किस किले में सुनाई देती है मीरा के घुंघरुओं की आवाज़?

किस किले में सुनाई देती है मीरा के घुंघरुओं की आवाज़?
Brij Swami Temple-Nurpur

हिमाचल बिजनेस/ धर्मशाला

आजादी से पहले देश के अन्य भागों की तरह हिमाचल प्रदेश में भी अनेक रजवाड़ों की रियासतें मौजूद था, जो अपने शासन कार्य में पूर्णतया स्वतंत्र होती थीं। इसी प्रकार नूरपुर भी एक स्वतंत्र रियासत के रूप में प्रदेश में अपना प्रमुख स्थान रखती थी। इसका पुराना नाम ‘धमड़ी’ था।

किंवदंती है कि मुगलकाल के दौरान नूरजहां के आगमन पर इस नगर को नूरपुर नाम मिला। यह नगर समुद्रतल से 2125 फीट की ऊंचाई पर स्थित ऐतिहासिक, सामाजिक और धार्मिक दृष्टि से प्रदेश में प्रमुख स्थान रखता है। कहते हैं कि नूरपुर के  किले में  मीरा के घुंघरुओं की आवाज़ सुनाई देती है।

पुरातन बृजस्वामी मंदिर

इस किले के अंदर पुरातन बृजराज स्वामी का मंदिर भी स्थापित है। यही जीवंतता इस किले की मुख्य विशेषता है।
Brij Swami Temple Nurpur

नूरपुर किला नगर के ऊपरी ऊंचे स्थान पर लगभग एक किलोमीटर के दायरे में पड़ता है। किले के भीतर मुख्य द्वार के साथ ही राजकीय प्राथमिक और वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय बच्चों को शिक्षा प्रदान कर रहे हैं।

किले की बाहरी दीवार के साथ ही तहसील एवं न्यायालय के कार्यालय स्थापित है। इस किले के अंदर पुरातन बृजराज स्वामी का मंदिर भी स्थापित है। यही जीवंतता इस किले की मुख्य विशेषता है।

नूरपुर किले का इतिहास

Brij Swami Temple Nurpur

साल 1580 से 1613 के दौरान राजा बसु चंद्रवंशी के शासनकाल में किले का निर्माण हुआ।  1622 में जब राजा जगत सिंह का शासन था तो उसी दौरान नूरजहां धमड़ी नगर की यात्रा पर आई।

नगर की भव्यता और सुंदरता पर मोहित होकर यहां अपने लिए महल बनाने की मंशा जाहिर की। राजा जगत सिंह की दूरदर्शिता और सूझ- बूझ ने उसकी यह मंशा पूरी नहीं होने दी, परंतु नगर का नाम उसके नाम पर नूरपुर हुआ।

किले के प्रमुख आकर्षण

परिसर के भीतर बृज स्वामी का मंदिर है। इस स्थान के बारे कहा जाता है कि  पहले यह दरबारे खास था, जिसे जगत सिंह द्वारा मंदिर में परिवर्तित कर दिया गया।
Brij Swami Temple- Nurpur

किले का प्रवेशद्वार अपनी अटूट शक्ति और भव्यता की कहानी व इतिहास का साथी बनकर आज भी किले की शोभा को चार चांद लगा रहा है। इस पर गजानन की बनी भव्य मूर्तियां मानों सभी आने-जाने वालों को साक्षी रूप में देख रही हो।

प्रवेशद्वार में आज भी कोई कमी नहीं आई है। सभी पर्यटकों को अपनी भव्यता से शुरू में ही चकाचौंध कर देता है। इस एकमात्र द्वार को बंदकर देने से पूरा किला बंद हो जाता है, यहीं इस द्वार की प्रमुखता है।

कुआं, तालाब और पुराने बरगद

किले के अंदर राज्य सरकार द्वारा प्राथमिक और वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों के माध्यम से शिक्षा का प्रावधान किया गया है, जिससे किले की जीवंतता बनी हुई है। ये दोनों विद्यालय द्वार के साथ ही स्थित है। इसके आगे कुछ दूरी पर पानी से लबालब विशालकाय कुआं है जिस पर लोहे का जाल डालकर किसी अनहोनी से बचने का प्रावधान किया गया है।

इसके साथ एक बड़ा तालाब पर्यटकों का मन बहलाता है जिसके किनारों पर बरगद के विशाल पेड़ सैलानियों का मन मोह लेते हैं। वे इन पेड़ों के नीचे बैठकर आनंद प्राप्त करते हैं। कुछ आगे चलकर राजा के महलों के खंडरात पर्यटकों का ध्यान बरबस अपनी ओर आकर्षित करते हैं। बाईं ओर बता काली मां की मंदिर और विशाल मैदाननुमा आगन आकर्षण के प्रमुख केंद्र हैं।

‘दरबारे खास’ की जगह मंदिर

परिसर के भीतर बृज स्वामी का मंदिर है। इस स्थान के बारे कहा जाता है कि  पहले यह दरबारे खास था, जिसे जगत सिंह द्वारा मंदिर में परिवर्तित कर दिया गया। इस मंदिर मीरा की नृत्य करती हुई मूर्ति है। ऐसी दुर्लभ मूर्तियां पूरे देश में बहुत कम देखने को मिलेगी।

मंदिर के ठीक सामने कृष्ण भगवान का मनपसंद मौलसरी का पेड़ अपनी घनी छाया और सुंदर पुष्पों से सभी के मन को मोह लेता है। कहते हैं कि रात के समय मंदिर में नृत्य करती मीरा के घुघरूओं की खनक सुनाई पड़ती है। मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

बिना टिकट किजिए किले की सैर

किले के दर्शन हेतु कोई टिकट आदि की व्यवस्था नहीं है। संतोष का विषय यह है कि परिसर के भीतर का वातावरण अति रमणीक और स्वच्छता की दृष्टि से अत्युत्तम है।

सैलानी यहां आकर लौटना ही नहीं चाहते, क्योंकि यहां से  ऊपर से पंजाब का समतल क्षेत्र और दूसरी और हिमाचल प्रदेश की धौलाधार की पहाड़ियां उनके मन को मेह लेती है। यहां से दिखने वाले दृश्य देखते ही बनते हैं।

सरकार से अपेक्षाएं

किले की कुछेक कमियां सरकार और पुरातत्व विभाग का ध्यान अपनी ओर खींच रही है। किले के भीतर स्थित कुएं एवं तालाब की सफाई व्यवस्था अति आवश्यक है। बाहर और अंदर समुचित स्थानों पर राजमहलों तथा बृजराज स्वामी मंदिर आदि विशेष स्थलों का इतिहास सूचना पट्ट के माध्यम से आगंतुकों को जुटाना अति आवश्यक है, ताकि वे अपनी जिज्ञासा शांत कर सकें।

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