेव मंदिर का संदर्भ मिलता है। कहा जाता है कि सिकंदर की सेना काठगढ़ पहुंचकर हतोत्साहित हो गई थी और वह यहीं से वापस अपने घर लौट गया था। परवीन गुप्ता पुस्तक ‘अपना शहर पठानकोट’ में लिखते हैं कि महान आक्रमणकारी सिकंदर का विजय अभियान पठानकोट में ब्यास नदी के पास रुक गया और उसे अपनी योजना बदलनी पड़ी।

शिव का अग्नि तुल्य स्तम्भ है शिवलिंग

प्रोफेसर सुखदेव सिंह चाढ़क की पुस्तक ‘हिमालयी राज्यों का इतिहास और संस्कृति’ में काठगढ़ महादेव मंदिर का संदर्भ मिलता है। कहा जाता है कि सिकंदर की सेना काठगढ़ पहुंचकर हतोत्साहित हो गई थी और वह यहीं से वापस अपने घर लौट गया था।

शिवपुराण में वर्णित है कि मातृ लोक में श्रेष्ठता को लेकर ब्रह्मा तथा विष्णु के मध्य युद्ध हुआ था। इस युद्ध को रोकने और दोनों को शांत करने के लिए भगवान शिव को अग्नि तुल्य स्तम्भ के रूप में प्रकट होना पड़ा था। बताया जाता है कि शिव का यही स्तम्भ काठगढ़ महादेव विराजमान शिविलिंग है।

मकौड़ों  ने की शिवलिंग की हिफाजत

कहा जाता है कि किसी समय इस स्थान पर गुज्जर रहते थे। उन्होंने शिवलिंग को साधारण पत्थर समझ कर तोड़ना चाहा, पर यह नहीं टूटा। इस घटना का पता जब उस समय के राजा को चला तो उसने अपने सैनिक भेजकर उस पत्थर को लेकर आने के आदेश दिए। काठगढ़ महादेव को लेकर मान्यता है कि पत्थर की खुदाई करते समय यहां शिवलिंग की रक्षा के लिए असंख्य मकौड़े प्रकट हुए। आज भी यहां मकौड़ों की बड़ी संख्या देखने को मिलती है।

महाराजा रणजीत सिंह ने बनवाया मंदिर

काठगढ़ महादेव मंदिर के निर्माण को लेकर कहा जाता है कि महाराजा रणजीत सिंह ने जब गद्दी संभाली तो उन्होंने पूरे राज्य के धार्मिक स्थलों का भ्रमण किया। जब वह काठगढ़ पहुंचे तो इतना आनंदित हुए कि उन्होंने इस शिवलिंग पर मंदिर बनवाया और वहां पूजा करके ही आगे निकले।

काठगढ़ महादेव मंदिर के निर्माण को लेकर कहा जाता है कि महाराजा रणजीत सिंह ने जब गद्दी संभाली तो उन्होंने पूरे राज्य के धार्मिक स्थलों का भ्रमण किया। जब वह काठगढ़ पहुंचे तो इतना आनंदित हुए कि उन्होंने इस शिवलिंग पर मंदिर बनवाया और वहां पूजा करके ही आगे निकले। मंदिर के पास ही बने एक कुएं का जल उन्हें इतना पसंद था कि वह हर शुभकार्य के लिए यहीं से जल मंगवाते थे।

रोमन शैली का काठगढ़ महादेव मंदिर

काठगढ़ महादेव मंदिर भगवान शिव और पार्वती को समर्पित है। यह मंदिर कांगड़ा जिला के इंदौरा उपमंडल में इंदौरा शहर से सात किलोमीटर दूर ब्यास और चोच नदियों के संगम पर स्थित है, जिसे रोमन स्थापत्य शैली में बनाया गया है। मंदिर में हल्के भूरे रंग के रेतीले पत्थर से बने दो लिंग हैं, जिनका आधार अष्टकोणीय है।

गर्मियों में दो, सर्दियों में एक शिवलिंग

काठगढ़ महादेव विश्व का एकमात्र मंदिर है, जहां शिवलिंग दो भागों में बंटे हुए हैं। मां पार्वती और भगवान शिव के रूपों वाले इन लिंगों का अंतर ग्रहों और नक्षत्रों में बदलाव के अनुसार घटता-बढ़ता रहता है। गर्मियों में यह स्वरूप दो भागों में बंट जाता है और सर्दियों में एक रूप धारण कर लेता है। ‘रामायण’ की एक कहानी के अनुसार राम के भाई ‘भरत’ कश्मीर में अपने दादा-दादी के पास जाते समय यहां ‘शिव’ की पूजा करते थे।

राजवंशीय परंपरा से पूजा- अर्चना

काठगढ़ महादेव मंदिर में पूजा-अर्चना का जिम्मा महंत काली दास और उनके परिवार के पास है। वर्ष1998 से पहले उनके पिता महंत माधो नाथ के पास इस मंदिर की पूजा-अर्चना का जिम्मा था। इस प्राचीन मंदिर का पूरा चढ़ावा राजवंशीय परंपरा के अनुसार मंदिर के पुजारी के परिवार को जाता है। काठगढ़ महादेव मंदिर के उत्थान के लिए वर्ष 1984 में प्राचीन शिव मंदिर प्रबंधन समिति काठगढ़ का गठन किया गया है।

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